ज़हीन शाह ताजी के अशआर
हर तमन्ना इ’श्क़ में हर्फ़-ए-ग़लत
आ’शिक़ी में मा'नी-ए-हासिल फ़रेब
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दुआ’ लब पे आती है दिल से निकल कर
ज़मीं से पहुँचती है बात आसमाँ तक
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साँस में आवाज़-ए-नय है दिल ग़ज़ल-ख़्वाँ है 'ज़हीन'
शायद आने को है वो जान-ए-बहाराँ इस तरफ़
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हुस्न-मह्व-ए-रंग-ओ-बू है इ’श्क़ ग़र्क़-ए-हाय-ओ-हू
हर गुलिस्ताँ उस तरफ़ है हर बयाबाँ इस तरफ़
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अज़ल से अबद तक कभी आँख दिल की
न झपके झपकने न पाए तो क्या हो
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अल्लाह अल्लाह वो जमाल-ए-दिल-फ़रेब
महफ़िल-ए-कौनैन है महफ़िल-फ़रेब
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इ’श्क़ हर-आन नई शान-ए-नज़र रखता है
ग़मज़ा-ओ-इ’श्वा-ओ-अन्दाज़-ओ-अदा कुछ भी नहीं''
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वो चमका चाँद छटकी चाँदनी तारे निकल आए
वो क्या आए ज़मीं पर आसमाँ ने फूल बरसाए
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere