1717 - 1878 | मौजा छुड़ानी, भारत
सतवादी सब सन्त हैं आप आपने धाम
आजिज़ की अरदास है सकल सन्त परनाम
चेत सकै तो चेतिये कूकै संत सुमेर ।
चौरासी कूँ जात है फेर सकै तो फेर ।।
गगन मँडल में रम रहा तेरा संगी सोय ।
बाहर भरमे हानि है अंतर दीपक जोय ।।
निरबानी के नाम से हिल मिल रहना हंस ।
उर में करिये आरती कधी न बूड़ै बंस ।।
मात हिता सुत बंधवा देखे कुल के लोग ।
रे नर देखत फूँकिये करते हैं सब सोग ।।
रंचक नाम सँभारिये परपंची कूँ खोय ।
अंत समय आनंद है अटल भगति देउँ तोय ।।
Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
Urdu poetry, urdu shayari, shayari in urdu, poetry in urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books