शाह नसीर का परिचय
नाम मुहम्मद नसीरुद्दीन था। तख़ल्लुस ‘नसीर’ इस्ति’माल किया करते थे। उनका उ’र्फ़ मियाँ कल्लू था। मौलाना आज़ाद के मुताबिक़ शाह नसीर सियाह फ़ाम थे इसलिए घराने के लोग मियाँ कल्लू कहते थे। नाम के शुरूअ’ में शाह का लफ़्ज़ सिलसिला-ए-सादात से निस्बत और तसव्वुफ़ से तअ’ल्लुक़ को ज़ाहिर करता है।आप शाह सद्र-ए-जहाँ की औलाद में से थे। अपने वालिद की वफ़ात के बा’द दरगाह के सज्जादा-नशीन हुए। वालिद का नाम शाह ग़रीबुल्लाह था जो ख़ुश-तीनत और नेक-सीरत बुज़ुर्ग थे। शाह नसीर की तारीख़-ए-विलादत की तफ़्सील उस अ’हद के किसी तज़्किरे में नहीं मिलती। प्रोफ़ेसर तनवीर अहमद अ’लवी का क़वी अंदेशा 1170-75 हिज्री मुताबिक़ 1756-61 ई’स्वी के माबैन है। इस की बुनियाद ‘मुस्हही’ के “रियाज़ुल-फ़ुसहा के वो कलिमात हैं जिसमें उन्होंने शाह नसीर के मुतअ’ल्लिक़ 1230-35 हिज्री मुताबिक़ 1814-20 ई’स्वी के माबैन ये कलिमात लिखे हैं कि उस वक़्त उनकी उ’म्र साठ साल से ज़्यादा थी। शाह नसीर की ता’लीम-ओ-तर्बियत देहली में हुई। उनके वालिद उनकी ता’लीम पर बहुत तवज्जोह दिया करते थे। उनके मुआ’सिरीन तज़्किरा-नवीसों हकीम क़ुद्रतुल्लाह क़ासिम और मुस्हफ़ी की राय में उनको तहसील-ए-इ’ल्म में कोई ख़ास दिलचस्पी न थी। उन तज़्किरा-निगारों ने इसकी वुजूहात में शक-ओ-तरद्दुद का इज़हार किया है। शायद वालिद की बे-वक़्त मौत का नतीजा था कि उनको ता’लीम का मौक़ा’ न मिला और घरेलू ज़िम्मेदारियों की वजह से ता’लीम से महरूम हो गए। अपने शे'री ज़ौक़ और तख़य्युल परवाज़ की बिना पर शाह नसीर ने अदब के शाएक़ीन में अपना एक अलग मक़ाम बनाया। बावजूद इस के कि उनको शाह आलम के दरबार की तरफ़ से "मलिकुश्शु'रा का ख़िताब नहीं मिला था फिर भी वो बतौर मलिकुश्शु'रा मा'रूफ़ हो गए थे। दिल्ली की अपने रिहाइश-गाह पर हर महीना में दो बार शे'री मज्लिस आरास्ता किया करते थे और उस्ताद -ए-वक़्त मशहूर थे| मुंशी राजा चन्दू लाल खतरी साकिन-ए- दिलली थे लेकिन हैदराबाद को मस्कन बनाया था। शाह नसीर के हम-उ'म्र थे। जब वो दक्कन में सुकूनत -पज़ीर हुए तो नवाब नासिर- उल-मुल्क के अ'ह्द में शाह नसीर को दक्कन बुला लिया। यहाँ उनकू वो इज़्ज़त और मर्तबा मिला जो उनको दिल्ली में मिला करता था ।वो हैदराबाद दक्कन के एक मुअज़्ज़ज़ और मा'रूफ़ शख़्सियत के तौर पर जाने गए।1254 मुताबिक़1838ए- में उन्होंने वफ़ात पाई और मूसा क़ाज़ी साहिब की दरगाह में मदफ़ून हुए| शाह नसीर की वफ़ात के बाद उनका पहला मुख़्तसर मजमूआ'ٍ 'इंतिख़ाब कुल्लियात-ए-शाह नसीर की सूरत में1295 मुताबिक़1878 में आला पप्रेस मेरठ से हाफ़िज़ मुहम्मद अकबर की काविशों से शाए' हुआ ।इस के इलावा 'चमनिस्तान-ए-सुख़न अहमद अ'ली ख़ां शहीद देहलवी के ज़ाती कुतुब- ख़ाने में मौजूद नुस्ख़ा से नक़ल कर के मत्बा' फ़ख़्र-ए- निज़ामी हैदराबाद ने उसे शाए' किया