शम्स फ़िरंगी महल्ली के अशआर
सिसकते होंगे लाखों सैंकड़ों बे-दम पड़े होंगे
सुन ऐ क़ासिद यही अच्छा निशान-ए-कू-ए-क़ातिल है
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बहार आई है गुलशन में वही फिर रंग-ए-महफ़िल है
किसी जा ख़ंदा-ए-गुल है कहीं शोर-ए-अ’नादिल है
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टैग : गुलशन
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बहार आई है गुलशन में वही फिर रंग-ए-महफ़िल है
किसी जा ख़ंदा-ए-गुल है कहीं शोर-ए-अ’नादिल है
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टैग : गुल
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere