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मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी

1814 - 1870 | उन्नाव, भारत

मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी के सूफ़ी उद्धरण

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मुरीद वही है, जिस में मुर्शिद की बू आती हो। पेड़ की शाख़ में जब तक क़लम नहीं लगती, तब तक उस पर लज़ीज़ फल नहीं आता।

लोग इस बात पर फ़ख़्र करते हैं कि हम शैख़-ज़ादे हैं और पीर-ज़ादे हैं। अस्ल में यही चीज़ रास्ते की रुकावट है।

लोग जब हमारे पास आते हैं, तो नर्मी की वजह से आते हैं। अगर एक दिन भी उन से प्यार की बात करो, तो कोई आए।

जिस क़दर दिल की सफ़ाई ज़्यादा होती जाती है, उसी क़दर नफ़्स पर क़ाबू बढ़ता जाता है।

कोई शख़्स अगर आसमान में उड़ता हो और साथ ही ज़र्रे के बराबर भी शरीअत के ख़िलाफ़ काम करता हो, तो उस पर यक़ीन करो। उस की करामत से प्रभावित नहीं होना चाहिए।

वज्द में आदमी बे-होश नहीं होता बल्कि बे-ख़ुद हो जाता है, अगर बे-होश हो गया तो लुत्फ़ चला गया।

यार की गालियाँ मिठाई हैं, वही जानेगा जिसने खाई हों।

ढोलक की थाप समाअ (क़व्वाली) के वक़्त दिल पर पड़ती है और वह एक धौंकनी है, जो दिल की आग को और भड़का देती है।

मुरीद अगर अपनी ज़ाहिरी शक्ल-ओ-सूरत पीर की तरह कर सके, तो उस से आगे और क्या होगा।

जो बेगाना हो उससे तरीक़त की राह की बातें करो, जब तक कि वह उन से मानूस और उन बातों की तरफ़ उस का रुझान हो।

اگر کوئی پیش کرے تو چاہیے کہ اسے خدا کی طرف سے سمجھ کر لے لے، واپس نہ کرے۔

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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