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Sufinama
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शम्स फ़िरंगी महल्ली

लखनऊ, भारत

शम्स फ़िरंगी महल्ली के अशआर

सिसकते होंगे लाखों सैंकड़ों बे-दम पड़े होंगे

सुन क़ासिद यही अच्छा निशान-ए-कू-ए-क़ातिल है

बहार आई है गुलशन में वही फिर रंग-ए-महफ़िल है

किसी जा ख़ंदा-ए-गुल है कहीं शोर-ए-अ’नादिल है

बहार आई है गुलशन में वही फिर रंग-ए-महफ़िल है

किसी जा ख़ंदा-ए-गुल है कहीं शोर-ए-अ’नादिल है

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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