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ग़ौस अली शाह

1804 - 1880 | पानीपत, भारत

ग़ौस अली शाह

सूफ़ी उद्धरण 21

जिस वक़्त तजल्ली-ए-ज़ात होती है, हर तरह से तौहीद और एकत्व के राज़ खुलते हैं।

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दुनिया मुर्दा है और उस की चाह रखने वाले कुत्तों की तरह हैं।

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दिल की सफ़ाई बग़ैर इबादत के हासिल नहीं होती और ख़ुदा का नूर चेहरे पर बिना दिल की सफ़ाई के नहीं दिखता।

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बुलंद हौसला और हिम्मत की बदौलत मुश्किल से मुश्किल काम आसान हो जाता है।

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हर शख़्स ने अपनी ख़्वाहिशात के हिसाब से अलग क़िब्ला बना रखा है और उसी में डूबा हुआ है।

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