Sufinama
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कमाल अ’ज़ीमाबादी

1873 - 1936 | पटना, भारत

अ’ज़ीमाबाद के मशहूर रईस और वहीद इलाहाबादी के शागिर्द-ए-रशीद

अ’ज़ीमाबाद के मशहूर रईस और वहीद इलाहाबादी के शागिर्द-ए-रशीद

कमाल अ’ज़ीमाबादी का परिचय

उपनाम : 'कमाल'

मूल नाम : महीउद्दिन अहमद

जन्म :पटना, बिहार

निधन : बिहार, भारत

कमाल अ’ज़ीमाबादी, अ’ज़ीमाबाद (पटना) के रईस-ए-आ’ज़म सय्यद शाह मुबारक हुसैन मुबारक अ’ज़ीमाबादी के फ़र्ज़न्द-ए-अर्जुमंद और वहीद इलाहाबादी के शागिर्द-ए-सआ’दत-मंद थे। "सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है'' लिखने वाले शाइ’र बिस्मिल अ’ज़ीमाबादी कमाल अ’ज़ीमाबादी के भाँजा होते हैं| आपकी पैदाइश 5 जमादीउल-अव्वल 1290 हिज्री में लोदी कटरा पटना में शैख़ अहमदुल्लाह रईस के मकान में हुई। इब्तिदाई ता’लीम अपने पर-नाना ही के ज़ेर-ए-निगरानी हुई।आ’लम-ए-शबाब में मौलाना फ़ज़लुर्रहमान गंज मुरादाबादी से बैअ’त हुए और इजाज़त-ओ-ख़िलाफ़त भी पाई। मौलाना के साहिब-ज़ादे मौलाना अहमदी से भी इजाज़त थी। कमाल अ’ज़ीमाबादी को शाइ’री का शौक़ शुरूअ’ से था।उनका अस्ल नाम मुहीउद्दीन अहमद था। उनका आबाई वतन काको ज़िला' जहानाबाद था। शे’र-ओ-सुख़न से गहरी दिल-चस्पी रही। अपने वालिद शाह मुबारक हुसैन अ’ज़ीमाबादी के उस्ताद वहीद इलाहाबादी से शरफ़-ए-तलम्मुज़ हासिल किया और फिर बा-ज़ाब्ता तौर पर शे’र कहने लगे। मुशाए’रों में भी जाया करते थे। कलकत्ता के मुशाए’रे की तफ़्सील भी गुलदस्तों में मिलती है।कमाल का दीवान भी मुरत्तब था मगर तबअ’ न हो सका और बर्बाद हो कर रह गया। उनका ये मशहूर शे’र आज भी अ’ज़ीमाबाद की गलियों को मुअ’त्तर करता है| नाम मेरा ज़मीं पे लिख-लिख कर वो मिटाते हैं नक़्श-ए-पा की तरह कमाल अ’ज़ीमाबादी बड़े फ़राख़-दिल और ऐ’श-ओ-इ’श्रत की ज़िंदगी गुज़ारने वाले फ़र्द थे। उनके पास माल-ओ-दौलत की कोई कमी नहीं थी।उन्हें अंग्रेज़ों ने ख़ान बहादुर का ख़िताब भी दिया था।नफ़ीस से नफ़ीस शय उनके घर की ज़ीनत हुआ करती थी।कमाल अ’ज़ीमाबादी ने बड़े कर्र-ओ-फ़र्र और नाम-ओ-नुमूद के साथ ज़िंदगी गुज़ारी। आख़िर में सौम-ओ-सलात के पाबंद हुए और ख़ल्वत- नशीन हुए। उन्हें हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन सुहरवर्दी पीर-ए-जगजोत और जद्द-ए-अमजद हज़रत शाह तबारक हुसैन काकवी से ख़ासी निस्बत थी। उनके उ’र्स का एहतिमाम वो शान-ओ-शौकत से किया करते थे। हज़रत मख़दूमा बी-बी कमाल का आस्ताना काको की कई मर्तबा मरम्मत भी करा चुके थे। कमाल अ’ज़ीमाबादी का इंति क़ाल 14 ज़ीक़ा’दा 1335 हिज्री को अपने मकान लोदी कटरा में हुआ और हज़रत पीर-ए-जगजोत के आस्ताना में मद्फ़ून हुए।


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