شیخ احمد کھٹّو کے دوہے
तू जाने करतार, जी मुझ साजन बे-पीरा।
सांई ही की सार, पांजर मां जोबन बसे।।
तती बंधी कंजी, ज्यूं घन ओझल होय।
मूरख राखै नैन, मूंह के राखे होय।।
दूखा काजल जे करुँ, तो सोकन दुःख दीन्ह।
न पियु देखन दीन्ह मुझ, न आप देख सकीन्ह।।
दिपती बुझती एक पल, जानो बरस पचास।
जीकन देख दीस की, बरस न अंत न मास।।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere