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अज्ञात की सूफ़ी प्रतीक
अनल-हक़
अनल-हक़ (मैं ख़ुदा हूँ) का ना’रा मन्सूर हल्लाज ने दिया था उन्हें हल्लाज भी कहा जाता है जिसका अ’रबी में तात्पर्य है धुनियाँ.उनका पेशा हालाँकि यह नहीं था.दर-अस्ल उनका एक दोस्त धुनियाँ था जिसकी दुकान पर बैठ कर अक्सर वह उँगलियों से रूई के बिनोलों को अलग करते
ख़र-ए-ईसा
हज़रत ईसा अपनी यात्राओं के लिए प्रसिद्ध हैं.वह गधा जो उनकी सवारी में रहता था उसे ख़र-ए-ईसा कहा जाता है. शैख़-सा’दी गुलिस्ताँ में लिखते हैं– ख़र-ए-ईसा गरश ब-मक्क: बुरंद चूँ ब-यायद हनूज़ ख़र बाशद अर्थात– यदि ईसा के गधे को मक्का ले जाएँ तो जब वह वापस आएगा
शराब
फ़ारसी साहित्य में मान्यता है कि शराब के द्वारा दुखों से छुटकारा मिल सकता है,इसलिए फ़ारसी कवियों ने शराब पीने को चिंताओं को दूर करने का एक साधन माना है.उमर ख़य्याम और ख़्वाजा हाफ़िज़ को यह उपमा बड़ा प्रिय है. सूफ़ियों ने शराब को आलौकिक प्रेम का एक प्रतीक माना
मेहर गिया
यह एक बूटी है जिसके विषय में मान्यता है कि इसे अपने पास रखने वालों पर सब मेहरबान हो जाते हैं.
पुल-सिरात
वह पुल जिसे क़यामत के दिन हर मानव-प्राणी को पार करना पड़ेगा.यह पुल बाल से भी बारीक और तलवार से भी तेज़ होगा. जब पुण्यात्माएं इससे होकर गुज़रेंगी तो यह पुल चौड़ा हो जाएगा और वह बिजली की तरह वहाँ से गुज़र कर जन्नत चले जाएंगे.जब पापी उस पुल से होकर गुज़रेंगे तो
गंज-ए-क़ारून
गंज-ए-क़ारून का अभिप्राय है अकूत धन राशि.क़ारून के ख़ज़ाने और उसकी कृपणता प्रसिद्ध है. क़ारून,हज़रत मूसा का चचेरा भाई था.अपने कीमिया के ज्ञान की मदद से वह सोने-चाँदी का निर्माण करके अपने ख़ज़ाने में भर रहा था.उसके पास इतना ख़ज़ाना जमा हो गया था कि चालीस हज़ार
चाह-ए-बाबुल–हारूत-ओ-मारूत–ज़ोहरा
हारूत और मारूत दो फ़रिश्तों के नाम हैं. एक बार उन्होंने बड़बोलेपन में कह दिया कि इंसान तो संसार में विषय वासनाओं का शिकार हो जाते हैं लेकिन अगर हम वहाँ जाएँ तो ऐसे रहें जैसे जल में कमल.ईश्वर ने परीक्षा लेने के लिए उन्हें संसार में भेजा.पहले तो वह सांसारिक
चीता और चाँद
चाँद की सुन्दरता पर चीता मुग्ध हो जाता है और उसे पाने की चाह में पर्वत पर चढ़ जाता है.वहाँ से वह ऊपर छलाँग लगाता है और नीचे आ गिरता है. रफ़्तम अंदर पय-ए-मक़सूद वले हमचू पिलंग बा-सर-ए-कोह ब-क़स्द-ए-मह-ए-ताबाँ रफ़्तम अर्थात– मैं अपने उद्देश्य की प्राप्ति
जू-ए-शीर
फ़रहाद ने बे-सुतून पर्वत से शीरीन के महल तक पहाड़ को खोद कर जू-ए-शीर लाया था.फ़रहाद ईरान के बादशाह ख़ुसरौ परवेज़ की मलिका,शीरीन का सच्चा आशिक था.उससे पीछा छुड़ाने के लिए बादशाह ने फ़रहाद से कहा कि बे-सुतून पर्वत से शीरीन के महल तक अगर तुम जू-ए-शीर ले आओ तो
शम्अ’ और परवान:
पतंगा दीपक की लौ में अपने आप को भस्म कर लेता है. फ़ारसी काव्य में इसका प्रयोग बहुतायत से होता है. ख़्वाजा फ़रीदुद्दीन अ’त्तार शम्अ’ और परवाने का इ’श्क दर्शाते हुए लिखते हैं – ऐ शफ़ाअ’त-ख़्वाह मुश्त-ए-तीर:-रोज़ लुत्फ़ कू शम्अ’-ए-शफ़ाअत ब-रफ़रोज़ ता चू परवान:
ख़र-ए-दज्जाल
दज्जाल एक व्यक्ति का नाम है जो क़यामत के दिन प्रकट होगा.वह गधे पर सवार होगा और एक आँख से काना होगा. उसके ललाट पर मोटे अक्षरों में काफ़िर लिखा हुआ होगा.वह हज़रत ईसा होने का दावा करेगा और उसको हज़रत ईसा मौत के घाट उतार देंगे. शैख़ सा’दी ने गुलिस्ताँ में इस
शब-चराग़
शब-चराग़ एक प्रकार की मणि है.दरियाई गाय जब रात को चरने निकलती है,तो उस मणि को मुँह से निकाल कर भूमि पर रख देती है और उसकी रौशनी में चरती रहती है.चर चुकने के बाद वह पुनः उसे मुँह में रख कर डुबकी लगा लेती है.
ख़िज़्र,इल्यास, ईसा तथा इदरीस
मान्यता है कि ख़िज़्र,इल्यास, ईसा तथा इदरीस–ये चारों पैग़म्बर ज़िन्द: हैं. ख़िज़्र अमर हैं; वह ख़ुश्की (ज़मीन) पर पथ–भ्रष्टों के मार्गदर्शक हैं इल्यास भी अमर हैं; वह तरी (जल) पर भूले भटकों को राह दिखाते हैं फ़ारसी साहित्य में जल और स्थल दोनों पर वस्तुतः
मजनूँ
अ’रब के एक क़बीले के एक सरदार का बेटा जिसका असली नाम क़ैस था और लैला नाम की एक युवती पर आशिक होकर मजनूँ (पागल) हो गया था.फ़ारसी सूफ़ी शाइ’री में मजनूँ साधक का और लैला ईश्वर का प्रतीक माने जाते हैं.
मुग़ या मुग़-बच्च: या पीर-ए-मुग़ाँ
ज़रथुष्ट के अनुयायी आग की उपासना करते हैं.उनके आतिशकदों में आग लगातार जलती रहती है. आतिशकदों में सेवा के लिए जो सुन्दर युवक नियुक्त होते थे उन्हें मुग़ कहा जाता था और उनका मुखिया पीर-ए-मुग़ाँ कहलाता था.यही नौजवान सभाओं में साक़ी का कार्य भी करते थे.
हज़रत सालेह
हज़रत सालेह समूद जाति के प्रसिद्ध पैग़म्बर हैं.उन्होंने एकेश्वरवाद का प्रचार किया किन्तु उनकी अपनी जाति के लोगों ने ही उनसे चमत्कार दिखाने को कहा.हज़रत सालेह ने एक पत्थर से बच्चे सहित एक ऊंँटनी पैदा कर दी.इसके बावजूद कुछ लोग उनके विरोध में स्वर उठाते रहे.विरोधियों
शम्अ’-ए-तूर
कहते हैं कि हज़रत मूसा को सीना नामक वन में तूर पर्वत पर ईश्वर की ज्योति दृष्टिगोचर हुई.उस समय बड़ी तेज़ आंधी चल रही थी.ज्योति को देखकर मूसा चकित हो गए.वह उसका रहस्य जानने के लिए तूर पर्वत की ओर गए.उन्होंने वहां देखा कि एक हरे-भरे पेड़ में आग लगी हुई है.जब
गोल
गोल को छलावा कहते हैं,यह एक प्रकार का देव है जो जंगलों, पहाड़ों या बयाबानों में रहता है. वह जो चाहे रूप धारण कर सकता है.वह यात्रियों को लूट लेता है और उनकी जान ले लेता है.
