दया बाई के दोहे
गिरिधर गोबिन्द गोपधर गरुड़ध्वज गोपाल
गोबरधन श्रीगदाधर गज-तारन ग्रह-साल
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बंदो श्री सुकदेव जी सब बिधि करो सहाय
हरो सकल जग आपदा प्रेम-सुधा रस प्याय
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'दया' प्रेम उनमत्त जे तन की तनि सुधि नाहिं
झुके रहैं हरि रस छके थके नेम ब्रत नाहिं
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तात मात तुम्हरे गये तुम भी भये तयार
आज काल्ह में तुम चलौ 'दया' होहु हुसियार
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निःकलंक नरसिंध जू निरंजन अलख अभेव
निराकार निरभय मगन नारायण नित-देव
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देह धरौं संसार में तेरो कहि सब कोय
हाँसी होय तौ तेरिही मेरी कछू न होय
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लाख चूक सुत से परै सो कछु तजि नहिं देह
पोष चुचुक ले गोद में दिन दिन दूनों नेह
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भवजल नदी भयावनी किस बिधि उतरूँ पार
साहिब मेरी अरज है सुनिए बारम्बार
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'दया' नाव हरि नाम की सतगुरु खेवनहार
साधू जन के संग मिलि तिरत न लागै बार
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पूजा अरचन बंदगी नहिं सुमिरन नहिं ध्यान
प्रभुजी अब राखे बने बिर्द बाने की कान
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कब को टेरत दीन भो सुनौ न नाथ पुकार
की सरवन ऊँचौ सुनो की बिर्द दियो बिसार
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नहिं संजम नहिं साधना नहिं तीरथ ब्रत दान
मात भरोसे रहत है ज्यों बालक नादान
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ठग पापी कपटी कुटिल ये लच्छन मोहिं माहिं
जैसो तैसो तेर ही अरु काहू को नाहिं
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हाथी बूड़ो सूंड लों जब हीं करी पुकार
ग्राहतें आन छुड़ाइया लगी न रंचक बार
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बेर बेर चूकत गयों दीजै गुसा बिसार
मिहरबान होइ रावरे मेरी ओर निहार
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हौं अनाथ तोहिं बिनय करि भय सों करूँ पुकार
'दयादास' तन हरे प्रभु अब के पार उतार
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किस बिधि रीझत हौ प्रभू का कहि टेरूँ नाथ
लहर मेहर जब हीं करो तब हीं होउँ सनाथ
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जैसे सूरज के उदय सकल तिमिर नस जाय
मेहर तुम्हारी हे प्रभु क्यूँ अज्ञान रहाय
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कर्म रूप दरियाव से लीजै मोहिं बचाय
चरन कमल तर राखिये मेहर जहाज चढ़ाय
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विनय मलिका - भयमोचन अरू सर्बमय ब्यापक अचल अखंड
दयासिंधु भगवानजू ताकै सिव ब्रह्मंड
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भाई बंधु कुटुम्ब सब भये इकट्ठे आय
दिना पाँच को खेल है 'दया' काल ग्रसि जाय
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दया दीन पर करत हो सो किमि लेखी जाहि
बेद बिरद बोलत फिरै तीन लोक के माहिं
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टेर सुनी प्रहलाद की नरसिंह हो बनि आय
हिरनाकुस को मारि कै जन को लीन बचाय
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जो नहिं अधम उधारनो तौ नहिं गहते फेंट
बिर्द की पैज सम्हारि लो सकल चूक को मेट
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जो मेरे करमन लखो तौ नहिं होत उबार
'दयादास' पर दया करि दीजै चूक बिसार
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जगत सनेही जीव है राम सनेही साध
तन मन धन तजि हरि भजैं जिनका मता अगाध
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सकल मेघ लै इन्द्र जब ब्रज पै बरसो आय
गोबरधन नख पै धरो सब ब्रज लियो बचाय
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जैसो मोती ओस का तैसो ये संसार
बिनसि जाय छिन एक में 'दया' प्रभू उर धार
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पैरत थाको हे प्रभू सूझत वार न पार
मेहर मौज जब हीं करो तब पाऊँ दरबार
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कछू दोष तुम्हरो नहीं हमरी है तकसीर
बीचहिं बीच बिबस भयो पाँच पचीस के भीर
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अनंत भानु तुम्हरी मेहर कृपा करो जब होय
'दयादास' सूझै अगम दिब्य दृष्टि तन होय
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और नज़र आवै नहीं रंक राव का साह
चिरहटा के पँख ज्यों थोथो काम देखाह
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चरनदास गुरुदेव ने कीन्ही कृपा अपार
'दया' कुँवर पर दया करि दियो ज्ञान निज सार
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हौं गरीब सुन गोबिंदा तुही गरीब-निवाज
'दयादास' आधीन के सदा सुधारन काज
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जेते करम हैं पाप के मोसे बचे न एक
मेरी ओर लखो कहा बिर्द बानो तन देख
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लोहा पारस के निकट कंचन ही सो होय
जितना चाहै लै करै लोहा कहै न कोय
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दुख तजि सुख की चाह नहिं नहिं बैकुंठ बेवान
चरन कमल चित चहत हौं मोहिं तुम्हारी आन
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असु गज अरु कंचन 'दया' जोरे लाख करोर
हाथ झाड़ रीते गये भयो काल को जोर
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स्याम घटा घन देखि कै बोलत गहगह मोर
ब्रजबासी तिमि जी उठैं चितवत हरि की ओर
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चित चातृक रटना लगी स्वाँती बूँद की आस
दया-सिध भगवान जू पुजवौ अब की आस
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'दयाकुँवर' या जक्त में नहीं आपनो कोय
स्वारथ-बंधी जीव है राम नाम चित जोय
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सीस नवै तौ तुमहिं कूँ तुमहिं सुँ भाखूँ दीन
जो झगरौं तौ तुमहिं सूँ तुम चरनन आधीन
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तुम ठाकुर त्रैलोक-पति, ये ठग बस करि देहु
'दयादास' आधीन की ये बिनती सुनि लेहु
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छाँड़ो बिषै बिकार कूँ राम नाम चित लाव
'दयाकुँवर' या जगत में ऐसो काल बताव
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काहू बल अप देह को काहू राजहि मान
मोहिं भरोसो तेरही दीनबंधु भगवान
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धूप हरै छाया करै भोजन को फल देत
सरनाये की करत है सब काहू पर हेत
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कलप बृच्छ के निकट हीं सकल कल्पना जाय
'दयादास' तातें लई सरन तिहारी आय
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'दया' सुपन संसार में ना पचि मरिये बीर
बहुतक दिन बीते बृथा ब भजिये रघुबीर
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सीतापति समरत्थ जू साहब सालिगराम
सेस साइँ सहजहि सबल सिंध-मथन श्री श्याम
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रावन कुम्भकरन गये दुरजोधन बलवंत
मार लिये सब काल ने ऐसे 'दया' कहंत
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere