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ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह

1563 - 1603 | दिल्ली, भारत

ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह का परिचय

मूल नाम : रज़िउद्दिन मुहम्मद बाक़ी

निधन : 01 Nov 1603 | दिल्ली, भारत

ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह मुहम्मद बाक़ी सिलसिला-ए-नक़्शबंदिया के मशहूर बुज़ुर्ग और मुजद्दिद अल्फ़सानी के पीर-ओ-मुर्शिद हैं। वालिद-ए-गिरामी का नाम क़ाज़ी अ’ब्दुस्सलाम खिल्जी समरक़ंदी क़ुरैशी है जो अपने ज़माने के मा’रूफ़ आ’लिम-ए-बा-अ’मल और साहिब-ए-वज्द-ओ-हाल-ओ-फ़ज़्ल-ओ-कमाल बुज़ुर्ग थे। ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह की पैदाइश 971 हिज्री मुवाफ़िक़ 1563 ई’स्वी काबुल में हुई और वहीं अ’क़्द हुआ। आपके नाना-जान का सिलसिला-ए-नसब शैख़ उ’मर यागस्तानी तक पहुँचता है जो ख़्वाजा उ’बैदुल्लाह अहरार के नाना थे। आपकी नानी सादात से थीं। बा’ज़ मुवर्रिख़ीन ने आपको सहीहुन्नसब सय्यद लिखा है जबकि अस्लन तुर्क थे। आपने आठ बरस की उ’म्र में क़ुरान-ए-पाक हिफ़्ज़ किया। उस दौर के काबुल के मशहूर आ’लिम-ए-दीन मुहम्मद सादिक़ हलवाई से तलम्मुज़ इख़्तियार किया और थोड़े ही अ’र्से में इ’ल्म-ओ-अ’मल के आफ़्ताब बन कर चमकने लगे और अपने ज़माने के अहल-ए-इ'ल्म में शोहरत-ए-दवाम हासिल कर ली। समरक़ंद में फ़िक़्ह, हदीस, तफ़्सीर और दूसरे दीनी उ’लूम की तक्मील की। बचपन से आसार-ए-तजरीद-ओ-तफ़रीद और अ’लामात-ए-फ़क़्र-ओ-दरवेशी आपकी पेशानी से अयाँ थीं। एक मज्ज़ूब की नज़र-ए-करम से किताबों से दिल उचाट हो गया और आप किसी मुर्शिद-ए-कामिल की तलाश में निकल पड़े। आख़िर में अमीर अ’ब्दुल्लाह बल्ख़ी की ख़िदमत में पहुँचे। अब तबीअ’त को इस्तिक़ामत हुई और मदारिज-ए-रुहानी में तरक़्क़ी होने के बा’द पीर बाबा भाई दिल्ली कश्मीरी के हुज़ूर पहुँचे और फ़ैज़ हासिल किया। उस के बा’द पीर-ए-कामिल की तलाश में दिल्ली वारिद हुए और शैख़ अ’ब्दुल-अ’ज़ीज़ की ख़ानक़ाह में उनके साहिबज़ादे शैख़ क़ुतुबुल-आ’लम के पास रह कर याद-ए-हक़ में मश्ग़ूल हो गए। फिर इशारा-ए-ग़ैबी पाकर बुख़ारा पहुँचे और ख़्वाजा इमकंगी हज़रत के मुरीद-ओ-ख़लीफ़ा से नक़्शबंदी सिलसिले की ता’लीम हासिल की। मुहम्मद और ख़्वाजा बहाउद्दीन नक़्शबंद बुख़ारी की रूहानियत से बिला-वास्ता ब-तौर-ए-ओवैसियत फ़ैज़याब थे। ख़्वाजा मुहम्मद इमकंगी ने इशारा-ए-ग़ैबी पाकर आपको हिन्दुस्तान की तरफ़ हिज्रत का हुक्म देते हुए फ़रमाया। “तुम्हारे वुजूद से तरीक़ा-ए-नक़्शबंदिया हिन्दुस्तान में रौनक़-ए- अ’ज़ीम और शोहरत-ए-फ़ख़ीम हासिल करेगा और वहाँ के तिश्नगान-ए-इ’ल्म-ओ-इ’र्फ़ान का जाम तुझसे सैराब होगा।” चुनाँचे आपके हुक्म पर तुर्किस्तान से लाहौर होते हुए हिन्दुस्तान के मरकज़ी शहर दिल्ली तशरीफ़ लाए और दरिया-ए-जमुना के किनारे क़िला' फ़िरोज़ाबाद में मुस्तक़िल सुकूनत इख़्तियार की। आपकी तशरीफ़-आवरी से पाँच छः साल के अंदर-अंदर रुहानी हल्क़ों में इन्क़िलाब बरपा हो गया। उ‘लमा-ओ-मशाइख़ और आ’म्मतुल-मुस्लिमीन के अ’लावा ओमरा-ए-सल्तनत भी आपके हल्क़ा-ए-बैअ’त में शामिल होने लगे। चुनाँचे नवाब मुर्तज़ा ख़ान फ़रीद बुख़ारी, अ’ब्दुर्रहीम ख़ान ख़ानाँ, मिर्ज़ा क़लीज ख़ान और सद्र-ए-जहाँ वग़ैरुहुम भी आपके नियाज़-मंदों में शामिल होने लगे। आपकी नज़र कीमिया, तवज्जोह इक्सीर और दुआ’ मुस्तजाब थी और आप से बे-शुमार करामात का ज़ुहूर हुआ। आप बहुत कम-गो, कम-ख़ोर और कम-ख़्वाब थे। ख़्वाजा मुहम्मद बाक़ी बिल्लाह के दो साहिब-ज़ादे थे। ख़्वाजा उ’बैदुल्लाह ख़्वाजा अ’ब्दुल्लाह 1008 हिज्री में मुजद्दिद अल्फ़-ए-सानी ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह से बैअ’त हो कर ख़िलाफ़त-ओ-इजाज़त से मुशर्रफ़ हुए जिनसे बिल-ख़ुसूस पाक-ओ-हिंद और बिल-उ’मूम पूरी दुनिया में सिलसिला-ए-नक़्शबंदिया की इशाअ’त-ए-आम हुई| आपके मशहूर खल़िफ़ा के नाम दर्ज ज़ैल हैं| मुजद्दिद अल्फ़-ए-सानी शैख़ ताजुद्दीन संभली ख़्वाजा हुसामुद्दीन हफ़्ता 25 जमादिउस्सानी 1012 हिज्री बमुताबिक़ 29 नवंबर 1603 ई’स्वी को बा’द नमाज़-ए-अ’स्र ज़िक्र-ए-इस्म-ए-ज़ात करते हुए वफ़ात पाई। 'नक्शबंद-ए-वक़्त और 'बह्र-ए-मा’रिफ़त बूद से तारीख़-ए-वफ़ात निकलती है। ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह का मज़ार दिल्ली में फ़ीरोज़ शाह क़ब्रिस्तान में सहन-ए-मस्जिद के मुत्तसिल वाक़े’ है।


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