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अज्ञात

अज्ञात के सूफ़ी उद्धरण

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तौबा गुनाहों को खा जाती है।

ग़ुस्सा समझदारी को खा जाता है।

सदक़ा (दान) मुसीबत को खा जाता है।

तकब्बुर इल्म को खा जाता है।

ज़ुल्म इंसाफ़ को खा जाता है।

ग़ुस्सा समझदारी को खा जाता है।

ग़ीबत नेकियों को खा जाती है।

ग़म उम्र को खा कर कम कर देता है।

ग़म उम्र को खा कर कम कर देता है।

झूठ रोज़ी को चट कर जाता है।

तौबा गुनाहों को खा जाती है।

सदक़ा (दान) मुसीबत को खा जाता है।

पशेमानी सख़ावत को खा जाती है।

पशेमानी सख़ावत को खा जाती है।

ग़ीबत नेकियों को खा जाती है।

नेकी बुराई को खा जाती है।

नेकी बुराई को खा जाती है।

झूठ रोज़ी को चट कर जाता है।

ज़ुल्म इंसाफ़ को खा जाता है।

तकब्बुर इल्म को खा जाता है।

معرفت کی حالت اٹھتے ہوئے لہروں کی طرح ہے، وہ اٹھاتی ہے اور پھر نیچے دھکیل دیتی ہے۔

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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