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सूफ़ी कहावत
कर्दनी ख़्वेश, आमदनी पेश, न की हो तो कर के देख
कर्दनी ख़्वेश, आमदनी पेश, न की हो तो कर के देखजैसा करोगे वैसा पाओगे। यदि न किया हो तो कर के देख लो
वाचिक परंपरा
सूफ़ी लेख
बिहार में क़व्वालों का इतिहास
बद्र-उल-हसन एमादी लिखते हैं कि-‘‘उनके सम्मान में फ़र्क़ आ गया, बुढ़ापा बुरी बला है, आफ़ियत की
रय्यान अबुलउलाई
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सूफ़ी लेख
चिश्तिया सिलसिला की ता’लीम और उसकी तर्वीज-ओ-इशाअ’त में हज़रत गेसू दराज़ का हिस्सा
ख़लीक़ अहमद निज़ामी
सूफ़ी लेख
ख़्वाजा-ए-ख़्वाजगान हज़रत ख़्वाजा मुई’नुद्दीन चिश्ती अजमेरी - आ’बिद हुसैन निज़ामी
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
सुल्तान सख़ी सरवर लखदाता-मोहम्मदुद्दीन फ़ौक़
दरगाह के मुजाविरजो ज़ाइरीन बाहर से आते हैं वो सब मुजाविरों के घरों पर उतरते हैं
सूफ़ी
व्यंग्य
मुल्ला नसरुद्दीन- तीसरी दास्तान
ख़ोजा नसरुद्दीन ने कहाः "लेकिन आप सौर (वृष) की रास में बैठे सितारे अल-दबारां को भूल
लियोनिद सोलोवयेव
सूफ़ी कहानी
कहानी -20-परवरिश- गुलिस्तान-ए-सा’दी
'जो दानी हैं उनके पास पैसा नहीं है और जो पैसे वाले हैं उनमे रहम नहीं
सादी शीराज़ी
सूफ़ी लेख
Sheikh Naseeruddin Chiragh-e-Dehli
हज़रत कि ख़ानक़ाह में मुरीदों से अच्छी तरह पड़ताल की जाती थी कि किसी तरह उनका
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
समाअ और क़व्वाली का सफ़रनामा
हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह पर मुन्हसिर क़व्वालों को आज भी साल मे तीन दफ़ा ख़ुराक
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
समाअ और क़व्वाली का सफ़रनामा
हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह पर मुन्हसिर क़व्वालों को आज भी साल मे तीन दफ़ा ख़ुराक
सुमन मिश्रा
सूफ़ी कहानी
कहानी -16-राजनीति- गुलिस्तान-ए-सा’दी
मेरा एक दोस्त मुझसे शिकायत करने लगा कि, ज़माना बड़ा ख़राब है। मेरी आमदनी थोड़ी है
सादी शीराज़ी
सूफ़ी लेख
रेडियो और क़व्वाली
एक सबसे बड़ी अफ़सोसनाक बात ये है कि ख़ुद क़व्वाली के फ़नकार भी अभी तक क़व्वाली
अकमल हैदराबादी
सूफ़ी लेख
ग्रामोफ़ोन क़व्वाली
प्रसिद्ध किताब ‘सियर-उल-औलिया’ में कई पेशेवर क़व्वालों का ज़िक्र आया है। इससे पता चलता है कि