वासिफ़ अली वासिफ़ के सूफ़ी उद्धरण


बदी की तलाश हो तो अपने अंदर झाँको, नेकी की तमन्ना हो तो दूसरों में ढूंढ़ो।
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हम सिर्फ़ ज़बान से अल्लाह अल्लाह कहते रहते हैं, अल्लाह लफ़्ज़ नहीं, अल्लाह आवाज़ नहीं, अल्लाह पुकार नहीं, अल्लाह तो ज़ात है मुक़द्दस-ओ-मावरा, उस ज़ात से दिल का तअ’ल्लुक़ है ज़बान का नहीं, दिल अल्लाह से मुतअ’ल्लिक़ हो जाए तो हमारा सारा वजूद दीन के साँचे में ढल जाना लाज़िमी है।
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इतना फैलो कि सिमटना मुश्किल न हो, उतना हासिल करो कि छोड़ते वक़्त तकलीफ़ न हो।
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उस की अ’ताओं पर अल-हम्दु-लिल्लाह और अपनी ख़ताओं पर अस्तग़फ़िरुल्लाह करते ही रहना चाहिए।
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मनुष्य कार्य योजना या विचारधारा से प्रेम नहीं कर सकता, मनुष्य केवल मनुष्य से प्रेम कर सकता है।
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दीन-ओ-दुनिया... जिस शख़्स के बीवी बच्चे उस पर राज़ी हैं, उस की दुनिया कामियाब है और जिसके माँ बाप उस पर ख़ुश हैं उस का दीन कामियाब।
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हम एक अ’ज़ीम क़ौम बन सकते हैं अगर हम मुआ’फ़ करना और मुआ’फ़ी माँगना शुरू’ कर दें।
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आपका अस्ल साथी और आपकी सही पहचान आपके अंदर का इन्सान है, उसी ने इ’बादत करना है और उसी ने बग़ावत, वही दुनिया वाला बनता है और वही आख़िरत वाला, उसी के अंदर के इन्सान ने आपको जज़ा-ओ-सज़ा का मुस्तहिक़ बनाना है, फ़ैसला आपके हाथ में है, आप का बातिन ही आपका बेहतरीन दोस्त है और वही बद-तरीन दुश्मन, आप ख़ुद ही अपने लिए दुश्वारी-ए-सफ़र हो और ख़ुद ही शादाबी-ए-मंज़िल, बातिन महफ़ूज़ हो गया, तो ज़ाहिर भी होगा।
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गुरु की बात पर ऐसे यक़ीन करो जैसे मा'सूम बच्चा अपने माँ बाप की बात पर यक़ीन करता है, उस बे-यक़ीनी के दौर में यक़ीन का हासिल होना करामत से कम नहीं।
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इंकार इक़रार की एक हालत है, उसका एक दर्जा है, इंकार को इक़रार तक पहुंचाना, , बुद्धिमानी का काम है, उसी तरह कुफ़्र को इस्लाम तक लाना, ईमान वाले की ख़्वाहिश होना चाहिए।
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मुआ’फ़ कर देने वाले के सामने गुनाह की क्या अहमियत? अ’ता के सामने ख़ता का क्या ज़िक्र?
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यदि झूठा आदमी ईश्वर का वचन भी बोल दे तो उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।सत्य को व्यक्त करने के लिए सच्चे व्यक्ति की भाषा की आवश्यकता होती है। जितना बड़ा सच्चा, उतना बड़ा सच।
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जो लोग अल्लाह की तलाश में निकलते हैं वो इन्सान तक ही पहुंचते हैं, अल्लाह वाले इन्सान ही तो होते हैं।
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सबसे प्यारा इन्सान वो होता है जिसको पहली ही बार देखने से दिल ये कहे। ''मैंने उसे पहली बार से पहले भी देखा हुआ है''।
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जब इ’ज़्ज़त और ज़िल्लत अल्लाह की तरफ़ से है, रंज-ओ-राहत अल्लाह की तरफ़ से है, दौलत और ग़रीबी अल्लाह की तरफ़ से ज़िंदगी और मौत अल्लाह की तरफ़ से तो हमारे पास तस्लीम के अ’लावा क्या रह जाता है।
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere