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अज्ञात

अज्ञात

ग़ज़ल 33

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सूफ़ी लेख 6

कलाम 258

दकनी सूफ़ी काव्य 1

 

फ़ारसी कलाम 29

फ़ारसी सूफ़ी काव्य 2

 

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अगर ख़ुदा है तो मैं नहीं हूँ अगर हूँ मैं तो ख़ुदा नहीं है

अज्ञात

अगरचे नफ़्स-ए-अम्मारा में ये जुम्बिश नहीं होती

अज्ञात

अपने में दिखाता है जो अल्लाह का जल्वा अजमेर का ख़्वाजा

अज्ञात

अपना महरम जो बनाया तुझे मैं जानता हूँ

अज्ञात

अपनी ख़ुदी के हम हैं पुजारी

अज्ञात

अपनी निगाह-ए-शौक़ को रोका करेंगे हम

अज्ञात

अब क्या बताऊँ मैं तिरे मिलने से क्या मिला

अज्ञात

अब तंगी-ए-दामाँ पे न जा और भी कुछ माँग

अज्ञात

अल्लाह रे इंसान अल्लाह रे अल्लाह

अज्ञात

अल्लाह रे फ़ैज़-ए-आम दर-ए-दस्तगीर का

अज्ञात

अल्लाह रे ये मर्तबा-ओ-शान-ए-मोहम्मद

अज्ञात

अव्वल-ए-शब वो बज़्म की रौनक़ शम्अ' भी थी परवाना भी

अज्ञात

आँख लड़ने का बहाना हो गया

अज्ञात

आज उनके दामन पर अश्क मेरे ढलते हैं

अज्ञात

आज वो साक़ी हैं मैं मय-ख़्वार हूँ

अज्ञात

आज संदल है यूसुफ़ शरीफ़ का बू-ए-संदल महकने लगी है

अज्ञात

आता नज़र है जल्वा-ए-दीदार हर तरफ़

अज्ञात

आता है दिल में बुत की परस्तिश किया करूँ

अज्ञात

आप आए तो ख़याल-ए-दिल-ए-नाशाद आया

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आप कौनैन की हैं जान रसूल-ए-’अरबी

अज्ञात

आमद से मुस्तफ़ा की हर इक शय बदल गई

अज्ञात

आया बना आया हरियाला बना आया राज दुलारा बना आया

अज्ञात

'आशिक़ों का कुल सर-ओ-सामाँ मोहम्मद मुस्तफ़ा

अज्ञात

आँसू किसी का देख कि बीमार मर गया

अज्ञात

आँसू मिरी आँखों में नहीं आए हुए हैं

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इक क़ियामत बन गई है आश्नाई आप की

