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Sufinama
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सिराज औरंगाबादी

1715 - 1764 | औरंगाबाद, भारत

सूफ़ी शाइ’र की हैसियत से मक़्बूल थे

सूफ़ी शाइ’र की हैसियत से मक़्बूल थे

सिराज औरंगाबादी के अशआर

वो अ’जब घड़ी थी मैं जिस घड़ी लिया दर्स नुस्ख़ा-ए-इ’श्क़ का

कि किताब अक़्ल की ताक़ पर जूँ धरी थी त्यूँ ही धरी रही

ख़ल्वत-ए-इंतिज़ार में उस की

दर-ओ-दीवार का तमाशा है

मत कहो मुझ सीं क़िस्सा-ए-फ़रहाद

ख़्वाब-ए-शीरीं में आज सोता हूँ

शह-ए-बे-ख़ुदी ने अता किया मुझे अब लिबास-ए-बरहनगी

ख़िरद की बख़िया-गरी रही जुनूँ की पर्दा-दरी रही

कभी सम्त-ए-ग़ैब सीं क्या हवा कि चमन ज़ुहूर का जल गया

मगर एक शाख़-ए-निहाल-ए-ग़म जिसे दिल कहो सो हरी रही

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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