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शाह काज़िम क़लंदर

1745 - 1806 | काकोरी, भारत

ख़ानक़ाह-ए-काज़िमिया, काकोरी के बानी और रुहानी शाइ’र

ख़ानक़ाह-ए-काज़िमिया, काकोरी के बानी और रुहानी शाइ’र

शाह काज़िम क़लंदर का परिचय

हज़रत शाह काज़िम क़लंदर शाह काशिफ़ चिश्ती के फ़र्ज़न्द -ए-सआ’दत-मंद थे। आप ब-तारीख़ 17 रजबुल-मुरज्जब 1158 हिज्री को काकोरी में पैदा हुए। आप निहायत सलीमुत्तब्अ’, क़वीउल-हाफ़िज़ा, आ’ली हिम्मत, अ’क़ील-ओ-फ़हीम, ख़ुश-अख़्लाक़ और पाबंद-ए-शरीअ’त थे। बचपन से अनवार-ए-विलायत-ओ-करामत और आसार-ए-रुश्द-ओ-हिदायत जबीन-ए-सआ'दत आगीं से ताबाँ-ओ-नुमायाँ थे। आपने अवाएल-ए-कुतुब-ए-दर्सिया मुल्ला अ’ब्दुल अ’ज़ीज़ काकोरी और मुल्ला हमीदुद्दीन काकोरी से और औसत और अवाख़िर मुल्ला ग़ुलाम यहया बिहारी और मुल्ला अहमदुल्लाह संदेली से पढ़ीं। ज़माना-ए-तालिब-ए-इ’ल्मी से इ’ल्म-ए-तसव्वुफ़ की तरफ़ मैलान-ए-ख़ातिर था। मुतक़द्दिमीन और मुतअख़-ख़िर्रीन हज़रात सूफ़िया की किताबें अपने मुतालिआ’ में रखते। मुआ'सिरीन में शाह वलीउल्लाह मुहद्दिस देहलवी की तर्ज़-ए-तहरीर और उनकी तहक़ीक़ात को बहुत पसंद करते थे। शाह काज़िम क़लंदर को बैअ’त-ओ-इजाज़त-ओ-ख़िलाफ़त हज़रत कलीद इर्फ़ान शाह बासित अ’ली क़लंदर इलाहाबादी से थी। आप सिलसिला-ए-आ’लिया क़लंदरिया के निहायत अ’ज़ीमुल-मर्तबत बुज़ुर्ग और मर्तबा-ए-क़ुतुबियत-ए-कुबरा और विलायत-ए-उज़मा के हामिल थे। मुहम्मदु ल-मशरब और क़ुतुबुल-इर्शाद थे। इस के अ’लावा भी आपने दीगर सूफ़िया से इक्तिसाब-ए-फ़ैज़ किया| “फ़स्ल-ए- मस्ऊ’दिया में है कि शाह काज़िम क़लंदर ने दस साल अपने पीर-ओ-मुर्शिद की ख़िदमत में रह कर मक़ामात-ए-तरीक़त की तक्मील की और अज़्कार-ओ-अफ़्क़ार और दा’वत-ए-अस्मा वग़ैरा हासिल करके इजाज़त-ओ-ख़िलाफ़त से रफ़राज़ हो कर आ’रिफ़-बिल्लाह हुए और अपने वतन में पीर-ओ-मुर्शिद के हुक्म के मुवाफ़िक़ इक़ामत इख़्तियार करके एक आ’लम को अपने अनवार-ए-ताआ’त से मनव्वर और इफ़ादा-ए-उ’लूम-ए-दीनी-ओ-मआ’रिफ़-ए-यक़ीनी से मुस्तफ़ीज़ फ़रमाया। शाह काज़िम क़लंदर मज्मउ’स्सलासिल बुज़ुर्ग गुज़रे हैं। उनकी ख़ानक़ाह-ए-काज़िमिया काकोरी की तारीख़ में बल्कि अवध में निहायत अहम रोल अदा करती है। आप साहिब-ए-तसानीफ़ थे। आपकी तस्नीफ़ात में नग़्मातुल-असरार मा’रूफ़ ब-सांत-रस मशहू र है जिसमें हिन्दी कलाम हक़ाएक़-ओ-मआ’रिफ़ पर मुश्तमिल है। इस के अ’लावा और भी आपकी तसानीफ़ हैं। आपकी वफ़ात ब-आरिज़ा-ए-तप 21 रबीउ’ल-आख़िर 1221 हिज्री 62 बरस की उ’म्र में हुई। मज़ार शरीफ़ ख़ानक़ाह-ए-काज़िमिया, काकोरी में एक ख़ूबसूरत गुंबद में वाक़े’ है।


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