सूफ़ी के सूफ़ी लेख
हज़रत शाह-ए-दौला साहब-मोहम्मदुद्दीन फ़ौक़
शाह सय्यदा साहब: जिस ज़माना का हम ज़िक्र करते हैं ये वो ज़माना है जब कि ग्यारहवीं सदी हिज्री अपनी उ’म्र का चौथाई हिस्सा तय कर रही थी।नूरुद्दीन जहाँगीर शंहशाह-ए-हिन्दुस्तान अपनी पुर-अम्न और पुर-शौकत सल्तनत से ख़ल्क़ुल्लाह को फैज़ पहुंचा रहा था।सियालकोट
सुल्तान सख़ी सरवर लखदाता-मोहम्मदुद्दीन फ़ौक़
आबा-ओ-अज्दाद पौने सात सौ साल का ज़िक्र है कि एक बुज़ुर्ग ज़ैनुल-आ’बिदीन नाम रौज़ा-ए-रसूल-ए-पाक के मुजाविरों में थे।इसी हाल में वहाँ उनको बरसों गुज़र गए।रसूल-ए-करीम की मोहब्बत से सरशार और रौज़ा-ए-अक़्दस की ख़िदमात में मस्त थे कि ख़ुद आँ-हज़रत सलल्ल्लाहु
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere