Font by Mehr Nastaliq Web
Sufinama
noImage

फ़क़ीर क़ादरी

फ़क़ीर क़ादरी के अशआर

ख़ुदी ख़ुद-ए’तिमादी में बदल जाये तो बंदों को

ख़ुदा से सरकशी करने की नौबत ही जाती है

उ’मूमन ख़ाना-ए-दिल में मोहब्बत ही जाती है

ख़ुदी ख़ुद-ए’तिमादी में बदल जाये तो बंदों को

हस्ती की इस किताब के मा’नों पे ख़ूब ग़ौर कर

लाखों क़ुरआन हैं निहाँ रिंद की कायनात में

फ़क़ीर-ए-‘कादरी’ जो देखते हैं चश्म-ए-बीना से

तो बंदे को ख़ुदा कहने की जुर्अत ही जाती है

नई है बिलकुल नई है साहब ये दास्ताँ जो सुना रहा हूँ

अभी अभी ही बना हूँ बंदा पहले मैं भी ख़ुदा रहा हूँ

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

Recitation

बोलिए