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सूफ़ी लेख
ख़्वाजा बुज़ुर्ग शाए’र के लिबास में - ख़्वाजा मा ’नी अजमेरी
एक ज़माना से ये हिकायत नक़्ल-ओ-रिवायत के ज़ीने तय कर के बाम-ए-शोहरत पर पहुँच चुकी है
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
Sheikh Naseeruddin Chiragh-e-Dehli
जी हाँ ! दरबान से जवाब दिया । बिलकुल यही वजह है । तुमने सूफ़ियों का
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
कबीर दास
आह मेके में, लिबास-ए-उ’रूसी दाग़दार हो गया। इस इ’श्क़-ओ-मोहब्बत के रंगरेज़ का हाल किस को मा’लूम
ज़माना
सूफ़ी लेख
सतगुरू नानक साहिब
ज़ुल्फ़ों वाले नानक, आँखों वाले नानक की ता’लीम बुलंद हो कि उसकी बुलंदी हिन्दुस्तान के गुरु
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
जौनपुर की सूफ़ी परंपरा
अर्थात – मैं अपनी गुदड़ी शाहों के अतलसी लिबास के बदले नहीं दे सकता और अपनी
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
दाता गंज-बख़्श शैख़ अ'ली हुज्वेरी
जो कुछ ख़ुदा तआ’ला ’इनायत करे उस पर राज़ी रह, और अगर वो बे-वतनी देवे तो
डाॅ. ज़ुहूरुल हसन शारिब
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ अबुल हसन अ’ली हुज्वेरी रहमतुल्लाह अ’लैहि
चौथे बाब में सूफ़ियों के लिबास पर तीन फ़स्लों में बह्स की है। सूफ़ी सुन्नत-ए-रसूल की
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
अमीर ख़ुसरो के अ’हद की देहली - हुस्नुद्दीन अहमद
ई’द के दिन ख़तीब हाथी पर सवार होता।हाथी की पुश्त पर एक चीज़ तख़्त के मुशाबिह
मुनादी
सूफ़ी लेख
मंसूर हल्लाज
अव़्वल अव़्वल तो बात कुछ टलती नज़र आई और उ’लमा यका-य़क क़त्ल का फ़त्वा देने पर