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अं’बर वारसी

1906 - 1993 | कराची, पाकिस्तान

मा’रूफ़ वारसी सूफ़ी और अदीब-ओ-शाइ’र

मा’रूफ़ वारसी सूफ़ी और अदीब-ओ-शाइ’र

अं’बर वारसी का परिचय

उपनाम : 'अं’बर'

मूल नाम : अं’बर अ’ली शाह

जन्म :अजमेर, राजस्थान

निधन : 01 May 1993 | सिंध, पाकिस्तान

अं’बर शाह वारसी की पैदाइश 1906 ई’स्वी को अजमेर शरीफ़ में हुई। आपका तअ’ल्लुक़ एक ऐसे मुम्ताज़ घराने से है जो एहति राम-ए-शरीअ’त, वाबस्तगान-ए-मा’रिफ़त और पाकीज़ा ख़्यालात के लिए मशहूर रहा है। वालिद का नाम सय्यद तहूर हसन चिश्ती था जो न सिर्फ़ एक सूफ़ी मनिश थे बल्कि एक जय्यिद आ’लिम-ए-दीन की हैसियत से भी मशहूर थे। अं’बर शाह वारसी ने दारुल-उ’लूम मुई’निया उ’स्मानिया, अजमेर शरीफ़ से दर्स-ए-निज़ामी की तकमील की और तेरह साल की उ’म्र में बेदम शाह वारसी के तर्बियत-याफ़्ता हैरत शाह वारसी से मुरीद हुए। आपने बुज़ुर्गान-ए-दीन की ख़िदमत में इस क़द्र शब-ओ-रोज़ गुज़ारे कि जज़्बा-ए-ख़िदमत आप के मुजाहिदे पर रश्क करने लगा और बुज़ुर्गान-ए-सलासिल की ख़िदमात के बाइ’स ये इशारा मिल गया कि आपको भी एहराम-पोश फ़ुक़रा की सफ़ में शामिल किया| चुनाँचे 1947 ई’स्वी में अं’बर शाह वारसी की एहराम-पोशी बा-ज़ाब्ता तौर पर हाजी मक़सूद शाह वारसी के ज़रिआ’ ख़ानक़ाह हज़रत हाफ़िज़ प्यारी में हुई । इस तरह अं’बर शाह वारसी मशाइख़-ए-वारसी में मुम्ताज़ हुए। अं’बर शाह ब-हैसियत-ए- शाइ’र एक बुलंद मक़ाम रखते थे। शाइ’री की तमाम अस्नाफ़ में तब्अ.-आज़माई की है मगर ग़ज़लें ज़्यादा कही हैं। उनकी ग़ज़लों का रंग ख़ालिसन सूफ़ियाना रहा है। उसकी वाहिद वजह हाजी वारिस अ’ली शाह से वालिहाना इ’श्क़-ओ-मोहब्बत है। आपके ज़्यादा-तर कलाम वारिस-ए-पाक की शान में ही मिलते हैं। अं’बर शाह वारसी हज्ज-ए-बैतुल्लाह के शरफ़ से भी मुशर्रफ़ हो चुके थे। उनका इंतिक़ाल 5 मई 1993 ई’स्वी को पीर के रोज़ नमाज़-ए-फ़ज्र के वक़्त कराची, पाकिस्तान में हुआ और वहीं मद्फ़ून हुए।


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