दाता साहिब का परिचय
आपका नाम अ’ली था और तख़ल्लुस भी अ’ली फ़रमाते थे। गज़नी के एक इ’लाक़े हुज्वैर के रहने वाले थे और उसी मुनासिबत से आप “अ’ली हुज्वे री” के नाम से मशहूर-ओ-मा’रूफ़ हुए। अबुल-हसन आपकी कुनिय्यत और दाता-गंज बख़्श लक़ब है। तसव्वुफ़ की मशहूर किताब कश्फ़ुल-महजूब के मुवल्लिफ़ होने का भी शरफ़ आपको हासिल है। आपके वालिद का नाम उ’स्मान है। 1009 ई’स्वी में गज़नी के इ’लाक़े हुज्वेर में पैदा हुए। आपका सिलसिला-ए-नस्ब हज़रत इमाम हसन अ’लैहिस्सलाम पर जा कर ख़त्म होता है। दाता-गंज बख़्श लक़ब पाने का वाक़िआ’ ये है कि एक मर्तबा ख़्वाजा मुई’नुद्दीन हसन चिश्ती लाहौर में रौनक़ अफ़रोज़ हुए तो आपके मज़ार पर ऐ’तिकाफ़ फ़रमाया।जब वहाँ से रुख़्सत होने लगे तो मुद्रजा ज़ैल शे’र पढ़ा। गंज-बख़्श-ओ-फ़ैज़-ए- आ’लम मज़हर-ए-नूर-ए-ख़ुदा नाकिसाँ रा पीर-ए-कामिल कामिलाँ रा रहनुमा उस रोज़ से आप दाता गंज बख़्श से मशहूर हुए और लोग आपको गंज बख़्श के नाम से पुकारते हैं| आप बचपन ही में उ’लूम-ए-ज़ाहिरी की तहसील से फ़ारिग़ हो कर उ’लूम-ए-बातिनी की तरफ़ मुतवज्जिह हुए। आपके उस्ताद शैख़ अबुल-क़ासिम थे जिन्हों ने आपको सुलूक-ओ-तरीक़त की ता’लीम से आगाह कराया। उ’लूम-ए-बातिनी की इंतिहा को आप पर ज़ाहिर किया। शैख़ अबुल-क़ासिम के अ’लावा शैख़ अबू-सई’द अबुल-ख़ैर, शैख़ अबुल-क़ासिम गुरगानी , शैख़ अबुल-क़ासिम कुशैरी के रुहानी फ़ुयूज़ से मुस्तफ़ीद-ओ-मुस्तफ़ीज़ होते रहे। तहसील-ए-इ'ल्म की ग़र्ज़ से उन्हें सैर-ओ-सियाहत भी नसीब हुई और इसके लिए उन्होंने खुरासान, मावराउन्नहर, मर्व , आज़रबाईजान और लाहौर वग़ैरा का सफ़र किया। आप अपने पीर-ओ-मुर्शिद के हुक्म पर ही हिन्दुस्तान तशरीफ़ लाए। एक दिन ख़्वाब में आपके मुर्शिद ने हिन्दुस्तान के शहर लाहौर जाने का हुक्म सादिर किया और कहा कि आपको लाहौर का क़ुतुब बनाया गया है। पहले तो आपने मा’ज़रत चाही और कहा कि हज़रत सय्यद हसन ज़ंजानी मश्हदी पहले से ही वहाँ के मस्नद-ए-क़ुतुब पर जल्वा-अफ़रोज़ हैं ऐसे में मेरी क्या हैसियत कि उनके हम-पल्ला काम करूँ| लेकिन उनके मुर्शिद ने उनके लाहौर जाने का हतमी फ़ैसला फ़रमा दिया तो हुक्म की ता’मील के लिए आप लाहौर के सफ़र पर निकल पड़े। ये लाहौर कैसे पहुँचे उस पर मुहक़्क़िक़ीन इत्तिफ़ाक़-ए-राय नहीं रखते। बा’ज़ लोगों का ख़याल है कि आप सुल्तान महमूद ग़ज़नवी के लश्कर के हम-राह लाहौर आए जब्कि बा’ज़ लोग इस पर इत्तिफ़ाक़ नहीं करते| उनका कहना है कि आप शैख़ अहमद जमादी सरख़सी और शैख़ अबू सई’द हुज्वेरी के हम-राह हिन्दुस्तान तशरीफ़ लाए। आख़िरुज़्ज़िक्र दा’वा ज़्यादा मो’तबर और मुस्तनद मा’लूम होता है| लाहौर शहर में सुब्ह को दाख़िल हुए तो उनको हज़रत सय्यद हसन ज़ंजानी मश्हदी के इंतिक़ाल की ख़बर हुई। उस वक़्त उनको अपने मुर्शिद के हुक्म की मस्लिहत का इ’ल्म हुआ। उनकी नमाज़-ए-जनाज़ा आपने पढ़ाई। आपने लाहौर शहर को अपना मुस्तक़िल मस्कन बनाया और ता6लीम-ओ-तलक़ीन और रुश्द-ओ-हिदायत में मशग़ूल हो गए। आपने 465 हिज्री मुताबिक़ 1072 ई’स्वी में विसाल फ़रमाया। आपका मर्क़द लाहौर में वाक़े’ है। आप क़ुतुब-ए-ज़माना थे। ज़िक्र-ओ-फ़िक्र, मुराक़बा-ओ-मुहासबा और इ’बादत-ओ-रियाज़त में मशग़ूल रहते थे। दुनियावी आलाईश से पाक-ओ-साफ़ थे। इ’ल्मी ज़ौक़ आपका बुलंद था। आपने बहुत सारी किताबें तसनीफ की हैं उनमें कशफ़ुल-मह्जूब बहुत आहम है।