शाह आलम सानी का परिचय
शाह-आ’लम सानी का अस्ल नाम मिर्ज़ा अ’ब्दुल्लाह था। बचपन में घर वाले उन्हें लाल मियाँ और मिर्ज़ा बुलाक़ी के नाम से भी पुकारते थे। 17 ज़ी-क़ा’दा 1140 हिज्री मुवाफ़िक़ 15 जून 1728 ई’स्वी को लाल क़िला’, देहली में पैदा हुए। शाह-आ’लम सानी मुग़लिया सल्तनत के सोलहवीं बादशाह गुज़रे हैं जिन्हों ने 1760 ई’स्वी से 1806 ई’स्वी तक हिन्दुस्तान में बादशाहत की। मुग़लिया सल्तनत का ज़वाल आ’लम सानी से शुरूअ’ हो चुका था और हुकूमत देहली से पालम तक सिमट कर रह गई थी और अंग्रेज़ हिन्दुस्तान पर क़ाबिज़ हो गए थे। शाह-आ’लम सानी अ’ज़ीज़ुद्दीन आ’लम-गीर सानी के बेटे और अपने वालिद के जाँनशीन थे। उन्होंने आ’ला ता’लीम पाई थी। मज़हबी उ’लूम के साथ इ’ल्म-ए-तारीख़ और इस्लामियात पर भी उ’बूर हासिल था। आ’लम सानी कई ज़बान के जानने वाले थे। तख़ल्लुस आफ़्ताब करते थे। नज़्म के अ’लावा नस्र भी लिखा करते थे| उन्हें अ’ब्दुर्रहमान एहसान देहलवी से फ़न्न-ए-शाइ’री में तलम्मुज़ हासिल था। शाह-आ’लम सानी आख़िरी वक़्त में बीनाई से महरूम हो गए थे मगर उसके बावजूद हुकूमत का इंतिज़ाम-ओ-इंसिराम ख़ुद किया करते थे। शाह-आ’लम बुज़ुर्गों और सूफ़ियों से गहरी अ’क़ीदत रखते थे और बराबर किसी सूफ़ी की ख़ानक़ाह में क़याम-पज़ीर रहा करते थे| चुनाँचे इसी सिलसिला में बंगाला के सफ़र के दौरान दानापुर में भी क़याम किया था और सूफ़ियों की ख़ानक़ाह में दाल, चावल और आचार वग़ैरा तनावुल फ़रमाया था जिसका तज़्किरा कंज़ुल-अन्साब जैसी कुतुब में वज़ाहत के साथ मिलता है। शाह-आ’लम सानी का इंटीक़ाल 78 बरस की उ’म्र में 19 नवंबर 1806 ई’स्वी में लाल क़िला’ में हुआ और वहीं दफ़्न हुए।