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ज़ैबुन्निसा बेगम

1638 - 1701 | दिल्ली, भारत

मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब की साहिब-ज़ादी और अदीब-ओ-शाइ’रा

मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब की साहिब-ज़ादी और अदीब-ओ-शाइ’रा

ज़ैबुन्निसा बेगम का परिचय

उपनाम : 'मख़्फ़ी'

मूल नाम : ज़ैबुन्निसा बेगम

जन्म : 01 Feb 1638 | दिल्ली

निधन : 01 May 1701 | दिल्ली, भारत

 

ज़ैबुन्निसा मुग़ल बादशाह मुहीउद्दीन औरंगज़ेब आ’लमगीर की बेटी थीं। 15 फरवरी 1638 में दिलरस बानो के बत्न से पैदा हुईं थीं। शाही दरबार की रिवायत के मुताबिक़ क़िला’-ए-मुअ’ल्ला के महल्लात और गिर्द-ओ-नवाह के इ’लाक़े को सजाया गया था और शादियाने बजाए गए थे। बाज़ारों की रौनक़ को चार-चांद लग गया था। उनकी तर्बियत-ओ-आमोज़िश के लिए दरबार में ही हाफ़िज़ और उस्ताद का इंतिज़ाम किया गया। उन्होंने 8 साल की उ’म्र में क़ुरआन हिफ़्ज़ कर लिया था। हिफ़्ज़-ए-क़ुरआन के बा’द शाही दरबार की जानिब से आ’ला ता’लीम के लिए मज़ीद मुअ’ल्लिमात और मुअ’ल्लिम दरबार में मद्ऊ’ किए गए जिसमें ईरान से तशरीफ़ लाए मुल्ला सई’द अशरफ़ माज़न्दरानी भी थे। उनको ज़ैबुन्निसा की ता’लीम के लिए मुक़र्रर कर दिया गया। मुल्ला सई’द अशरफ़ शाइ’री के फ़न से भी ख़ूब वाक़िफ़ थे। ज़ैबुन्निसा को उनसे ही अपने शाइ’री के फ़ितरी ज़ौक़ को परवान चढ़ाने में मदद मिली। उन्होंने 21 साल की उ’म्र में मुल्ला सई’द से इ’ल्म-ए-हदीस, इ’ल्म-ए-फ़िक़्ह के अ’लावा इ’ल्म-ए-हैयत वग़ैरा दूसरे उ’लूम भी हासिल किए । ज़बान-ए-फ़ारसी के साथ उन्होंने अ’रबी ज़बान-ओ-अदब का भी ख़याल बराबर रखा और अ’रबी ज़बान का सबसे पहला कलाम उनका हम्द है जो क़सीदा के तर्ज़ पर है। औरंगज़ेब को शे’र-ओ-शाइ’री से कोई फ़ितरी लगाव न था और शे’र-गोई पसंद भी नहीं करते थे। यही वजह थी कि औरंगज़ेब के दरबार में कोई शाइ’र न था। ज़ैबुन्निसा ने अपने वालिद की पसंद के बर-ख़िलाफ़ शाइ’री को अपना मक़्सद-ए-हयात बनाया लेकिन वालिद की ना-पसंदीदगी का ख़ौफ़ उन पर इतना तारी रहता कि सिर्फ़ 14 बरस की उ’म्र में ही शे’र कहना शुरूअ’ कर दिया था लेकिन उसको कभी ज़बान-ज़द नहीं करती थीं। बल्कि जो कहतीं एक ब्याज़ पर लिख लेतीं और उसको छुपा कर रखतीं कि कहीं वालिद की नज़र न पड़ जाए। ज़ैबुन्निसा की इस मख़्फ़ी पसंद का इ’ल्म उनके उस्ताद मुल्ला सई’द को था और वो उनके अश्आ’र की इस्लाह के साथ-साथ उनकी हौसला-अफ़ज़ाई भी करते थे। ‘नासिर’ अ’ली सरहिंदी, मिर्ज़ा मुहम्मद अ’ली, मुल्ला हरगिनी, आ’क़िल ख़ाँ राज़ी, बहरोज़, ने’मत ख़ाँ अ’ली वग़ैरा ख़ुश-गो और नुक्ता-संज शो’रा शहज़ादी ज़ैबुन्निसा के मुआ’सिरीन में से थे। ज़ैबुन्निसा का दरबार हक़ीक़त में एक एकेडमी (बैतुल-उ’लूम) था। हर-फ़न के आ'लिम-ओ-फ़ाज़िल वहाँ तहक़ीक़ किया करते थे और तस्नीफ़-ओ-तालीफ़ का काम होता रहता था। ये सारी तसानीफ़ उ’मूमन ज़ैबुन्निसा को मौसूम होतीं और हर तस्नीफ़ के उ’न्वान से पहले ज़ेब लफ़्ज़ जुड़ा रहता। इस से अक्सर तज़्किरा-नवीस और मुहक़्क़िक़ीन को धोका हुआ है और उन्होंने वो सारी किताबें ज़ैबुन्निसा की तसानीफ़ में शुमार कर ली हैं। ज़ैबुन्निसा ने जो किताबें तसनीफ़ कराईं उनमें क़ाबिल-ए-ज़िक्र तफ़्सीर-ए-कबीर का तर्जुमा है। उनके मौजूदा दीवान में सिर्फ़ “दीवान-ए-मख़्फ़ी ही दस्तयाब है। उन्होंने शादी नहीं की थी। 1701 ई’स्वी में अपने वालिद से 6 साल क़ब्ल वफ़ात पाई।

 


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