लियोनिद सोलोवयेव के व्यंग्य
मुल्ला नसरुद्दीन- पहली दास्तान
"यह भी बयान किया गया है कि वह सीधा-सादा इंसान अपने गधे की लगाम पकड़े चल रहा था और गधा पीधे-पीछे आ रहा था।" -(अलिफ़ लैला की शहरज़ाद की 382 वीं रात) जब ख़ोजा नसरुद्दीन की पैंतीसवीं सालगिरह थी, तो वह सड़कों पर मारा-मारा फिर रहा था। परदेशों में, एक शहर
मुल्ला नसरुद्दीन- दूसरी दास्तान
"ये अ’जीब वाक़िआ’त हैं, इन में से कुछ तो मेरी मौजूदगी में हुए और कुछ मुझे मो’तबर लोगों ने सुनाये।" अस्मा इब्न मुन्क़िज़, "किताबुन नसाएह " ।। 1 ।। बहुत पुराने ज़माने से बुख़ारा के कुम्हार शहर के पूरब की तरफ़ के फाटकों के पास मिट्टी के बड़े ढूह के आस-पास
मुल्ला नसरुद्दीन- तीसरी दास्तान
"पाक है वह जो जीता है और मरता नहीं!" - अल्फ़ लैला। अमीर ख़ोजा नसरुद्दीन पर भरोसा करने लगे थे और उस पर मेहरबान थे। वह हर मुआ’मले में उन का सबसे नज़दीकी सलाहकार बन गया था। ख़ोजा नसरुद्दीन फ़ैसले करता, अमीर उन पर दस्तख़त करते और वज़ीर बख़्तियार सिर्फ़ उन
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere