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'ख़ुसरव' रैन सुहाग की जागी पी के संग
तन मेरो मन पीव को दोउ भए एक रंग
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देख मैं अपने हाल को रोऊँ ज़ार-ओ-ज़ार
वै गुनवंता बहुत हैं हम हैं अवगुण-हार
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पंखा हो कर मैं डुली सेती तेरा चाव
मुज जलती जनम गई तेरे लेखन भाव
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श्याम सेत गोरी लिये जन-मत भई अनीत
एक पल में फिर जात है जोगी काके मीत
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वो गए बालम वो गए नदिया किनार
आपे पार उतर गए हम तो रहे एही पार
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भाई रे मल्लाह हम को पार उतार
हाथ को देऊँगी मुँद्रा गले को देऊँगी हार
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गोरी सोवै सेज पर मुख पर डारै केस
चल 'ख़ुसरव' घर आपने रैन भई चहुँ देस
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चकवा चकवी दो जने उन मारे न कोय
ओह मारे कर्तार के रैन बिछौही होय
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सेज सूनी देख के रोऊँ दिन रैन
पिया पिया कहती फिरूँ पल भर सुख नहि चैन
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