गौसाला-ए-सामरी
सामरी हज़रत मूसा के समय का एक प्रसिद्ध जादूगर था और सामिर शहर का रहने वाला था.वह हज़रत मूसा का विरोधी था. एक दफ़ा’ जब हज़रत मूसा तूर पर्वत पर गए हुए थे तो उसने जादू से एक सोने का बछड़ा बनाया जो आवाज़ करता था. हज़रत मूसा की क़ौम ने उसे पूजना शुरू कर दिया. मूसा
हूर
ऐसी मान्यता है कि हूरें बिहिश्तियों (जन्नत वासियों) की सेवा सुश्रुषा में होंगी. ज़ाहिद अगर ब-हूर-ओ-क़ुसूरस्त उम्मीदवार मा रा शराब-ख़ान: क़ुसूरस्त-ओ-यार हूर (अर्थात– यदि ज़ाहिद (संयमी) हूर और बिहिश्त (स्वर्ग) के महलों की आशा रखता है,तो रखने दो; हमारे
बुतान-ए-आज़री
आज़र,हज़रत इब्राहीम के पिता और तत्कालीन नास्तिक बादशाह नमरूद के जमाई थे.वह अपने समय के प्रसिद्ध बुत-तराश थे. हज़रत इब्राहीम एक ईश्वर को मानने वाले थे इसलिए उन्होंने अपने पिता के बनाए सारे बुतों को तोड़ डाला.जब नमरूद को यह ख़बर मिली तो आग-बबूला होकर उसने हज़रत-ए-इब्राहीम
कोहकन–फ़रहाद
पहाड़ काटने वाला फ़रहाद जो ईरान के बादशाह ख़ुसरव परवेज़ की मलिका शीरीन का सच्चा प्रेमी था.कोहकन का अर्थ सच्चे प्रेमी से भी लिया जाता है.
आब-ए-हयात (अमृत)
ऐसी मान्यता है कि आब-ए-हयात पीने से अमरत्व की प्राप्ति होती है. हज़रत ख़िज़्र (एक पैग़म्बर) के विषय में प्रसिद्ध है कि उन्होंने आब-ए-हयात पिया है और वह क़यामत तक जीवित रहेंगे. हाफ़िज़ ने आब-ए-हयात का प्रयोग ज्ञान के लिए किया है दोश वक़्त-ए-सफ़र अज़ ग़ुस्स: निजातम
चनार
प्रसिद्ध है कि चनार नामक पेड़ से आग झड़ती है.इस पेड़ के बड़े-बड़े पत्तों का आकार इंसान के पंजों की तरह होता है.
बाग़-ए-इरम या शद्दाद
बाग़-ए-इरम,गुलज़ार-ए-इरम,बिहिश्त-ए-इरम,बिहिश्त-ए-शद्दाद या बाग़-ए-शद्दाद को आ’द क़ौम के बादशाह ने बिहिश्त की नक़ल पर कोहिस्तान-ए-यमन में निर्मित करवाया था.उस बाग़ में ख़ूबसूरत महल और भाँति-भाँति के वृक्ष लगवाए गए.हूरों की जगह सुन्दर स्त्रियाँ और ग़िल्मानों की
दुरफ़्श-ए-कावयानी
ज़ह्हाक के शासनकाल में इस्फ़हान में एक लुहार रहता था जिसका नाम कावा था. उसके चार बच्चे ज़ह्हाक के साँपों की नज़र हो गए. ज़ह्हाक के अत्याचारों से जनता भी त्रस्त थी. बादशाह के घोर अत्याचारों को देख कर कावा के मन में जोश पैदा हुआ.उसने अपनी दुकान बंद कर दी और
गाव-ए-ज़मीन
वह बैल जिसके विषय में प्रसिद्ध है कि उसके सींग पर यह पृथ्वी टिकी हुई है और वह एक मछली की पीठ पर खड़ा है. मछली हवा में तैर रही है.
हुमा
हुमा एक काल्पनिक पक्षी है जो सदैव हवा में उड़ता रहता है और ज़मीन को कभी स्पर्श नहीं करता.यदि इसकी परछाई किसी व्यक्ति पर पड़ जाए तो वह बादशाह बन जाता है.यह भी मान्यता है कि हुमा किसी को नहीं सताता सिर्फ़ अस्थियाँ खा कर अपना जीवन निर्वाह करता है.
तख़्त-ए-सुलैमान
प्रसिद्ध है कि हज़रत सुलैमान का सिंहासन हवा में उड़ा करता था. शैख़ सा’दी फ़रमाते हैं – न-ख़ुद सरीर-ए-सुलैमान ब-बाद रफ़्ती व बस कि हर कुजा कि सरीरीस्त मी-रवद बर बाद (अर्थात– न केवल हज़रत सुलैमान का ही सिंहासन हवा में उड़ा करता था,जहाँ कहीं भी कोई सिंहासन
दारा–सिकंदर
फ़ारसी साहित्य में दारा और सिकंदर की दुश्मनी प्रसिद्ध है. दारा (तृतीय) अकोमोनियन वंश का आख़िरी बादशाह था जिसने ईरान पर राज किया. इसके शासनकाल में सिकंदर ने ईरान पर हमला किया था. दारा की हार हुई और उसे उसके अपने अंगरक्षकों ने ही मौत की नींद सुला दिया.सिकंदर
ख़ातिम-ए-सुलैमान
प्रसिद्ध है कि हज़रत सुलैमान के पास एक अंगूठी थी,जिसके प्रभाव से पूरे संसार पर उनको प्रभुत्व प्राप्त था.इंसान–दानव, देव–परी सभी उनके वश में थे.हवा उनके सिंहासन को उनकी इच्छानुसार उड़ा ले जाती थी. एक बार सख़रा नाम के एक दुष्ट देव ने उस अंगूठी को चुरा लिया
हज़रत ज़करिया
अपने समय के प्रसिद्ध पैग़म्बर.जब यहूदियों ने उनकी जान लेने का निश्चय किया तो वह प्राण लेकर भागे.रास्ते में एक बड़ का पेड़ था. ईश्वर की कृपा से वह पेड़ फट गया और हज़रत ज़करिया उस में छिप गए.पेड़ पुनः पहले की तरह हो गया. उनके लिबास का एक कोना ग़लती से बाहर रह
शक़्क़ुल-क़मर
प्रसिद्ध है कि हज़रत मोहम्मद ने अपनी उंग्ली के इशारे से चाँद के दो टुकड़े कर दिए थे.आपके इस मो’जिज़ा को शक़्क़ुल-क़मर कहते हैं.
हफ़्त व नुह (सोलह सृंगार)
प्रसिद्ध फ़ारसी कवि अमीर खुसरौ ने सृंगार 16 की व्याख्या की है जो निम्नलिखित है– हफ्त-सुर्म:, वस्मा,निगार, ग़ाज़ा,सफे़दाब,ज़र्क,ग़ालिया नु:-सर आवेज़ा,गोशवारा, सिलसिला, हल्क़: व बीनी,गुलू-बंद,बाज़ू-बंद,दस्त बरनजन,अंगुश्तर,ख़ल्ख़ाल
समंदर
आतिशदानों में छिपकली की आकृति का एक जीव उत्पन्न हो जाता है और अपना जीवन यापन अग्नि से ही करता है. इसे समंदर,समिंदर,समंदल या समंदूर कहते हैं.यह शब्द साम (अग्नि) और अन्दरू (भीतर) से बना है.मान्यता है कि जिस स्थान पर लगातार एक हज़ार साल तक आग जलती रहे, वहाँ
अफ़लातून (प्लेटो)
यूनान का प्रसिद्ध दार्शनिक. अरस्तू का गुरु तथा सुक़रात का शिष्य था. कहते हैं कि जीवन के आख़िरी दिनों में अफ़लातून एक ख़ुम (मटका) में बैठ गया और उस ख़ुम को एक पहाड़ की गुफा में रख दिया गया.
मन्न-ओ-सल्वा
नील नदी को पार करने के बा’द बनी-इस्राईल चालीस साल तक तीह वन में रहे.वहाँ उनके जीवन का निर्वाह मन्न-ओ-सल्वा से होता था.मन्न शहद जैसी एक मीठी वस्तु थी जो वृक्षों पर जम जाती थी.सल्वा पक्षी थे.अँधेरा होने पर वे उन्हें भून कर खा लिया करते थे. फ़ारसी शाइ’रों
हज़रत अय्यूब
हज़रत अय्यूब बनी-इस्राईल जाति के धैर्यशाली पैग़म्बर थे.ईश्वर की रज़ा में राज़ी रहना उनका स्वाभाव था.उनके पास अकूत धन संपत्ति,पुत्र और पशु धन थे.कुछ समय पश्चात बाढ़ में उनकी पूरी खेती नष्ट हो गयी,सब पशु मर गए,सारी संतान मकान के नीचे दब कर मर गयी परन्तु उन्होंने
ज़ुलक़रनैन या सिकंदर
मान्यता है कि ज़ुलक़रनैन बड़ा प्रतापी बादशाह था,जिसने पूर्व-पश्चिम की यात्रा की थी. ज़ुलक़रनैन का वर्णन क़ुरआन में किया गया है परन्तु वह कौन था इस पर प्रकाश नहीं डाला गया है. क़ुरआन में वर्णित ज़ुलक़रनैन की कहानी का संक्षिप्त वर्णन यूँ है– ज़ुलक़रनैन ने पूर्व
जाम-ए-जम
बादशाह जमशेद के पास एक प्याल: था जिसके बारे में कहा जाता है कि उसमें देखने पर समस्त संसार की घटनाओं का ज्ञान हो जाता था.उस प्याले पर रेखाएं आदि अंकित थीं जिनके द्वारा नक्षत्रों की गति का पता चलता था. इस प्याले को जाम-ए-जहाँनुमा और जाम-ए-जहाँबीन भी कहा
नूरु-ए-मोहम्मदिया
सूफ़ी मान्यता है कि ईश्वर की परम ज्योति से सबसे पहले नूरु-ए-मोहम्मदिया की उत्पत्ति हुई और फिर उन्ही की प्रसन्नता हेतु दृश्य जगत की सृष्टि हुई.
नौशेरवां की न्यायप्रियता
नौशेरवां ईरान का न्यायप्रिय बादशाह था.बग़दाद शहर उसी ने बसाया था.वहीं वह न्याय किया करता था.बुज़र्ज़ मिहर उसका मंत्री था.मेसोपोटामिया में नौशेरवां का बसाया ऐवान-ए-किसरा जीर्ण शीर्ण अवस्था में आज भी विद्यमान है.इसे ताक़-ए- किसरा भी कहते हैं. कहते हैं कि
मोजिज़ात-ए-मूसा
ईश्वर ने कोह-ए-तूर पर हज़रत मूसा को फ़िरऔन के जादूगरों का मुक़ाबला करने के लिए दो चमत्कार प्रदान किये.ये दो चमत्कार निम्न हैं – 1.अ’सा-ए-मूसा या अ’सा-ए-कलीम– जब हज़रत मूसा अपना अ’सा ज़मीन पर रखते थे तो वह साँप बन जाता था. वह अ’सा पानी को काट कर ख़ुश्क रास्ता
गुल-ओ-बुलबुल
फ़ारसी काव्य में गुल का विशेष स्थान है.गुल को हिंदुस्तान में गुलाब कहा जाता है इसी पर बुलबुल आसक्त होती है.जब ईरान में गुल खिलते हैं तो बुलबुल मदमस्त हो जाती है.मौलाना आज़ाद लिखते हैं– “ इधर गुलाब खिला,उधर बुलबुल-ए-हज़ार-दास्तान उसकी शाख़ पर बैठी नज़र आई.बुलबुल
हज़रत उमर
हज़रत उमर को इस्लाम के दूसरे ख़लीफा थे.वह बड़े न्यायप्रिय थे. एक बार उनके लाडले बेटे ने शराब पी ली.जब उन्हें पता चला तो उन्होंने अन्य शराबियों की तरह ही अपने बेटे को भी 80 कोड़ों की सज़ा सुनाई और स्वयं कोड़े लगाना शुरू किया.पुत्र की आँखों से आँसू बह चले परन्तु