शाह नसीर के अशआर
रुख़ पे हर सूरत से रखना गुल-रुख़ाँ ख़त का है कुफ़्र
देखो क़ुरआँ पर न रखियो बोस्ताँ बहर-ए-ख़ुदा
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जान खो बैठेगा अपनी ये 'नसीर'-ए-ख़स्ता-दिल
उस के पहलू से अब उठ कर घर को क्या जाते हो तम
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टुक समझ कर तो लगाओ लात हाँ बहर-ए-ख़ुदा
ये कुनिश्त दिल है देखो ऐ बुताँ बहर-ए-ख़ुदा
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मेरे होते ग़ैर की जानिब तिरे अबरू हिलें
दोस्ती बाला-ए-ताक़ अपनी रख ऐ दिलबर उठा
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मिला क्या हज़रत-ए-आदम को फल जन्नत से आने का
न क्यूँ उस ग़म से सीन: चाक हो गंदुम के दाने का
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नुक्ता-ए-ईमान से वाक़िफ़ हो
चेहरा-ए-यार जा-ब-जा देखा
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ऐ क़ासिद-ए-अश्क़-ओ-पैक सबा उस तक न पयाम-ओ-ख़त पहुँचा
तुम क्या करो हाँ क़िस्मत का लिखा ये भी न हुआ वो भी न हुआ
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दो क़दम पर रह गई है मंज़िल-ए-मक़्सूद आह
छोड़ कर तन्हा न जाओ हमरहाँ बहर-ए-ख़ुदा
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टुक समझ कर तो लगाओ लात हाँ बहर-ए-ख़ुदा
ये कुनिश्त दिल है देखो ऐ बुताँ बहर-ए-ख़ुदा
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ख़त के ले जाने को वहाँ कोई मयस्सर न हुआ
दुर्र हुआ अश्क सद-अफ़्सोस कबूतर न हुआ
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शायद उस आईना-रू के है भरा दिल में ग़ुबार
ख़ाक आ’शिक़ पर जो वो दामन झटक कर रह गया
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सैंकड़ों मर मर गए हैं इ'श्क़ के हाथों से आह
मैं ही क्या पत्थर से अपना सर पटक कर रह गया
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टैग : आह
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क़ैद-ए-उल्फ़त में वो है चीं कि क़ुमरी ने आह
अपनी गर्दन का न मिंक़ार से फंदा खोला
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टैग : आह
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चश्म-ए-तर लख़्त-ए-दिल-ए-सोज़ाँ से आँसू को बुझा
तिफ़्ल-ए-अबतर डाल दे है हाथ अक्सर हाथ में
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टैग : आँसू
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ख़ुदा-हाफ़िज़ है बहर-ए-इ’श्क़ में इस दिल की कश्ती का
कि है चीन-ए-जबीन-ए-यार से मौज-ए-दिगर पैदा
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टैग : कश्ती
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सर-ज़मीन-ए-शाम में तारा गिरा था टूट कर
या अँधेरी रात में जुगनूँ चमक कर रह गया
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टैग : अँधेरा
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सर-ज़मीन-ए-शाम में तारा गिरा है टूट कर
या अँधेरी रात में जुगनू चमक कर रह गया
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ये भी क़िस्मत का लिखा अपनी कि उस ने यारो
ले के ख़त हाथ से क़ासिद की न मेरा खोला
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टैग : क़ासिद
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ये भी क़िस्मत का लिखा अपनी कि उस ने यारो
ले के ख़त हाथ से क़ासिद की न मेरा खोला
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क्यूँ न रश्क आए गुल-ए-सुर्ख़ पे शबनम को देख
कि मेरा अश्क तेरी कान का गौहर न हुआ
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टैग : गुल
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देखो कू-ए-यार में मत हज़रत-ए-दिल राह-ए-अश्क
इंतिज़ार-ए-क़ाफ़िलः मंज़िल पे क्यूँ खींचे हैं आप
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अफ़्सोस अदम से आ के क्या किया हम ने गुलशन-ए-हस्ती में
जूँ शबनम-ओ-गुल रोया न हँसा ये भी न हुआ वो भी न हुआ
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आप से आए नहीं हम सैर करने बाग़बाँ
लाई है बाद-ए-सबा गुलशन में लिपटा कर लगा
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ये भी क़िस्मत का लिखा अपनी कि उस ने यारो
ले के ख़त हाथ से क़ासिद की न मेरा खोला
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गदा को क्यूँ न सय्याही की लज़्ज़त हो कि होता है
