दाता साहिब की सूफ़ी कहानियाँ
हिकायत- 5
फ़क़ीर वह है जिसे कभी ग़िना न हो।यह वह मा'नी है जिसे शैख़-ए-तरीक़त हज़रत ख़्वाजा अ'ब्दुल्लाह अन्सारी रज़ियल्लाहु अ'न्हु ने फ़रमाया कि हमारा ग़म तो दाएमी है। किसी हाल में न तो हम अपनी हिम्मत से मक़्सूद हासिल कर सकते हैं।
हिकायत- 10
जब बन्दा का दिल दुनियावी सिफ़ात से आज़ाद हो जाता है तो अल्ला तआ'ला दुनियावी क़ुदरतों से उसे पाक-ओ-साफ़ कर देता है ।यह तमाम सिफ़तें सूफ़ी-ए-सादिक़ की हैं।
हिकायत- 13
सूफ़ी वह है कि जब बात करे तो उसका बयान अपने हाल के हक़ाएक़ के इज़हार में हो। मतलब यह कि वह कोई ऐसी बात नहीं कहता जो ख़ुद उसमें मौजूद न हो। और जब ख़ामोश रहे तो उसका मुआ'मला और सुलूक उसके हाल को ज़ाहिर करे।----- हज़रत जून्नून मिस्त्री (रह.)।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere