ब-तुफ़ैल-ए-दामन-ए-मुर्तज़ा मैं बताऊं क्या मुझे क्या मिला
कि अ’ली मिले तो नबी मिले जो नबी मिले तो ख़ुदा मिला
‘अयाज़’ इक बेश-क़ीमत सा तुझे नुक्ता बताता हूँ
तुम अपने आपको समझो ख़ुदा क्या है ख़ुदा जाने
आओ इक सजदा करें आ’लम-ए-मदहोशी में
लोग कहते हैं कि ‘साग़र’ को ख़ुदा याद नहीं
ख़ुदा-या ख़ैर करना नब्ज़ बीमार-ए-मोहब्बत की
कई दिन से बहुत बरहम मिज़ाज-ए-ना-तवानी है
काम कुछ तेरे भी होते तेरी मर्ज़ी के ख़िलाफ़
हाँ मगर मेरे ख़ुदा तेरा ख़ुदा कोई नहीं
इ’श्क़ की इब्तिदा भी तुम हुस्न की इंतिहा भी तुम
रहने दो राज़ खुल गया बंदे भी तुम ख़ुदा भी तुम
तुम मिरे रोने पे हंसते हो ख़ुदा हँसता रखे
ये भी क्या कम है कि रो कर तो हंसा सकता हूँ मैं
मोहब्बत बुत-कदे में चल के उस का फ़ैसला कर दे
ख़ुदा मेरा ख़ुदा है या ये मूरत है ख़ुदा मेरी
लेकिन उस को असर ख़ुदा जाने
न हुआ होगा या हुआ होगा
मिरी तुर्बत पे ख़ुद साक़ी ने आ कर ये दुआ माँगी
ख़ुदा बख़्शे बहुत अच्छी गुज़ारी मय-परस्ती में
ख़ुदा से तिरा चाहना चाहता हूँ
मेरा चाहना देख क्या चाहता हूँ
मुझ को ख़ुदा से आश्ना कोई भला करेगा क्या
मैं तो सनम-परस्त हूँ मेरा कोई ख़ुदा नहीं
उन बुतों के लिए ख़ुदा न करे
दीन-ओ-दिल यूँ कोई भी खोता है
ख़ुदा जाने क्या होगा अंजाम इस का
मैं बे-सब्र इतना हूँ वो तुंद-ख़ू है
ख़याल-ए-यार सलामत तुझे ख़ुदा रक्खे
तिरे बग़ैर कभी घर में रौशनी न हुई
तुम सलामत रहो क़यामत तक
और क़यामत ख़ुदा करे कि न हो
ख़ुदा का शुक्र है प्यासे को दरिया याद करता है
मुसाफ़िर ने फ़राहम कर लिया है कूच का सामाँ
आ फँसूँ मैं बुतों के दाम में यूँ
'दर्द' ये भी ख़ुदा की क़ुदरत है
तिरे हाथ मेरी फ़ना बक़ा तिरे हाथ मेरी सज़ा जज़ा
मुझे नाज़ है कि तिरे सिवा कोई और मेरा ख़ुदा नहीं
तो-को बताऊँ सुन रे सखी री मुर्शिद पिया की सूरत किस की
यही है सूरत शेर-ए-ख़ुदा की बाँकी चितवन कारी अँखियाँ
तुम ख़फ़ा हो तो अच्छा ख़फ़ा हो
ऐ बुतो क्या किसी के ख़ुदा हो
देखा जो उस सनम को तो महसूस ये हुआ
जल्वा ख़ुदा का सूरत-ए-इंसान हो गया
आप मा'शूक़ क्या हो गए
आ’शिक़ों के ख़ुदा हो गए
कोई है मोमिन कोई है तरसा ख़ुदा की बातें ख़ुदा ही जाने
अजब तरह का है ये तमाशः ख़ुदा की बातें ख़ुदा ही जाने
कोई दुनिया में नहीं आया हमेशा के लिए
बस ख़ुदा का नाम ही नाम-ए-ख़ुदा रह जाएगा
या-ख़ुदा 'अकबर' की कश्ती को निकाल
तू ही इस बेड़े का खेवन-हार है
दिल दिया जान दी ख़ुदा तू ने
तेरा एहसान एक हो तो कहूँ
हमें ख़ुदा के सिवा कुछ नज़र नहीं आता
निकल गए हैं बहुत दूर जुस्तुजू करते
ढ़ूंढ़े असरार-ए-ख़ुदा दिल ने जो अंधा बन कर
रह गया आप ही पहलू में मुअ’म्मा बन कर
मिरा एक सजदा तो हो चैन का
ख़ुदा ही जो ठहरा ख़ुद आ जाए ना
जिस पे तेरी नज़र नहीं होती
उस की जानिब ख़ुदा नहीं होता
ख़ुदा-हाफ़िज़ अब दिल की ख़ुद दारीयों का वो आते नहीं उनको लाना पड़ेगा
मोहब्बत से मजबूर हूँ क्या बताऊं उन्हें कैसे कैसे मनाना पड़ेगा
बे-ख़ुदी गर हो ख़ुद तो आ के मिले
ऐ ख़ुदा बे-ख़ुदी अजब शय है
ख़ुदा शाहिद है इस शम्‘अ-ए-फ़रौज़ाँ की ज़िया तुम हो
मैं हरगिज़ ये नहीं कहता तुमहें मेरे ख़ुदा तुम हो
ख़ुदा भी उसी की तरफ़ होगा बे-शक
क़यामत में क्या होगा जाने से हासिल
किसी बुत की अदा ने मार डाला
बहाने से ख़ुदा ने मार डाला
जब ख़ुदा से लो लगाई जाएगी
फिर दु’आ कब कोई ख़ाली जाएगी
मर्दान-ए-ख़ुदा जो हैं वो हैं आरिफ़ बिल्लाह
तफ़रीक़ नहीं में है कि कुछ पीर-ओ-जवाँ में
ख़ुदा जाने मिरी मिट्टी ठिकाने कब लगे 'मुज़्तर'
बहुत दिन से जनाज़ा कूचा-ए-क़ातिल में रक्खा है
क़नाअत दूसरे के आसरे का नाम है 'मुज़्तर'
ख़ुदा है जो कोई हद्द-ए-तवक्कुल से निकल आया
ख़याल-ए-ख़ुदा में ख़ुदी को भुला कर
निशान-ए-ख़ुदा हम जमाए हुए हैं
है लुत्फ़ ज़िंदगी का ब'अद-अज़-फ़ना उसी में
नाम-ए-ख़ुदा जो अपने सब तन-बदन से निकले
बज़्म-ए-ख़ल्वत में वो सोते हैं दुपट्टा ताने
जल्वा-ए-हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद है अंदर-बाहर
ख़ुदा जाने कहता हूँ मस्ती में क्या
ख़ुदा जाने बकता हूँ क्या जोश में
ख़ुदा जाने मिरी मिट्टी ठिकाने कब लगे 'मुज़्तर'
बहुत दिन से जनाज़ा कूचा-ए-क़ातिल में रक्खा है
ख़ुदा के वास्ते इस को न टोको
यही इक शहर में क़ातिल रहा है
न कोर बातिन हो ऐ बरहमन ज़रा तू चश्म-ए-तमीज़ वा कर
ख़ुदा का बंदा बुतों को सज्दा ख़ुदा ख़ुदा कर ख़ुदा ख़ुदा कर
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere