Sufinama
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अज्ञात

अज्ञात

ग़ज़ल 36

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सूफ़ी लेख 4

 

कलाम 170

दकनी सूफ़ी काव्य 1

 

फ़ारसी कलाम 23

राग आधारित पद 10

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अज्ञात

अज्ञात

अज्ञात

अपनी निगाह-ए-शौक़ को रोका करेंगे हम

अज्ञात

अब तंगी-ए-दामाँ पे न जा और भी कुछ माँग

अज्ञात

आँख लड़ने का बहाना हो गया

अज्ञात

आज उनके दामन पर अश्क मेरे ढलते हैं

अज्ञात

इक क़ियामत बन गई है आश्नाई आप की

अज्ञात

'इनायत की नज़र हो जाए मुझ आफ़त के मारे पर

अज्ञात

इ'श्क़ की हद से निकलते फिर ये मंज़र देखते

अज्ञात

उनका हो कर ख़ुद उन्हें अपना बना सकता हूँ मैं

अज्ञात

उस ने भरी महफ़िल को दीवानः बना डाला

अज्ञात

ऐ फ़ित्ना-ए-हर-महफ़िल ऐ महशर-ए-तन्हाई

अज्ञात

ऐ शो’ला-ए-जवाला जब से लौ तुझ से लगाए बैठे हैं

अज्ञात

कभी उन का नाम लेना कभी उन की बात करना

अज्ञात

करें हम किस की पूजा और चढ़ाएँ किस को चंदन हम

अज्ञात

कलाम-ए-ख़ुदा है कलाम-ए-मोहम्मद

अज्ञात

कस्मपुर्सी में ग़रीबों के सहारे ख़्वाजा

अज्ञात

किस क़दर महव-ए-तमाशा हो गया

अज्ञात

किस चीज़ की कमी है मौला तिरी गली में

अज्ञात

किसी को हिज्र तड़पाए तुम्हें क्या

अज्ञात

कोई मज़ा मज़ा नहीं कोई ख़ुशी ख़ुशी नहीं

अज्ञात

ख़्वाजा-ए-ख़्वाजगाँ की चादर है

अज्ञात

ग़म-ए-इ'श्क़ में आह-ओ-फ़रियाद कैसी हर इक नाज़ उनका उठाना पड़ेगा

अज्ञात

ज़ुल्म हम पर हर-आन होते हैं

अज्ञात

जहान सब हम ने छान मारा हसीन-ए-यकता तुम्हीं को देखा

अज्ञात

जिन रातों में नींद उड़ जाती है क्या क़ह्र की रातें होती हैं

अज्ञात

जिस तरफ़ से गुलशन-ए-’अदनान गया

अज्ञात

जो कफ़न बाँध के सर से गुज़रे

अज्ञात

तजल्ली नूर क़दम-ए-ग़ौस आ'ज़म

अज्ञात

तुझी को जो याँ जल्वा-फ़रमा न देखा

अज्ञात

तुम जिस को देख लो वो न पहलू में पाए दिल

अज्ञात

तुम्हारी दीद में है वो असर या ग़ौस समदानी

अज्ञात

तेरी नज़र से दिल को सुकूँ है क़रार है

अज्ञात

तिरे हुस्न का करिश्मा मिरी हर बहार ख़्वाजा

अज्ञात

तिरी उल्फ़त में मर मिटना शहादत इस को कहते हैं

अज्ञात

दिल में कुछ और मिरे हसरत-ओ-अरमान नहीं तेरी चाहत के सिवा

अज्ञात

दिल हो गया है जब से शैदा अबुल-उ'ला का

अज्ञात

दीन से दूर न मज़हब से अलग बैठा हूँ

अज्ञात

न है बुत-कदा की तलब मुझे न हरम के दर की तलाश है

अज्ञात

नूरी महफ़िल पे चादर तनी नूर की नूर फैला हुआ आज की रात है

अज्ञात

निकल गए हैं ख़िरद की हदों से दीवाने

अज्ञात

बे-गाना-ए-इ’रफ़ाँ को हक़ीक़त की ख़बर क्या

अज्ञात

ब-तुफ़ैल-ए-दामन-ए-मुर्तज़ा में बताऊँ क्या मुझे क्या मिला

अज्ञात

ब-तुफ़ैल-ए-दामन-ए-मुर्तज़ा मैं बताऊँ क्या मुझे क्या मिला

अज्ञात

मैं आईना हूँ शख़्स और 'अक्स तू है

अज्ञात

मैं ख़ुद को ढूँढता हूँ वो हाथ आ रहे हैं

अज्ञात

मैं दंग हूँ अपने में हैरत उसे कहते हैं

अज्ञात

मैं बुरा हूँ या भला हूँ मेरी लाज को निभाना

अज्ञात

मय-कदे का निज़ाम तुम से है

अज्ञात

मायूस साएल ने जब घर की राह ली

अज्ञात

मोहब्बत की हम चोट खाए हुए हैं

अज्ञात

ये जहाँ भी तू है इस की आख़िरी मंज़िल भी तू

अज्ञात

यार अग़्यार में नज़र आया

अज्ञात

यार अपनी शक्ल में है हम हैं शक्ल-ए-यार में

अज्ञात

यार की मर्ज़ी के ताबे' यार का दम-भर के देख

अज्ञात

रहने दो चुप मुझे न सुनो माजरा-ए-दिल

अज्ञात

लेके दिल में मोहब्बत की पाकीज़गी घर से निकले थे दैर-ओ-हरम के लिए

अज्ञात

ला-मकाँ छुप न सका यार तुम्हारा हम से

अज्ञात

लौ मदीने की तजल्ली से लगाए हुए हैं

अज्ञात

वही आबले हैं वही जलन कोई सोज़-ए-दिल में कमी नहीं

अज्ञात

वो अदा-ए-दिलबरी हो कि नवा-ए-आशिक़ाना

अज्ञात

वो जब से ख़िर्मन मसर्रतों का जला गए बिजलियाँ गिरा के

अज्ञात

शौक़ से ना-कामी की बदौलत कूचा-ए-दिल भी छूट गया

अज्ञात

सुने कौन क़िस्सा-ए-दर्द-ए-दिल मेरा ग़म-गुसार चला गया

अज्ञात

सरताज-ए-रुसुल मक्की मदनी सरकार-ए-दो-आ’लम सल्ले-अ'ला

अज्ञात

सलाम-ए-'इश्क़ तुझे ऐ बहार-ए-ग़म बीनी

अज्ञात

साए में तुम्हारे दामन के जिस दिन से गुज़ारा करते हैं

अज्ञात

हम ने सौ आफ़तें मोल ली जान-ए-जाँ इक तुम्हारी ही राज़ी ख़ुशी के लिए

अज्ञात

हर इक मुश्किल में काम आई दुहाई मेरे मौला की

अज्ञात

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Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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