बहराम जी का परिचय
दस्तूर बहराम जी नौसारी में 2 दिसंबर 1828 ई’स्वी को पैदा हुए जो गुजरात में पार्सियों का अहम तरीन मरकज़ है। बहरा म जी ने मज़हबी ता’लीम नौसारी ही में पाई और 27 मार्च 1843 ई’स्वी को मूबिद बनाए गए। उस के बा’द उन्होंने पूना जाकर मज़हब और फ़ारसी ज़बान की ता’लीम अपने वालिद-ए- बुजु़र्ग-वार और बड़े भाई की निगरानी में हासिल की। फिर हैदराबाद आए। यहाँ मौलवी फ़ख़्रुद्दीन साहिब से उर्दू और फ़ारसी का तकमिला किया और पार्सियों के दस्तूर मुक़र्रर हुए। 1863 ई’स्वी से उनकी ज़िंदगी का एक नया दौर शुरू हुआ जब कि उनका तक़र्रुर तअ’ल्लुक़-दार की हैसियत से हुआ| 1875 इ’स्वी में उनकी ज़िंदगी ने एक और पल्टा खाया और वो नवाब सालार जंग की इजाज़त से पेंशन लेकर दुबारा हैदराबाद और सिकंदराबाद के दस्तूर मुक़र्रर हुए। उस ज़माने में उन्होंने पार्सियों के लिए कई फ़ंड जारी किए और तक़रीबन बीस साल तक दस्तूर रहने के बा’द 18 मार्च 1895 ई’स्वी को इंतिक़ाल किया।