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हाजी वारिस अली शाह

1817 - 1905 | देवा, भारत

हाजी वारिस अली शाह

सूफ़ी उद्धरण 39

मुरीद-ए-सादिक़ वो है जो अपने पीर को हर ऐब से पाक माने।

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असल मुरीद वो है जिसकी तमन्ना सिर्फ़ उसका पीर हो।

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इस्लाम और चीज़ है और ईमान दूसरी चीज़।

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जो मुरीद अपने पीर को दूर समझे वो अधूरा है। और जो पीर मुरीद से दूर हो वो भी अधूरा है।

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मुरीद को पीर से यूँ मिलना चाहिए जैसे क़तरा दरिया से, जब तक अलग है, क़तरा कहलाता है, जब मिल जाए, तो पूरा दरिया बन जाता है।

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फ़ारसी कलाम 5

 

कलाम 2

 

ना'त-ओ-मनक़बत 2

 

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