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औघट शाह वारसी

1874 - 1952 | मुरादाबाद, भारत

हाजी वारिस अ’ली शाह के मुरीद और अपनी सूफ़ियाना शाइ’री के लिए मशहूर

हाजी वारिस अ’ली शाह के मुरीद और अपनी सूफ़ियाना शाइ’री के लिए मशहूर

औघट शाह वारसी के दोहे

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सजनी पाती तब लिखूँ जो पीतम हो परदेस

तन में मन में पिया बिराजैं भेजूँ किसे सँदेस

दया बराबर धर्म नहीं प्रपंच बराबर पाप

प्रेम बराबर जोग नहीं गुरु-मंत्र बराबर जाप

पीतम तुमरे संग है अपना राज सुहाग

तुम नहीं तो कुछ नहीं तुम मिले तो जागे भाग

जाप जोग तप तीर्थ से निर्गुण हुआ कोई

'औघट' गुरु दया करें तो पल में निर्गुण होई

हर हर में 'औघट' हर बसें हर हर को हर की आस

हर को हर हर ढूँड फिरा और हर हैं हर के पास

दया गुरु की दिन दूनी और गुरु छोड़े हाथ

गुरु बसे संसार में और गुरु हमारे साथ

'औघट' पूजा-पाट तजो लगा प्रेम का रोग

सत्त-गुरु का ध्यान रहे यही है अपना जोग

कान खोल 'औघट' सुनो पिया मिलन की लाग

तन तम्बूरः साँस के तारों बाजे हर का राग

साईं ऐसा मगन करो रहे सोंंच-बिचार

दुक्ख में सुख में क्लेस में गाऊँ भजन तिहार

हाथ आता पीटते 'औघट' सदा लकीर

सदक़े अपने पीर के जिस ने किया फ़क़ीर

पाती लिखना भूल है सजनी चतुर हैं दीन-दयाल

आस ग्यानी दूसर नहीं कि जानें मन का हाल

हर कहीं और कहीं नहीं और बदले पल-पल भेस

ऐसे पिया हरजाई को भेजूँ कहाँ सन्देस

रोके काम कामना इंद्री राखे साध

सुंदर के तब दर्शन करे नहीं तो है अपराध

अगम समंदर पाप का बोझा नाव फँसी मंजधार

'औघट' गुरु का ध्यान रहे करेंगे बेड़ा पार

गुरु हमारा जन्म का राजा-गुरु हमारा आदि

'औघट' गुरु-मंत्र को जापो गुरु की राखो याद

जोगी भोग वह करे जो बिन माँगे मिल जाये

'औघट' दुनिया यूँ तजे कि मन में लोभ आए

साधू 'औघट' सबद को साधे जोगी करे सब जोग

इस डगरिया मिलें गोसाईं नदी नाव संजोग

राम मिलन का लेखासन ले हाथ गुरु का थाम

जग की ममता मन से छूटे मिलेंगे 'औघट' राम

साईं का घर दूर है और साईं मन के तीर

साईं से ब्यौहार करे 'औघट' वही फ़क़ीर

मुक्ति होवे कलेस कटे छुटे जन्म का पाप

सत्त-गुरु के नाम का 'औघट' हृदय माला जाप

देखे पंडित साधू जोगी संतः-साध मलंग

प्रेम का भगती एक पाया 'औघट' चार अलंग

'औघट' घट में प्राण बसे और प्राण बीच इक चोर

जो पकड़े उस चोर को वो जोगी बर जोर

रैन अँधेरी बाट समझी ताक में हैं हर बार

'औघट' धर्म ये राखना गुरु करें निस्तार

पीतम सौत सुंदर सही पर हमें भी तुमरे आस

भूले-भटके आओ गोसाईं कभी तो हमरे पास

गुरु हमारा एक है और बचन हमारा एक

करेंगे सेवा एक की गुरु जो राखे टेक

नारायण का अंत पाया माला जप का कीन

राम मिलन की बुध सुन 'औघट' पहले गुर को चीन्ह

चेला नैन जोत गुरु ज्ञानी बचन ये बूझ

बिन जोत नैन आँधर औगुन बिन गुर पड़े सूझ

बाँह गही मुझ पापन की तब एक बचन सुन लेओ

निस दिन बिपता पड़े गोसाईं अपना दर्शन देओ

'औघट' चेला वह गुणी जो बिन गुरु तजै साँस

सोते जगते ध्यान रहे गुरु को राखे पास

गुरु-गोबिंद को एक बिचारौ दुबिधा दुक्ख निकाल

गुरु को 'औघट' और न-जानो गुरु-धन दीन-दयाल

'औघट' बाजें राम के बाजन सुन लो सीस झुकाय

आसन मारो सबद को साधू मन से ध्यान लगाय

काया की ममता तजौ और अपनी सुध बिस्राओ

मोहन मुरली आन सुनाएँ ऐसा ध्यान जमाओ

'औघट' मस्जिद मंदिर भीतर एक ध्यान समाए

पीछे देवें राम दरस जो पहले दुबिधा जाये

नैनन नीर बहाए के पूँजी गए सब हार

'औघट' हाथ पसार चले साईं के दरबार

सोते सारी रैन कटी भोर भए अब चेत

'औघट' चिड़िया काल की चुगेगी तेरा खेत

'औघट' गया प्रयाग में मिला वो करतार

गुर की दया से दिख पड़ा टट्टी ओठ शिकार

पाती लिखूँ तो भूल बड़ी बिथा कहे अज्ञान

जानत हैं वो बिन कहे पीतम चतुर सुजान

'औघट' जोगी वो बने बाँधै वही लँगोट

तजी कुटुम की मामता और होय मन की खोट

बूढ़ी मूरत पीर कहावे मेरा पीर जवान

'औघट' अपने पीर की सूरत को पहचान

मधु पियो प्रेम का बन में करो स्थान

मन-मोहन के दरमियान में 'औघट' तजो प्राण

'औघट' जनम में एक बेर सती होत है नार

प्रेम अगन में जले प्रेमी दिन में सौ सौ बार

दुखिया रहै प्रेम का भगती नैनन नीर बहाए

भूले भी सुख पास आवे मन की पीर कल्पाए

अन-होनी के सोंंच में बिसरि हर की याद

जन्म अमूल लिख अपना 'औघट' हुआ बर्बाद

अपनी गाँठ कौड़ी नहीं पिरोहनी हैं दीन-दयाल

'औघट' जग में धनी का दासी होत नहीं कंगाल

'औघट' साँच को आँच लागे जानत है संसार

साईं धनी है दुक्ख आवे साँचा रहे बेहवार

'औघट' हर को चार अलंग ढूँढत है संसार

बग़ल में बच्चा नगर ढिंढोरा उस का नहीं बिचार

'औघट' जोग जोगी करे राम मिलन की आस

प्रेम ध्यान वो जोग है जो करे धर्म की नास

ज्ञानी पंडित यूँ कहें सूर्ज की देखो धूप

सुंदर त्रिया सुडौल पुत्र नारायण का रूप

आसन मारो दुबिधा छाँड़ो अपनी सुध बिस्राओ

मिलेंगे काया-कोट में प्रभु 'औघट' कहीं न-जाओ

लक्कड़ तापै धर्म बढ़े तपशी कहावे संत

प्रेम-अगन 'औघट' करे दीन-धरम बिसमंत

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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