अमीर बख़्श साबरी के अशआर
जब से लगी है आँख भी मेरी लगी नहीं
ये आतिश-ए-फ़िराक़ है रहती दबी नहीं
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किसी की तेग़-ए-अदा ने क़ज़ा का काम किया
हमें तमाम किया अपना ख़ूब नाम किया
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निराले की निराली हर अदा है
जिधर देखो उधर जल्वा-नुमा है
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टैग : अदा
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere