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ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मजज़ूब

1884 - 1944 | उरई, भारत

ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मजज़ूब

ग़ज़ल 62

कलाम 21

ना'त-ओ-मनक़बत 7

क़िता' 10

मुनाजात 4

 

वीडियो 17

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आईना बनता है रगड़े लाख जब खाता है दिल

नूर अहमद क़ासमी

उन को तू ने क्या से क्या शौक़-ए-फ़रावाँ कर दिया

राहिल फ़ारूक़

ऐ मिरे दाता ऐ मिरे मालिक ऐ मिरे मौला ऐ मिरे वाली

शैख़ ख़लीलुर रहमान

ऐ मिरे मौला मेरी नज़र में तू ही तू हो तू ही तू

युनुस पटेल

कुछ न पूछो क्या हुआ क्यूँकर हुआ

नूर अहमद क़ासमी

कोई मज़ा मज़ा नहीं कोई ख़ुशी ख़ुशी नहीं

अज्ञात

जला ही देगा तिफ़्ल-ए-अश्क दामान-ए-नज़र अपना

नूर अहमद क़ासमी

जहाँ बदला तो बदला तू भी ऐ जान-ए-जहाँ बदला

नूर अहमद क़ासमी

जहाँ में हैं ’इबरत के हर-सू नमूने

जहाँ में हैं ’इबरत के हर सू नमूने ग़ुलाम मुस्तफ़ा क़ादरी

ज़ाहिर मुती’-ओ-बातिन ज़ाकिर मुदाम तेरा

नूर अहमद क़ासमी

तुम जिस को देख लो वो न पहलू में पाए दिल

अज्ञात

नहीं मेरा कोई हामी ख़ुदावंदा सिवा तेरे

नूर अहमद क़ासमी

यार रहे या-रब तू मेरा और मैं तेरा यार रहूँ

अनस यूनुस

रहने दो चुप मुझे न सुनो माजरा-ए-दिल

अज्ञात

हम नहीफ़ों से गुरेज़ आप को दरकार नहीं

नूर अहमद क़ासमी

हर इक 'आशिक़ नए अंदाज़ से क़ुर्बान-ए-क़ातिल था

नूर अहमद क़ासमी

हर तमन्ना दिल से रुख़्सत हो गई

जहाँ ज़ेब तारिक़

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