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Sufinama
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इब्राहीम आजिज़

1834 - 1882 | शैख़पुर, भारत

उर्दू और फ़ारसी का अ’ज़ीम शाइ’र

उर्दू और फ़ारसी का अ’ज़ीम शाइ’र

इब्राहीम आजिज़ के अशआर

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ई’द से भी कहीं बढ़ कर है ख़ुशी आ’लम में

जब से मशहूर हुई है ख़बर-ए-आमद-ए-यार

शाइ’रान-ए-दहर को अब है परेशानी नसीब

करते हैं उस्ताद 'अकमल' जम्अ' दीवाँ इन दिनों

ई’द से भी कहीं बढ़ कर है ख़ुशी आलम में

जब से मशहूर हुई है ख़बर-ए-आमद-ए-यार

ई’द से भी कहीं बढ़ कर है ख़ुशी आ’लम में

जब से मशहूर हुई है ख़बर-ए-आमद-ए-यार

मुरीद-ए-पीर-ए-मय-ख़ाना हुए क़िस्मत से नासेह

झाड़ें शौक़ में पलकों से हम क्यूँ सहन-ए-मय-ख़ाना

जहान-ए-बे-ख़ुदी में मस्ती-ए-वहदत जो ले जाये

फ़रिश्ते लें क़दम मेरे वो हूँ मैं रिंद-ए-मस्तान:

वफ़ा की हो किसी को तुझ से क्या उम्मीद ज़ालिम

कि इक आलम है कुश्त: तेरी तर्ज़-ए-बेवफ़ाई का

ख़त-ए-तोवाम की तरह उन से लिपट जाएँगे

हम मानेंगे कभी लाख करें वो इंकार

मनम आँ माह-ए-औज-ए-हुस्न दर बुर्ज-ए-ज़मींं-ताबाँ

कि हर शब मी-शवंद अज़ आसमाँ अंजुम निसार-ए-मन

सज्दः-ए-उश्शाक कै गर्दद अदा

जुज़ ब-मेहराब-ए-ख़म-ए-अब्रू-ए-तू

ज़ख़्म-ए-ख़ंदाँ शुक्र में मसरूफ़ है चारागर

जब से फाहा तू ने रखा सीना के नासूर पर

कहता हूँ ये उन के तसव्वुर से दुश्मन-ए-हस्ती-ए-वहमी

जब ठहरा मैं इक मौज-ए-रवाँ ख़त-ए-मौज की तरह मिटा दे मुझे

ग़ैरों में मैं अर्ज़-ए-तमन्ना से रुकुँगा

इग़्माज़ करे वो सर-ए-महफ़िल कि ख़फ़ा हो

दिल है वही दिल जिस में भरा नूर-ए-ख़ुदा हो

सर है वही जो का'बा-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा हो

दिल है वही दिल जिस में भरा नूर-ए-ख़ुदा हो

सर है वही जो का'बा-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा हो

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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