बाँके लाल के अशआर
कुछ तो कर खौफ़-ए-खुदा दिल में ऐ ज़ालिम अपने
दिल-ए-उ’श्शाक़ को इस तरह़ से बर्बाद न कर
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हँसी कहाँ मज़ाक़ कहाँ दिल-लगी कहाँ
वह जोश-ए-इर्तेबात कहाँ वो ख़ुशी कहाँ
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आह-ओ-फ़ुग़ाँ है शोर है नाला है दर्द है
ग़म है अलम है यास है लब पर हंसी कहाँ
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है मक़्तल में क़ातिल के इक वार का
कलेजा हुआ सर हुआ दिल जुदा
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ग़म-ओ-हस्रत-ओ-दर्द रंज-ओ-तअ’ब
मोहब्बत में तेरी ये हासिल हुआ
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere