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क़मर जलालवी

1887 - 1968 | कराची, पाकिस्तान

हिंद-ओ-पाक का एक बेहतरीन उस्ताद शाइ’र

हिंद-ओ-पाक का एक बेहतरीन उस्ताद शाइ’र

क़मर जलालवी

ग़ज़ल 11

शे'र 3

 

कलाम 10

क़िता' 4

 

सलाम 1

 

वीडियो 10

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आँसू किसी का देख कि बीमार मर गया

अज्ञात

उन की तरफ़ से तर्क-ए-मुलाक़ात हो गई

नुसरत फ़तेह अली ख़ान

ऐ मिरे हम-नशीं चल कहीं और चल इस चमन में अब अपना गुज़ारा नहीं

अज्ञात

कहते हैं मुझ से 'इश्क़ का अफ़्साना चाहिए

नुसरत फ़तेह अली ख़ान

कोई मुश्किल था महशर में तुम्हें क़ातिल बना देना

नुसरत फ़तेह अली ख़ान

न रुकते हैं आँसू न थमते हैं नाले

नुसरत फ़तेह अली ख़ान

भला अपने नालों की मुझ को ख़बर क्या शब-ए-ग़म हुई थी कहाँ तक रसाई

नुसरत फ़तेह अली ख़ान

मज़ा जब है कि अपनी यूँ बसर हो

साबरी ब्रदर्स

मरीज़-ए-मोहब्बत उन्हीं का फ़साना सुनाता रहा दम निकलते निकलते

अज्ञात

मिरा ख़ामोश रह कर भी उन्हें सब कुछ सुना देना

आबिदा परवीन

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