सदिक़ देहलवी के अशआर
है यही शर्त बंदगी के लिए
सर झुकाऊँ तेरी ख़ुशी के लिए
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हसरत-ओ-अरमाँ का दिल से हर निशाँ जाता रहे
जिस में हो तेरी रज़ा मेरी ख़ुशी ऐसी तो हो
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ज़िंदगी है मासियत का आईना
फिर भी उस पर नाज़ कुछ है तो सही
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नहीं होती वफ़ा की मंज़िलें आसाँ कभी उस पर
मोहब्बत में जो हस्ती आश्ना-ए-ग़म नहीं होती
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मेरी हस्ती है आईना तेरे रुख़ की तजल्ली का
ज़माने पर अयाँ तेरी हक़ीक़त होती जाती है
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'सादिक़' नसीब होगी मुझे सुब्ह-ए-आरज़ू
वो शाम ही से मेरी निगाहों में आ गए
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बुझ रहे हैं चराग़ अश्कों के
कैसे ताबिंद: रात की जाए
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वो आँखें वो ज़ुल्फ़ें वो रुख़ वो ग़म्ज़े वो नाज़-ओ-अदा
किस ने असीर-ए-दाम किया हम ख़ुद ही असीर-ए-दाम हुए
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नहीं आती किसी को मौत दुनिया-ए-मोहब्बत में
चराग़-ए-ज़िंदगी की लौ यहाँ मद्धम नहीं होती
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अभी तक तो ग़ुबार-आलूद है आईना-ए-हस्ती
जो चाहें आप तो ये आईना आईना बन जाए
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बला के रंज-ओ-ग़म दरपेश हैं राह-ए-मोहब्बत में
हमारी मंज़िल-ए-दिल तक हमें अल्लाह पहुँचाए
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तेरे ग़म की हस्रत-ओ-आरज़ू है ज़बान-ए-इ’श्क़ में ज़िंदगी
जिन्हें मिल गया है ये मुद्दआ’ वो मक़ाम-ए-ज़ीस्त भी पा गए
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अपने ही ग़म पे तब्सिरा न करूँ
क्यूँ ज़माने की बात की जाए
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जिस दिन से मेरे दिल को आबाद किया तुम ने
अनवार की जन्नत है काशान: जिसे कहिए
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मेरे सोज़-ए-दरूँ ने आँख में आँसू नहीं छोड़े
जहाँ शो'ले भड़कते हों वहाँ शबनम नहीं होती
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दिल के हर गोशे में तू हो आशिक़ी ऐसी तो हो
मैं तेरा हो कर रहूँ अब ज़िंदगी ऐसी तो हो
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वो भी 'सादिक़' गोश-बर-आवाज़ हैं
अब मेरी आवाज़ कुछ है तो सही
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तसव्वुर में वो आएँगे तो पूरी आरज़ू होगी
वो मेरे पास होंगे और उन से गुफ़्तुगू होगी
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अब तो 'सादिक़' है ये आरज़ू
इ’श्क़ ही मेरी मंज़िल बने
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere