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रूमी की सूफ़ी कहानियाँ
एक सूफ़ी का अपना ख़च्चर ख़ादिम-ए-ख़ानक़ाह के हवाले करना और ख़ुद बे-फ़िक्र हो जाना - दफ़्तर-ए-दोम
एक सूफ़ी सैर-ओ-सफ़र करता हुआ किसी ख़ानक़ाह में रात के वक़्त उतर पड़ा। सवारी का ख़च्चर तो उसने अस्तबल में बाँधा और ख़ुद ख़ानक़ाह के अंदर मक़ाम-ए-सद्र में जा बैठा। अह्ल-ए-ख़ानक़ाह पर वज्द-ओ-तरब की कैफ़ियत तारी हुई फिर वो मेहमान के लिए खाने का ख़्वान लाए। उस वक़्त
एक वाइ’ज़ का बुरों के लिए दुआ’ करना
एक वाइ’ज़ जब वा’ज़ के लिए चौकी पर बैठता तो गुमराहों के लिए दुआ’ किया करता था। वो हाथ फैला फैला कर दुआ’ करता था या अल्लाह ज़ालिमों और बदकारों पर रहमत नाज़िल फ़रमा। मस्ख़रा-पन करने वालों, बद-फ़ितरतों, सब सियाह-दिलों और बुत-परस्तों तक, ग़रज़ सिवा पलीदों
एक मुसाफ़िर सूफ़ी के गधे को सूफ़ियों का बेच खाना- दफ़्तर-ए-दोम
इ’बरत के तौर पर ये क़िस्सा सुन ताकि तुम तक़लीद की आफ़त से ख़बरदार हो जाओ । एक सूफ़ी ब-हालत-ए-सफ़र किसी ख़ानक़ाह में पहुंचा और अपने गधे को अस्तबल में बांध कर डोल में पानी भर कर पिलाया और घास अपने हाथ से डाली। ये सूफ़ी वैसा ग़ाफ़िल सूफ़ी ना था जिसका ज़िक्र पहले आ
एक शख़्स का शैख़ अबुल-हसन ख़रक़ानी की ज़ियारत को आना और उनकी बीवी की बद-ज़बानी - दफ़्तर-ए-शशुम
शहर-ए-तालक़ान से एक फ़क़ीर ख़रकान को हज़रत शैख़ अबुलहसन की शोहरत सुनकर गया बड़े पहाड़ और जंगलों को डकर के हज़रत शैख़ के देखने को हाज़िर हुआ। जब मंज़िल-ए-मक़सूद तक पहुंचा तो हज़रत का मकान ढूंढ कर पहुंचा। बड़े इ’ज्ज़-ओ-नियाज़ के साथ उसने कुंडी खटखटाई तो एक औ’रत ने दरवाज़े
एक शख़्स का ख़्वाब देखकर खज़ाने की उम्मीद पर मिस्र को जाना - दफ़्तर-ए-शशुम
एक शख़्स को विरासत में माल-ए-कसीर हाथ आया। वो सब खा गया और ख़ुद नंगा रह गया सच है कि मीरास का माल नहीं रहा करता। जिस तरह दूसरे से अलग हुआ उसी तरह यहां भी जुदा हो जाता है। मीरास पाने वाले को भी ऐसे माल की क़दर नहीं होती जो बे मेहनत और तकलीफ़ हाथ आ जाता
शेर भेड़िए और लोमड़ी का मिलकर शिकार को निकलना - दफ़्तर-ए-अव्वल
शेर, भेड़िया और लोमड़ी मिलकर शिकार की तलाश में पहाड़ों पहाड़ों निकल गए अगरचे शेर-ए-नर को उनकी हम-राही से शर्म आती थी लेकिन कुशादा-दिली को काम में लाकर साथ ले लिया। ऐसे बादशाह को लाव-लश्कर ज़हमत का बाइ’स हुआ है लेकिन जब लश्कर साथ हो तो फिर जमाअ’त रहमत है।
हक़-तआ’ ला का इ’ज़राईल से ख़िताब कि तुझे किस पर रह्म आया - दफ़्तर-ए-शशुम
हक़-तआ’ला ने इ’ज़राईल से पूछा कि ऐ हमारी सुनाई पहुंचाने वाले सब मरने वालों में तुझे किस पर रह्म आया?और किस की मौत पर तेरा दिल ज़ियादा दर्द-मंद हुआ? इ’ज़राईल ने अ’र्ज़ की कि एक दिन एक कश्ती को जो तेज़ मौज पर बह रही थी, मैंने तेरे हुक्म से तोड़ दिया और वो रेज़ा
एक चोर का दूसरे सँपेरे का साँप चुरा लेना -दफ़्तर-ए-दोम
एक चोर ने किसी सँपेरे का साँप चुरा लिया और बे-वक़ूफ़ी से माल-ए-मूज़ी नसीब-ए-ग़ाज़ी समझा।साँप ज़हरीला था। सँपेरा तो डसने से महफ़ूज़ रहा लेकिन चोर उसी साँप से डसा गया। सँपेरे ने जब उसे देखकर पहचाना तो कहा कि मेरी जान ये दुआ’ करती थी कि इलाही ऐसा कर कि अपने
चरवाहे की मुनाजात पर मूसा का इंकार- दफ़्तर-ए-दोउम
एक दिन हज़रत-ए-मूसा ने रास्ता चलते एक चरवाहे को सुना कि वो कह रहा था कि ऐ प्यारे ख़ुदा तू कहाँ है।आ मैं तेरी ख़िदमत करूँ, तेरे मोज़े सीऊँ और सर में कंघी करूँ, तू कहाँ है कि मैं तेरी टहल ख़िदमत बजा लाऊँ , तेरे कपड़े सीऊँ, पैवंद पारा करूँ, तेरा जड़ावल धोउं
हज़रत अ’ली पर एक काफ़िर का थूकना और आपका उस के क़त्ल से बाज़ रहना - दफ़्तर-ए-अव्वल
हज़रत अ’ली के अ'मल से इख़्लास का तरीक़ सीख। वो ख़ुदा के शेर थे,उनका फ़े’ल नफ़्सानियत से पाक था। एक जंग में जब एक दुश्मन ज़द में आया तो आप तलवार सौंत कर छुटे। उस हज़रत अ’ली के चेहरा-ए-पुर-नूर पर जो हर नबी-ओ-वली का फ़ख़्र थे, थूक दिया। उसने ऐसे चेहरे पर थूका
हज़रत-ए-उ’स्मान का मिंबर पर चुप चाप बैठना
क़िस्सा-ए-उसमान सुनो कि जब आप ख़लीफ़ा हुए तो मिंबर-ए-रसूल पर जा बैठे। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अ’लैहि वसल्लम का मिंबर तीन पायों का था। अबू बकर दूसरे पाए पर बैठे थे। हज़रत-ए-उ’मर जो ए’ज़ाज़-ए-इस्लाम और हिफ़ाज़त-ए-दीन के लिए ख़लीफ़ा हुए तो आपने तीसरे पाए पर बैठना
एक शख़्स का दर-ए-महबूब की कुंडी खटखटाना और मैं हूँ 'कहना’ - दफ़्तर-ए-अव्वल
एक शख़्स दर-ए-महबूब पर आया और कुंडी खटखटाई। महबूब ने पूछा कौन साहिब हैं जवाब दिया कि ''मैं हूँ' महबूब ने कहा, चल दूर हो अभी मुलाक़ात नहीं हो सकती। तुझ जैसी कच्ची चीज़ की इस दस्तर-ख़्वान पर कोई जगह नहीं। हिज्र-ओ-फ़िराक़ की आग के बग़ैर कच्ची जिन्स कैसे पक
एक हकीम का मोर पर ए’तराज़ करना जो अपने पर आप उखेड़ रहा था - दफ़्तर-ए-पंजुम
एक मोर जंगल मैँ अपने पर उखेड़ रहा था। एक हकीम भी उस तरफ़ सैर करता हुआ जा निकला। पूछा कि ऐ मोर ऐसे ख़ूबसूरत पर और तू जड़ों से उखेड़े देता है ख़ुद तेरे दिल ने कैसे क़ुबूल किया कि ऐसे नफ़ीस लिबास को नोच खसोट कर कीचड़ में फेंक दे? तेरे एक एक पर को ख़ूबसूरती की
इब्लीस का नमाज़ के लिए मुआ’विया को बेदार करना- दफ़्तर-ए-दोउम
रिवायत है कि अमीर मुआ’विया अपने घर के एक गोशे में सो रहे थे। चूँकि लोगों की मुलाक़ात से थक गए थे इसलिए कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया था।यका-यक एक शख़्स ने जगा दिया और जब उनकी आँख खुली तो ग़ाएब हो गया। आपने अपने जी में कहा कि इस के कमरे में तो कोई
एक यहूदी का अ’ली से मुकाबरा और उनका जवाब
एक दिन एक मुद्दई ने जो ख़ुदा की अ’ज़मत से आगाह ना था हज़रत-ए-मुर्तज़ा से कहा कि तुम महल के कोठे पर हो और ख़ुदा हिफ़ाज़त का ज़िम्मादार है इस से भी वाक़िफ़ हो। अ’ली ने फ़रमाया क्यों नहीं। वो हमारी हस्त-ओ-बूद का बचपन से जवानी तक हफ़ीज़-ओ-मुरब्बी रहा है।उसने कहा
एक बुढ्ढे का तबीब से शिकायत-ए-मरज़ करना और तबीब का जवाब देना- दफ़्तर-ए-दोउम
एक बूढ़े शख़्स ने तबीब से कहा कि मैं ज़ो’फ़-ए-दिमाग़ में मुब्तला रहता हूँ। तबीब ने कहा कि ये ज़ो’फ़-ए-दिमाग़ बुढ़ापे के सबब से है। फिर उसने कहा कि मेरी आँख में धुँदला-पन आ गया है। तबीब ने जवाब दिया कि ऐ मर्द-ए-बुज़ुर्ग ये भी बुढ़ापे से है। उसने कहा कि मेरी कमर
मज्नूँ और लैला की गली का कुत्ता-दफ़्तर-ए-सेउम
मज्नूँ एक कुत्ते की बलाऐं लेता था, उस को प्यार करता था और उस के आगे बिछा जाता था।जिस तरह हाजी का’बे के गिर्द सच्ची निय्यत से तवाफ़ करता है उसी तरह मज्नूँ उस कुत्ते के गिर्द फिर कर सदक़े क़ुर्बान हो रहा था। किसी बाज़ारी ने देखकर आवाज़ दी कि ऐ दीवाने ये क्या
शाही मुसाहिब का अपने सिफ़ारशी से रंजीदा होना
एक बादशाह अपने मुसाहिब पर नाराज़ हुआ और चाहा कि ऐसी सज़ा दे कि दिल से धुआँ निकलने लगे। बादशाह ने तलवार नियाम से सौंत ली। किसी की मजाल ना थी कि दम मारे या कोई सिफ़ारिश कर सके। अलबत्ता इ’मादुल-मुल्क नामी एक मुसाहिब ज़मीन पर गिर पड़ा। उसी वक़्त बादशाह ने ग़ज़ब
दूरबीँ-अंधा, तेज़ सुनने वाला बहरा, और दराज़-दामन नंगा - दफ़्तर-ए-सेउम
बच्चे बहुत से मन घड़त क़िस्से कहते हैं। उन कहानियों और पहेलियों में बहुत से राज़ और नसीहतें होती हैं और फ़ुज़ूल बातें भी, लेकिन तू उन्ही वीरानों में से ख़ज़ाना तलाश कर । एक बड़ा गुंजान शहर था। कोई दस शहरों के आदमी उस के एक शहर में आबाद थे लेकिन वो सब के सब
एक चमड़ा रंगने वाले का अ’त्तारों के बाज़ार में बेहोश होना
एक चमड़ा रंगने वाला इत्तिफ़ाक़ से अ’त्तारों के बाज़ार में पहुंचा तो यका-य़क गिर कर बे-होश हो गया और हाथ टेढ़े हो गए। इ’त्रों की ख़ुशबू जो उस के दिमाग़ में घुसी तो चकरा कर गिर पड़ा। उसी वक़्त लोग जम्अ’ हो गए। किसी ने उस के दिल पर हाथ रखा और किसी ने अ’र्क़-ए-गुलाब
दर्ज़ी का एक मुद्दई’ तुर्क के कपड़े से टुकड़े चुराना- दफ़्तर-ए-शशुम
तुमने नहीं सुना कि कोई शीरीं-गुफ़्तार एक रात यारों में बैठा दर्ज़ियों की शिकायत कर रहा था और लोगों को इस गिरोह की चोरियों के क़िस्से सुना रहा था। उसने अच्छा-ख़ासा दर्ज़ी-नामा पढ़ डाला और ख़िल्क़त उस के अतराफ़ जमा’ हो कर सुनती रही। सुनने वालों को जिस क़दर
मज्नूँ और लैला की गली का कुत्ता- दफ़्तर-ए-सेउम
मज्नूँ एक कुत्ते की बलाऐं लेता था, उस को प्यार करता था और उस के आगे बिछा जाता था।जिस तरह हाजी का’बे के गिर्द सच्ची निय्यत से तवाफ़ करता है उसी तरह मज्नूँ उस कुत्ते के गिर्द फिर कर सदक़े क़ुर्बान हो रहा था। किसी बाज़ारी ने देखकर आवाज़ दी कि ऐ दीवाने ये क्या
चार हिंदुस्तानियों का नमाज़ में बात करना- दफ़्तर-ए-दोउम
चार हिन्दुस्तानी एक मस्जिद में दाख़िल हुए और नमाज़ पढ़ने लगे। हर एक ने अलग अलग तकबीर कही और बहुत इन्किसार और सोज़-ए-दरूनी से नमाज़ में मसरूफ़ हुआ। जब मुवज़्ज़िन आया तो उन में से एक के मुँह से निकल गया कि ऐ मुवज़्ज़िन अज़ान भी दी? अभी वक़्त है। दूसरे ने बहुत
एक दोस्त का हज़रत-ए-यूसुफ़ से मिलने आना और हज़रत-ए-यूसुफ़ का उस से हदिया तलब करना - दफ़्तर-ए-अव्वल
एक मेहरबान दोस्त किसी दूर मुल्क से आया और यूसुफ़-ए-सिद्दीक़ का मेहमान हुआ। चूँकि अपने को हम खेल कूद के ज़माने के यार थे इसलिए याराने के गाव-तकिए पर टेका लगा कर बैठे ।आगे ख़ुद-बीनी कर के भाईयों के ज़ुल्म-ओ-हसद का तज़्किरा किया। आपने जवाब दिया कि वो वाक़िआ'
चिड़ीमार को एक परिंदे की नसीहत
एक चिड़ीमार ने बड़ी तरकीब से फंदे में चिड़िया पकड़ी। चिड़िया ने उस से कहा ऐ बुज़ुर्ग सरदार फ़र्ज़ कीजिए आप मुझ जैसी छोटी सी चिड़िया को पकड़ कर खा भी जाऐंगे तो क्या हासिल होगा। अब तक आप कितनी गाएँ और दुंबे खा चुके हैं और कितने ऊंट क़ुर्बानी कर चुके हैं। जब कि
एक चूहे का ऊंट की नकेल खींचना- दफ़्तर-ए-दोउम
एक चूहे के हाथ ऊंट की नकेल लग गई,वो बड़ी शान से खींचता हुआ चला। ऊंट जो तेज़ी से उस के साथ चला तो चूहे के सर में ये हवा समाई कि मैं भी पहलवान हूँ। उस के ख़याल की झलक ऊंट पर पड़ी तो उसने कहा कि अच्छा तुझे इस का मज़ा चखाऊंगा। चलते चलते एक बड़ी नदी के किनारे
ई’सा का अहमक़ों से दूर भागना - दफ़्तर-ए-सेउम
हज़रत-ए-ई’सा एक दफ़ा’ पहाड़ की तरफ़ बे-तहाशा जा रहे थे ये मा’लूम होता था कि शायद कोई शेर उन पर हमला करने के लिए पीछे आ रहा है। एक शख़्स हज़रत के पीछे दौड़ा। पूछा ख़ैर तो है हज़रत आपके पीछे तो कोई भी नहीं, फिर परिंदे की तरह क्यों उड़े चले जा रहे हैं। मगर
बादशाह और कनीज़ - दफ़्तर-ए-अव्वल
दोस्तो एक क़िस्सा सुनो, जो हमारे हाल पर सादिक़ आता है। अगर अपने हाल को हम परखते रहें तो दुनिया और आख़िरत दोनों जगह फल पाएं। अगले ज़माने में एक बादशाह था जिसे दुनिया-ओ-दीन दोनों की बादशाही हासिल थी। एक दिन शिकार के लिए मुसाहिबों के साथ सवार हो कर निकला।
एक गीदड़ की शेख़ी जो रंग के नंदोले में गिर पड़ा था- दफ़्तर-ए-सेउम
वह्म की लज़्ज़त से तू अपना दिल इस तरह ख़ुश कर लेता है जैसे कोई शख़्स फूंक कर अपनी मश्क को फुला ले हालाँकि वो फूली हुई मशक सूई के एक छेद में हवा से खाली हो सकती है। ये हिकायत सुनो कि एक गीदड़ रंग के नंदोले में गिर पड़ा और एक घंटे तक उसी में पड़ा रहा। जब
एक शख़्स का सर-ए-राह कांटों की झाड़ी को उगने देना- दफ़्तर-ए-दोम
एक मुँह के मीठे दिल के खोटे शख़्स ने बीच रास्ते में कांटों की झाड़ी उगने दी। जो राहगीर उधर से निकलता वो ला’नत मलामत करता है और कहता कि इस को उखेड़ दे लेकिन इस को ना उखेड़ा । इस झाड़ी की हालत थी कि हर-आन बढ़ती जाती है और ख़िल्क़त के पांव कांटे चुभ कर ख़ूनम ख़ून
नह्वी और कश्तीबान (दफ़्तर-ए-अव्वल)
एक नह्वी कश्ती में बैठा और ख़ुद-परस्ती से कश्तीबान से मुख़ातिब हो कर कहने लगा कि तुमने कुछ नह्व पढ़ी है। कश्तीबान ने कहा नहीं, नह्वी ने कहा कि अफ़्सोस तूने अपनी आधी उम्र ज़ाए’ की। कशतीबान मारे ग़ुस्से के पेच-ओ-ताब खाने लगा मगर उस वक़्त ख़ामोश रहा। इत्तिफ़ाक़न
मूसा को हक़-तआ’ला से वहई होना कि हमारी बीमार- पुर्सी को क्यों नहीं आया- दफ़्तर-ए-दोउम
ख़ुदा की तरफ़ से मूसा पर ये इ’ताब हुआ कि ऐ शख़्स कि तूने अपनी जेब-ओ-गरेबाँ से सूरज को निकलते देखा है हमने तुझको ख़ुदाई नूर का मरकज़ बनाया है बावजूद इस के कि मैं बीमार हुआ तो तू पुर्सिश तक को ना आया। मूसा ने अ’र्ज़ की ऐ पाक बे-नियाज़ तू तो हर नुक़्सान-ओ-ज़वाल
एक ख़रगोश का शेर को मक्र से हलाक करना - दफ़्तर-ए-अव्वल
कलीला-ओ-दिमना से इस क़िस्से को पढ़ इस में से अपने हिस्से की नसीहत हासिल कर। कलीला-ओ-दिमना में जो कुछ तूने पढ़ा वो महज़ छिलका और अफ़्साना है इस का मग़्ज़ अब हम पेश करते हैं। एक सब्ज़ा-ज़ार में चरिन्दों की शेर से हमेशा कश्मकश रहती थी चूँकि शेर चरिन्दों
एक ज़ाहिद का बे-क़रारी में अपना अ’ह्द तोड़ देना- दफ़्तर-ए-सेउम
मैं एक हिकायत बयान करता हूँ अगर तुम ग़ौर करो तो हक़ीक़त पर फ़रेफ़्ता हो जाओ। एक दरवेश पहाड़ियों में रहता था। तन्हाई ही उस के जोरू बच्चे थे और तन्हाई उस की मुसाहिब थी। परवरदिगार की जानिब से उस को मस्ताना खूशबूएं पहुँचती थीं। इसलिए वो लोगों के सांस की बदबू
सद्र-ए-जहां का ऐसे साइल को कुछ ना देना जो ज़बान से मांगे - दफ़्तर-ए-शशुम
शहर-ए-बुख़ारा में सद्र-ए-जहां की दाद-ओ-दिहिश मशहूर थी। वो बेहद्द-ओ-बे-हिसाब देते थे और सुब्ह से शाम तक उनके दरिया-ए-फ़ैज़ से रुपये अशर्फ़ियां बरसती रहती थीं।काग़ज़ के पुर्ज़ों में अशर्फ़ियां लिपटी रहती थीं जब तक वो ख़त्म ना हो जाएं उस वक़्त तक बराबर देते रहते
एक बीमार का सूफ़ी-ओ-क़ाज़ी के चांटा लगाना- दफ़्तर-ए-शशुम
एक शख़्स तबीब के पास गया और कहा कि ज़रा मेरी नब्ज़ देख दीजिए। तबीब ने नब्ज़ हाथ में ली और जान गया कि इस मरीज़ की सेहत की उम्मीद नहीं। उस से कहा कि जो तेरे जी में आए वो कर, ताकि जिस्म से ये बीमारी जाती रहे। इस मरज़ के लिए सब्र-ओ-परहेज़ को नुक़्सान समझ और जिस
हैरत का ग़लबा बह्स-ओ-फ़िक्र को रोक देता है- दफ़्तर-ए-सेउम
एक खिचड़ी दाढ़ी का अधेड़ आदमी हज्जाम के हाँ आया और कहा कि मेरी डाढ़ी से सफ़ेद बाल चुन दे कि मैंने नई शादी की है। ख़ास-तराश ने पूरी दाढ़ी मूंढ कर सामने रख दी और कहा कि मियाँ आप ही अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ चुन लो मुझे फ़ुर्सत नहीं। इस सवाल-ओ-जवाब का मतलब ये है
एक सहाबी का बीमार होना और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अ’लैहि वसल्लम का इ’यादत को जाना- दफ़्तर-ए-दोउम
सहाबा में से एक साहिब बीमार और सूख कर कांटा हो गए। चूँकि हज़रत रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अ’लैहि वसल्लम की ख़स्लत सरापा लुत्फ़-ओ-करम थी इसलिए आप बीमार-पुर्सी के लिए तशरीफ़ ले गए। वो साहिब आँहज़रत के दीदार से ज़िंदा हो गए जैसे ख़ुदा ने इसी वक़्त पैदा किया हो, कहने
मुसलमान,यहूदी और ई’साई का हम-सफ़र होना - दफ़्तर-ए-शशुम
ऐ फ़र्ज़ंद ! एक हिकायत सुन ताकि तू ख़ुश-बयानी और हुनर के चक्कर में ना आए। एक सफ़र में यहूदी, मुसलमान और ई’साई हमराह हुए। जब तीनों हमराही किसी मंज़िल पर पहुंचे तो कोई भला आदमी इन मुसाफ़िरों के लिए हलवा लाया। तीनों मुसाफ़िरों के सामने हस-बतन लिल्लाह वो हलवा
एक आ’राबी का ख़लीफ़ा-ए-बग़दाद के पास खारी पानी बतौर तोहफ़ा ले जाना - दफ़्तर-ए-अव्वल
अगले ज़माने में एक ख़लीफ़ा था जिसने हातिम को भी अपनी सख़ावत के आगे भिकारी बना दिया था और दुनिया में अपनी दाद-ओ-दहिश और फ़ैज़-ए-आ’म से हाजत-मंदी और नादारी की जड़ उखेड़ दी थी। मश्रिक़ से मग़रिब तक उस की बख़्शिश का चर्चा हो गया। ऐसे बादशाह-ए- करीम के ज़माने की एक
ग़ुलाम जो मस्जिद से बाहर ना आता था - दफ़्तर-ए-सेउम
किसी अमीर का ग़ुलाम सुनक़ुर नाम गुज़रा है। एक रोज़ पिछली रात को अमीर ने सुनक़ुर को आवाज़ दी और कहा चल खड़ा हो, पियाला पटका, पंडोल की मिट्टी लौंडी से ले ताकि आज बहुत सुब्ह हम्माम में पहुंच जाएँ। सुनक़ुर हाज़िर हुआ। पियाला और उ’म्दा पटका लिया और दोनों के दोनों
एक शख़्स का सुनार से तराज़ू माँगना और सुनार का जवाब- दफ़्तर-ए-सेउम
एक आदमी सुनार के पास सोना तौलने के लिए तराज़ू मांगने आया। सुनार ने कहा कि मियाँ अपना रास्ता लो मेरे पास छलनी नहीं है। उसने कहा कि हाएं मज़ाक़ ना कर। भाई मुझे तराज़ू चाहिए। उसने जवाब दिया कि मेरी दुकान में झाड़ू है ही नहीं, उसने कहा अरे भाई मस्ख़रेपन को छोड़।
एक शहर को आग लगनी हज़रत-ए-उ’मर के ज़माने में- दफ़्तर-ए-अव्वल
हज़रत-ए-उ’मरऊ के ज़माना-ए-ख़िलाफ़त में एक शहर को आग लगी। वो इस बला की आग थी कि पत्थर को ख़ुश्क लकड़ी की तरह जला कर राख कर देती थी। वो मकानों और महलों को ख़ाक-ए-सियाह करती हुई परिंदों,घोंसलों और आख़िर-कार उनके परों में भी लग गई। इस आग के शो’लों ने आधा शहर ले
साइल का हीले से बहलोल से भेद कहवा लेना- दफ़्तर-ए-दोउम
