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ज़की वारसी

भोपाल, भारत

सिलसिला-ए-वारिसया के अ’क़ीदत-मंद

सिलसिला-ए-वारिसया के अ’क़ीदत-मंद

ज़की वारसी के अशआर

ख़ुशी से वो हमारी हर ख़ुशी पामाल कर डालें

जहाँ तक है ख़ुशी उन की वहाँ तक है ख़ुशी अपनी

यास-ओ-उम्मीद यूँ रहीं राह-ए-तलब में साथ साथ

चार क़दम हटा दिया चार क़दम बढ़ा दिया

ये ग़म ये हिचकियाँ ये अश्क-ए-पैहम चीज़ ही क्या हैं

बहुत ही ठोकरें खिलवाएगी दीवानगी अपनी

नज़र-अफ़ज़ोई-ए-शम-ए-तजल्ली ज़हे-क़िस्मत

कहाँ बज़्म-ए-जमाल उन की कहाँ परवानगी अपनी

वो हैं इधर 'इताब में दिल है उधर अ’ज़ाब में

ज़ौक़-ए-तलब ने क्यूँ मुझे जल्वा-ए-इल्तिजा दिया

देख के बे-ख़ुदी मिरी आज वो मुस्कुरा दिया

इश्क़-ए-जुनूँ-मिज़ाज ने हुस्न को गुदगुदा दिया

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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