नया दाना नया पानी नया इक और घर पैदा
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टैग : घर
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नामा-ए-लख़्त-ए-दिल उस बे-दीद तक पहुँचा मिरा
आज फिर ऐ क़ासिद-ए-अश्क-ए-रवाँ बहर-ए-खु़दा
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टैग : क़ासिद
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सुब्ह नहीं बे-वज्ह जलाए लाले ने गुलशन में चराग़
देख रुख़-ए-गुलनार-ए-सनम निकला है वो लाला फूलों का
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आतिशीं रुख़ पर तिरे देखे अरक़-आलूद ख़त
जिस ने गर सब्ज़ा कभू देखा न हो तर आग में
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ऐ सबा क्या मुँह है जो दा'वा-ए-हम-रंगी करे
देख कर गुलशन में फूलों के कटोरों को हिना
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इंतिज़ार-ए-क़ासिद-ए-गुम-गश्ता ने मारा 'नसीर'
किस तरह उड़ जाइए कूचे में उस के पर लगा
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ख़त के आने से पड़ा है शोर मुल्क-ए-हुस्न में
दान कर सूरज-गहन कहते हैं ऐ दिलबर लगा
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नहीं लख़्त-ए-जिगर ये चश्म में फिरते कि मर्दुम ने
चराग़ अब करके रौशन छोड़े हैं दो-चार पानी में
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ऐ क़ासिद-ए-अश्क़-ओ-पैक सबा उस तक न पयाम-ओ-ख़त पहुँचा
तुम क्या करो हाँ क़िस्मत का लिखा ये भी न हुआ वो भी न हुआ
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देखते थे तख़्ता-ए-गुल-हा-ए-आतिश की बहार
जिस तरह यारो ख़लीलुल्लाह पयम्बर आग में
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ऐ क़ासिद-ए-अश्क़-ओ-पैक सबा उस तक न पयाम-ओ-ख़त पहुँचा
तुम क्या करो हाँ क़िस्मत का लिखा ये भी न हुआ वो भी न हुआ
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इ'श्क़ में तेरे गुल खा कर जान अपनी दी है 'नसीर' ने आह
इस के सर-ए-मरक़द पर गुल रोला कोई दोना फूलों का
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कोई उस का हो गरेबाँ-गीर ये कहता नहीं
बाग़बाँ दामान-ए-गुल को गुल पे क्यूँ खींचे हैं आप
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रुख़ पे हर सूरत से रखना गुल-रुख़ाँ ख़त का है कुफ़्र
देखो क़ुरआँ पर न रखियो बोस्ताँ बहर-ए-ख़ुदा
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आब में साया-फ़गन गिर रुख़-ए-दिलबर होता
शाख़-ए-हर-मौज से पैदा गुल-ए-अह्मर होता
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समझ कर साँप उस को वो गले से मेरे आ लिपटा
जो शब बिस्तर पे देखा गुल-बदन ने हार का साया
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आतिश-ए-दोज़ख़ का हम तर-दामनों को क्या है ख़ौफ़
वा’इज़ा जलती नहीं है हैज़म-ए-तर आग में
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इ'श्क़ की दौलत दिल-ए-मुज़्तर का है घर आग में
क्यूँ न हो इक्सीर पार: कुश्त: हो गर आग में
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इंतिज़ार-ए-क़ासिद-ए-गुम-गश्ता ने मारा 'नसीर'
किस तरह उड़ जाइए कूचे में उस के पर लगा
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दर पे लगवाता है गर अपने शहीदों की सबील
तो फिर ऐ क़ातिल लगा तू आब-ख़ोरों को हिना
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कान का बाला है या गिर्दाब-ए-बहर-ए-हुस्न है
कश्ती-ए-दिल को जो मेरी अब डुबा जाते हो तुम
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'नसीर'-ए-खस्तः-जाँ जन्नत से इस कूचे को कब बदले
ब अज़ ज़िल्ल-ए-हुमा है यार की दीवार का साया
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सोज़-ए-ग़म से तन ज़े-बस हम-दोश-ए-ख़ाकिस्तर रहा
उस से जो चमका शरर रू-पोश-ए-ख़ाकिस्तर रहा
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सूरत-ए-हस्ती में फिर देखेंगे शक्ल-ए-रफ़्तगाँ
अब तलक आईना हम-आग़ोश-ए-ख़ाकिस्तर रहा
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पर करामत है क़बा-ए-सुर्ख़ में तेरी कमर
वर्नः मू साबित नहीं रहता है दिलबर आग में
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एक शब तू बैठ मेरे हल्का-ए-आग़ोश में
यार-ए-मह-पैकर क़दम हाले से मत बाहर उठा
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere