Font by Mehr Nastaliq Web
Wasif Ali Wasif's Photo'

वासिफ़ अली वासिफ़

1929 - 1993 | लाहौर, पाकिस्तान

पाकिस्तान की मशहूर रुहानी शख़्सियत और मुमताज़ मुसन्निफ़

पाकिस्तान की मशहूर रुहानी शख़्सियत और मुमताज़ मुसन्निफ़

वासिफ़ अली वासिफ़ के सूफ़ी उद्धरण

642
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

बेदार कर देने वाला ग़म ग़ाफ़िल कर देने वाली ख़ुशी से ब-दर्जहा बेहतर है।

बदी की तलाश हो तो अपने अंदर झाँको, नेकी की तमन्ना हो तो दूसरों में ढूंढ़ो।

लोग दोस्त को छोड़ देते हैं बहस को नहीं छोड़ते।

दिल से कड़वाहट निकालो... शांति मिलेगी।

इतना फैलो कि सिमटना मुश्किल हो, उतना हासिल करो कि छोड़ते वक़्त तकलीफ़ हो।

अच्छे लोगों का मिलना एक अच्छे भविष्य की ज़मानत है।

वो शख़्स अल्लाह को नहीं मानता जो अल्लाह का हुक्म नहीं मानता।

हमारे बा’द दुनिया वैसी ही बाक़ी रहेगी, जैसी हमारे आने से पहले थी।

दुनिया क़दीम है लेकिन इसका नयापन कभी ख़त्म नहीं होता।

बेहतरीन कलाम वही है जिसमें अल्फ़ाज़ कम और मा’नी ज़्यादा हों।

उस की अ’ताओं पर अल-हम्दु-लिल्लाह और अपनी ख़ताओं पर अस्तग़फ़िरुल्लाह करते ही रहना चाहिए।

राय बदल सकती है लेकिन तथ्य नहीं बदल सकता।

दूसरों की ख़ामी आपकी ख़ूबी नहीं बन सकती।

हम लोग फ़िरऔन की ज़िंदगी चाहते हैं और मूसा की आ’क़िबत।

हम सिर्फ़ ज़बान से अल्लाह अल्लाह कहते रहते हैं, अल्लाह लफ़्ज़ नहीं, अल्लाह आवाज़ नहीं, अल्लाह पुकार नहीं, अल्लाह तो ज़ात है मुक़द्दस-ओ-मावरा, उस ज़ात से दिल का तअ’ल्लुक़ है ज़बान का नहीं, दिल अल्लाह से मुतअ’ल्लिक़ हो जाए तो हमारा सारा वजूद दीन के साँचे में ढल जाना लाज़िमी है।

इन्सान का दिल तोड़ने वाला शख़्स अल्लाह की तलाश नहीं कर सकता।

ना-पसंदीदा इन्सान से प्यार करो उस का किर्दार बदल जाएगा।

दूर से आने वाली आवाज़ भी अंधेरे में रौशनी का काम करती है।

उ’रूज उस वक़्त को कहते हैं जिस के बा’द ज़वाल शुरू’ होता है।

हम एक अ’ज़ीम क़ौम बन सकते हैं अगर हम मुआ’फ़ करना और मुआ’फ़ी माँगना शुरू’ कर दें।

सुनने वाले का शौक़ ही बोलने वाले की ज़बान तेज़ करता है।

बच्चा बीमार हो तो माँ को दु’आ माँगने का सलीक़ा ख़ुद ब-ख़ुद जाता है।

दु’आ करने से बेहतर है कि किसी दु’आ करने वाले को पा लिया जाए।

दीन-ओ-दुनिया... जिस शख़्स के बीवी बच्चे उस पर राज़ी हैं, उस की दुनिया कामियाब है और जिसके माँ बाप उस पर ख़ुश हैं उस का दीन कामियाब।

आपका अस्ल साथी और आपकी सही पहचान आपके अंदर का इन्सान है, उसी ने इ’बादत करना है और उसी ने बग़ावत, वही दुनिया वाला बनता है और वही आख़िरत वाला, उसी के अंदर के इन्सान ने आपको जज़ा-ओ-सज़ा का मुस्तहिक़ बनाना है, फ़ैसला आपके हाथ में है, आप का बातिन ही आपका बेहतरीन दोस्त है और वही बद-तरीन दुश्मन, आप ख़ुद ही अपने लिए दुश्वारी-ए-सफ़र हो और ख़ुद ही शादाबी-ए-मंज़िल, बातिन महफ़ूज़ हो गया, तो ज़ाहिर भी होगा।

मनुष्य कार्य योजना या विचारधारा से प्रेम नहीं कर सकता, मनुष्य केवल मनुष्य से प्रेम कर सकता है।

मुआ’फ़ कर देने वाले के सामने गुनाह की क्या अहमियत? अ’ता के सामने ख़ता का क्या ज़िक्र?

मौत से ज़्यादा ख़ौफ़-नाक चीज़ मौत का डर है।

किसी चीज़ से इस की फ़ित्रत के ख़िलाफ़ काम लेना ज़ुल्म है।

ख़ुश-नसीब इन्सान वो है जो अपने नसीब पर ख़ुश रहे।

सबसे प्यारा इन्सान वो होता है जिसको पहली ही बार देखने से दिल ये कहे। ''मैंने उसे पहली बार से पहले भी देखा हुआ है''।

सूरज दूर है लेकिन धूप क़रीब है।

किसी के एहसान को अपना हक़ समझ लेना।

जो शख़्स इसलिए अपनी इस्लाह कर रहा है कि दुनिया उसकी ता’रीफ़-ओ-इ'ज़्ज़त करे तो उसकी इस्लाह नहीं होगी, अपनी नेकियों का सिला दुनिया से माँगने वाला इन्सान नेक नहीं हो सकता, रिया-कार उस आ’बिद को कहते हैं जो दुनिया को अपनी इ’बादत से डराना चाहे।

हुज़ूर की बात पर किसी और की बात को प्राथमिकता देना ऐसे है जैसे शिर्क।

छिन जाने के बा’द बहिश्त कीक़द्र होती है।

अपनी हस्ती से ज़्यादा अपना नाम फैलाओ नहीं तो परेशान हो जाओगे।

आज का इन्सान सिर्फ़ मकान में रहता है उस का घर ख़त्म हो गया।

पश्चिम के साथ उस वक़्त मुक़ाबला करो जब आप पूर्व बन जाओ।

मनुष्य भूल को छिपाने के लिए जितना प्रयास करता है, उतनी मेहनत में त्रुटि दूर की जा सकती है।

सबसे बड़ी ताकतसहनशक्ति है।

जिसने अपनी ज़िंदगी को क़ुबूल कर लिया उसने ख़ुदा को मान लिया।

इंकार इक़रार की एक हालत है, उसका एक दर्जा है, इंकार को इक़रार तक पहुंचाना, , बुद्धिमानी का काम है, उसी तरह कुफ़्र को इस्लाम तक लाना, ईमान वाले की ख़्वाहिश होना चाहिए।

काइनात का कोई ग़म ऐसा नहीं है जो आदमी बर्दाश्त कर सके।

ज़िंदगी ख़ुदा से मिली है ख़ुदा के लिए इस्ति’माल करें, दौलत ख़ुदा से मिली है ख़ुदा की राह में इस्ति’माल करें।

कुछ लोग ज़िंदगी में मुर्दा होते हैं और कुछ मरने के बा’द भी ज़िंदा।

एक इन्सान ने दूसरे से पूछा ''आपने ज़िंदगी में पहला झूट कब बोला''? दूसरे ने जवाब दिया ''जिस दिन मैंने ये ऐ’लान किया कि मैं हमेशा सच्च बोलता हूँ'।

केवल शब्दों ने ही मनुष्य को जानवरों से अधिक प्रतिष्ठित बना दिया है।

तौबा जब मंज़ूर हो जाती है तो याद-ए-गुनाह भी ख़त्म हो जाती है।

किसी का सुकून बर्बाद करो...सुकून मिल जाएगा।

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

Recitation

बोलिए