मुईन निज़ामी के अशआर
लगते हैं ये मेहर-ओ-माह-ओ-अंजुम
देहली के चराग़ ही का परतव
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मेरा दम भी समा'अ' में निकले
अब यही है इक आरज़ू ख़्वाजा
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टैग : आरज़ू
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गिर्दाब-ए-गुनाह में फँसे हैं
दामान-ए-दिल-ओ-निगाह-तर है
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टैग : गुनाह
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere