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रहीम

1553 - 1626 | आगरा, भारत

अब्दुर्रहीम ख़ान-ए-ख़ानां एक अच्छे शाइ’र और क़िस्सा-गो थे, वो इ’ल्म-ए-नुजूम के अ’लावा उर्दू और संस्कृत ज़बान के एक फ़सीह-ओ-बलीग़ शाइ’र थे, पंजाब के नौशहर ज़िला’ में एक देहात को उनके नाम ख़ान ख़ानख़ाना से मौसूम किया गया है

अब्दुर्रहीम ख़ान-ए-ख़ानां एक अच्छे शाइ’र और क़िस्सा-गो थे, वो इ’ल्म-ए-नुजूम के अ’लावा उर्दू और संस्कृत ज़बान के एक फ़सीह-ओ-बलीग़ शाइ’र थे, पंजाब के नौशहर ज़िला’ में एक देहात को उनके नाम ख़ान ख़ानख़ाना से मौसूम किया गया है

रहीम

पद 2

 

दोहा 140

रहिमन पानी राखिये बिनु पानी सब सून

पानी गए ऊबरे मोती मानुष चून

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बड़े बड़ाई ना करैं बड़ो बोलैं बोल

'रहिमन' हीरा कब कहै लाख टका मो मोल

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रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो छिटकाय

टूटे से फिर ना मिले मिले गाँठ पड़ जाय

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रहिमन बात अगम्य की कहन सुनन की नाहिं

जे जानत ते कहत नहि कहत ते जानत नाहिं

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रहिमन चुप ह्वै बैठिए देखइ दिनन को फेर

जब नीके दिन आइहैं बनत लगिहै देर

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छंद 1

 

सोरठा 7

बरवै 1

 

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