क़द्र बिलग्रामी का परिचय
क़द्र बिलग्रामी का नाम सय्यद ग़ुलाम हुसैन था। वो सय्यद ख़ल्फ़ अ’ली के बेटे, सय्यद करामत अ’ली के पोते थे और शाह अ’ब्दुल वाहिद शाहिदी के पड़पोते थे। उनका नसब-ए-पिदरी हज़रत ज़ैद बिन इमाम ज़ैनुल-आ’बिदीन से जा मिलता है। क़द्र बिलग्रामी की पैदाइश जमादिउल-आख़िर के महीने में 1249 हज्री मुवाफ़िक़ 1833 ई’स्वी में क़स्बा-ए- बिलग्राम में हुई। क़द्र की इब्तिदाई ता’लीम का आग़ाज़ अ’रबी-ओ-फ़ारसी से हुआ। अपनी ज़ेहानत की ब-दौलत जल्द ही उन्होंने उस में महारत हासिल कर ली। अभी सिलसिला-ए-ता’लीम जारी ही था कि उनकी शादी हो गई। चुनाँचे एह्सास-ए-ज़िम्मेदारी और ब-ग़र्ज़-ए-शौक़ -ए-तहसील-ए-इ’ल्म वो नवाब वाजिद अ’ली शाह अवध के अ’हद में बिलग्राम से लखनऊ आए। उस ज़माने में लखनऊ शे’र-ओ-शाइ’री का गहवारा बना हुआ था। कहीं न कहीं रोज़ाना शे’र-ओ-शाइ’री की महफ़िलें सजती थीं। क़द्र बिलग्रामी बचपन ही से बड़े ज़हीन वाक़े’ हुए थे मगर उस वक़्त उन्हें शे’र-ओ-सुख़न का शौक़ न था। शे’र-गोई का चसका लगा और नासिख़ लखनई के शागिर्द अमान अ’ली सहर के शागिर्द हुए। फ़न्न-ए-शे’र के रुमूज़ सीखने के लिए उन्होंने मुहम्मद रज़ा बर्क़ और इम्दाद अ’ली बह्र के आगे भी ज़ानू-ए-तलम्मुज़ तय किया| क़द्र को इ’ल्म-ए-अ’रूज़ और तारीख़-गोई में भी कमाल हासिल था। अ’रूज़ पर उनकी उ’म्दा तस्नीफ़ क़वाइदुल-अ’रूज़ है जो उनकी अ’रूज़-दानी की शाहिद है। तारीखें भी उन्होंने कसरत से कही हैं। क़द्र केंग कॉलेज में ब-हैसियत-ए-मुलाज़िम मुंतख़ब हुए थे। उन्होंने हैदराबाद के निज़ाम की शान में क़सीदा भी पढ़ा था। हैदराबाद में बीमार पड़े और 14 सितंबर 1884 ई’स्वी मुवाफ़िक़ 23 ज़ीका’दा 1301 हिज्री को इतवार को दोपहर लखनऊ में इंतिक़ाल कर गए। मीर ख़ुदा बख़्श के कर्बला वाक़े’ तालकोड़ा में सुपुर्द-ए-ख़ाक किए गेए।