एक शख़्स कह रहा था कि मुझे ऐसा अ’क़्लमंद चाहिए जिससे आड़े वक़्त मश्वरा लिया करूँ। किसी ने कहा कि हमारे शहर में तो सिवाए इस मज्नूँ सूरत के और कोई आ’क़िल नहीं । देख वो शख़्स सरकंडे पर सवार बच्चों में दौड़ता फिरता है। ज़ाहिर में तो दिन रात गेंद खेलता फिरता है
तपते बयाबान में एक शैख़ का नमाज़ पढ़ना और अहल-ए-कारवाँ का हैरान रह जाना- दफ़्तर-ए-दोउम
एक चटयल मैदान में एक ज़ाहिद ख़ुदा की इ’बादत में मसरूफ़ था। मुख़्तलिफ़ शहरों से हाजियों का क़ाफ़िला जो वहाँ पहुंचा तो उनकी नज़र उस ज़ाहिद पर पड़ी ।देखा कि सारा मैदान ख़ुश्क पड़ा है मगर वो ज़ाहिद उस रेत पर जिसके भपके से देग का पानी उबलने लगे, नमाज़ की निय्यत
अयाज़ का अपने पोस्तीन के लिए हुज्रा ता'मीर करना और हासिदों की बद-गुमानी - दफ़्तर-ए-पंजुम
अयाज़ ने जो बहुत अ’क़्लमंद था अपने पुराने पोस्तीन और चप्पलों को एक हुज्रे में लटका रखा था और रोज़ाना उस हुज्रे में तन्हा जाता और अपने आपसे कहता कि देख तेरी चप्पलें ये रखी हैं ख़बरदार तकब्बुर-ओ-नख़्वत मत करना। लोगों ने बादशाह से अ'र्ज़ की कि अयाज़ ने एक हुज्रा
एक लड़के का नक़ारे के ऊंट को ढोल से डराना - दफ़्तर-ए-सेउम
किसी गांव में खेत की हिफ़ाज़त एक लड़का किया करता था और एक छोटा सा ढोल बजा-बजा कर परिंदों को उड़ता रहता था। इत्तिफ़ाक़ से सुल्तान महमूद का गुज़र उस तरफ़ हुआ तो उसी खेत के क़रीब लश्कर का पड़ाव डाला गया। इस फ़ौज में एक बुलंद-ओ-बाला बुख़्ती था जिस पर फ़ौजी नक़ारा लादा
एक चोर का साहिब-ए-ख़ाना से हाथ छुटा कर भागना- दफ़्तर-ए-दोउम
एक शख़्स ने घर में चोर देखा और उस के पीछे दौड़ा यहाँ तक कि थक कर पसीने पसीने हो गया। जब भाग दौड़ में वो इतना क़रीब पहुंच गया कि उस को पकड़ ले तो दूसरे चोर ने पुकारा कि एजी मियां!यहाँ आओ तो देखो बला के निशान यहाँ हैं।जल्दी पलट कर उठ। साहिब-ए-ख़ाना ने ये आवाज़
एक बादशाह का मुल्ला को शराब पिलाना - दफ़्तर-ए-शशुम
एक बादशाह रंग रैलियों में मस्रूफ़ था कि एक मुल्ला उस के दरवाज़े पर से गुज़रा हुक्म दिया कि उस को महफ़िल में खींच लाओ और ज़बर-दस्ती शराब पिलाओ, पस लोग जबरन उस को महफ़िल में खींच लाए और वो आकर साँप के ज़हर की तरह बिलकुल तुर्श-रू हो बैठा। शराब पेश की तो उसने
हज़रत उ’मर के ज़माने में एक शख़्स का ख़याल को हिलाल समझ लेना- दफ़्तर-ए-दोम
जब दिल का आईना पाक साफ़ हो जाए तो इस आ’लम-ए-आब-ओ-गिल से बाला-तर आ’लमों के नक़्श भी तू देख सकता है बल्कि तू नक़्श-ओ-नक़्क़ाश दोनों को देख सकता है लेकिन अगर आँख के सामने एक बाल भी आड़ हो जाए तो तेरा ख़याल )क़यास( दुर्र-ए-शाह-वार को भी पोथ बतलाता है तू पोथ
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
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