Font by Mehr Nastaliq Web
Sufinama
Ameer Minai's Photo'

अमीर मीनाई

1829 - 1900 | रामपुर, भारत

दाग़ देहलवी के समकालीन। अपनी ग़ज़ल ' सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता ' के लिए प्रसिद्ध हैं।

दाग़ देहलवी के समकालीन। अपनी ग़ज़ल ' सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता ' के लिए प्रसिद्ध हैं।

अमीर मीनाई

ग़ज़ल 19

शे'र 27

कलाम 86

रूबाई 12

बैत 1

 

ना'त-ओ-मनक़बत 23

क़िता' 3

 

पुस्तकें 2

 

वीडियो 20

This video is playing from YouTube

वीडियो का सेक्शन
अन्य वीडियो
अल्लाह अल्लाह मदीना जो क़रीब आता है

नुसरत फ़तेह अली ख़ान

आँसू मिरी आँखों में नहीं आए हुए हैं

अज्ञात

उल्फ़त में बराबर है वफ़ा हो कि जफ़ा हो

हाजी महबूब अ'ली

उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ

अज्ञात

उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ

अज्ञात

क्या ग़म मेरी मदद पे अगर ग़ौस-ए-पाक हैं

अज्ञात

किस के आने की फ़लक पर है ख़बर आज की रात

सय्यद ज़बीब मास'उद

ख़लक़ के सरवर शाफ़ा-ए-महशर सल्लल्लाहो अलैहे-वसल्लम

अज्ञात

गुज़श्ता ख़ाक-नशीनों की यादगार हूँ मैं

मुबारक अली

ज़हे नसीब मदीना मक़ाम हो जाए

साबरी ब्रदर्स

ज़हे नसीब मदीना मक़ाम हो जाए

अज्ञात

तुम पर मैं लाख जान से क़ुर्बान या-रसूल

अज्ञात

तिरा क्या काम अब दिल में ग़म-ए-जानाना आता है

अज्ञात

दिल में है ख़याल-ए-रुख़-ए-नेकू-ए-मोहम्मद

मुबारक अली

न शौक़-ए-वस्ल का मौक़ा न ज़ौक़-ए-आश्नाई का

मोहम्मद रफ़ी

नहीं ख़ल्क़ ही में ये ग़लग़ला तेरी शान-ए-जल्ला-जलालुहु

अज्ञात

बाला-ए-आसमाँ कि सर-ए-ला-मकान था

मेहदी हसन ख़ान

महबूब-ए-ख़ास-ए-हज़रत-ए-सुब्हाँ यही तो है

अज्ञात

हम लोटते हैं वो सो रहे हैं

अज्ञात

हल्क़े में रसूलों के वो माह-ए-मदनी है

अज्ञात

संबंधित लेखक

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए