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मोहसिन काकोरवी

1826 - 1905 | आगरा, भारत

ना’त कहने वाला एक अ’ज़ीम शाइ’र जिसे हस्सान-ए-वक़्त के लक़ब से याद किया जाता था

ना’त कहने वाला एक अ’ज़ीम शाइ’र जिसे हस्सान-ए-वक़्त के लक़ब से याद किया जाता था

मोहसिन काकोरवी का परिचय

उपनाम : 'मोहसिन'

मूल नाम : मोहम्मद मोहसिन

जन्म :काकोरी, उत्तर प्रदेश

निधन : 01 Apr 1905 | उत्तर प्रदेश, भारत

नाम मौलवी मुहम्मद मोहसिन और तख़ल्लुस मोहसिन था। आप 1242 हिज्री मुवाफ़िक़ 1826 ई’स्वी में क़स्बा काकोरी मज़ाफ़ात-ए-लखनऊ में पैदा हुए। अपने दादा के दामन-ए-तर्बियत में परवरिश पाई। उनके इंतिक़ाल के बा’द अपने वालिद और मौलवी अ’ब्दुर्रहीम से तहसील-ए-इ’ल्म किया। मौलवी हादी अ’ली अश्क से मश्क़-ए-सुख़न किया। मोहसिन काकोरवी ने चंद रोज़ ओ’हदा-ए-निज़ामत पर काम किया और वहीं से वकालत-ए-हाईकोर्ट का इम्तिहान पास किया। उस ज़माने में सद्र दीवानी अ’दालत आगरा में थी। 1857 ई’स्वी तक आगरा में रहे| बा’द अज़ाँ मैनपुरी में वकालत करते रहे। शे’र-ओ-सुख़न का शौक़ उन्हें लड़कपन से था। इब्तिदा में कुछ ग़ज़लें कहीं। उसके बा’द महज़ ना’त में तब्अ’-आज़माई करते रहे। मोहसिन काकोरवी का कुल्लियात उनके बड़े साहिब-ज़ादे मौलवी नूरुल-हसन ने शाए’ किया है। सबसे पहले उसमें एक ना’तिया क़सीदा “गुलदस्ता-ए-कलाम-ए-रहमत और उस के बा’द “सरापा रसूल-ए-अकरम” है। उनका वो मशहूर ना’तिया क़सीदा (सम्त-ए- काशी से चला जानिब-ए- मथुरा बादल) भी कुल्लियात में है जिसने तमाम अह्ल-ए-इ’ल्म-ओ-दानिश से ख़राज-ए-तहसीन वसूल किया है।कुल्लियात में उनकी मशहूर मस्नवी “चराग़-ए-का’बा” शब-ए-मे’राज के ज़िक्र में है। कुछ रुबाई’याँ और ग़ज़लें भी हैं। मोहसिन काकोरवी 24 अप्रैल 1905 ई’ को मैनपुरी में अपने ख़ालिक़-ए-हक़ीक़ी से जा मिले।


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