अज्ञात

इक दम कोई गर देखे वो जल्वा-ए-जानाना

अज्ञात

'इनायत की नज़र हो जाए मुझ आफ़त के मारे पर

अज्ञात

इलाज-ए-दर्द-ए-दिल तुम से मसीहा हो नहीं सकता

अज्ञात

'इश्क़ की बर्बादियों की फिर नई तम्हीद है

अज्ञात

इ'श्क़ की हद से निकलते फिर ये मंज़र देखते

अज्ञात

'इश्क़-ए-नबवी क्या है कौनैन की दौलत है

अज्ञात

उठा वो जो था मीम का पर्दा शब-ए-मे'राज

अज्ञात

उनका हो कर ख़ुद उन्हें अपना बना सकता हूँ मैं

अज्ञात

उसे क्या पाओगे पाने की ख़ुद तदबीर उल्टी है

अज्ञात

उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ

अज्ञात

उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ

अज्ञात

उस ने भरी महफ़िल को दीवानः बना डाला

अज्ञात

उस यार को पहचानो जो सब से निराला है

अज्ञात

उसी गुम-शुदा का पता मिल गया है वहीं हैं मोहम्मद जहाँ पर ख़ुदा है

अज्ञात

एक नज़र मुझ पे भी वो ताज-ए-शफ़ा'अत वाले

अज्ञात

ऐ जमाल-ए-पाक-ए-तू ईमान-ए-मन

अज्ञात

ऐ दिल-ए-ज़ार इतना न बे-चैन हो मैं नै माना कि फ़ुर्क़त गवारा नहीं

अज्ञात

ऐ फ़ित्ना-ए-हर-महफ़िल ऐ महशर-ए-तन्हाई

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ऐ मिरे हम-नशीं चल कहीं और चल इस चमन में अब अपना गुज़ारा नहीं

अज्ञात

ऐ शो’ला-ए-जवाला जब से लौ तुझ से लगाए बैठे हैं

अज्ञात

ऐसे दिनन बरखा-रुत आइन घर नाईं हमरे श्याम रे

अज्ञात

कुछ कुफ़्र ने फ़ित्ने फैलाए कुछ ज़ुल्म ने शो'ले भड़काए

अज्ञात

कभी उन का नाम लेना कभी उन की बात करना

अज्ञात

क्या ग़म मेरी मदद पे अगर ग़ौस-ए-पाक हैं

अज्ञात

क्या पूछते हो हुस्न सरापा-ए-मदीना

अज्ञात

करें हम किस की पूजा और चढ़ाएँ किस को चंदन हम

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करम का वक़्त है हद से ज़्यादा है परेशानी

अज्ञात

करम हो जाए तो कर लूँ नज़ारा या रसूल-अल्लाह

अज्ञात

कलाम-ए-ख़ुदा है कलाम-ए-मोहम्मद

अज्ञात

कलिमा जो नहीं पढ़ता मोमिन नहीं कहलाता

अज्ञात

कस्मपुर्सी में ग़रीबों के सहारे ख़्वाजा

अज्ञात

कहें किस से कि उन आँखों से क्या क्या हम ने देखा है

अज्ञात

कहाँ जाए नज़र और जाए तो जाए किधर हो कर

अज्ञात

का'बे का शौक़ है न सनम-ख़ाना चाहिए

अज्ञात

का'बे में बस गया है सनम किस के वास्ते

अज्ञात

का'बे में भी है गर्मि-ए-बाज़ार-ए-मोहम्मद

अज्ञात

कितनी हसीन शक्ल मेरे मुस्तफ़ा की है

अज्ञात

किस क़दर महव-ए-तमाशा हो गया

अज्ञात

किस चीज़ की कमी है मौला तिरी गली में

अज्ञात

किस तर्ह से पुकारे तुम्हें क्या कहा करे

अज्ञात

किसी को हिज्र तड़पाए तुम्हें क्या

अज्ञात

कोई मज़ा मज़ा नहीं कोई ख़ुशी ख़ुशी नहीं

अज्ञात

ख़ुद अपने को पाना ही अल्लाह को पाना है

अज्ञात

ख़ुद की तहक़ीक़ में राज़ ये खुल गया

अज्ञात

ख़ुदा को मैं ने देखा है मेरे मुर्शिद की सूरत में

अज्ञात

ख़ुदा को याद करता हूँ सनम की आश्नाई में

अज्ञात

ख़ुदा बे-शक्ल था लेनी पड़ी सूरत मोहम्मद की

अज्ञात

ख़ुदा महफ़ूज़ रखे 'इश्क़ के जज़्बात-ए-कामिल से

अज्ञात

ख़ुदा-वंद-ए-मुतलक़ हमारा 'अली है

अज्ञात

ख़ूब रूयत के आश्ना हैं हम

अज्ञात

ख़लक़ के सरवर शाफ़ा-ए-महशर सल्लल्लाहो अलैहे-वसल्लम

अज्ञात

ख़ल्क़ कहती है जिसे दिल तिरे दीवाने का

अज्ञात

ख़ुलासा पंजतन का हैं मु’ईनुद्दीन-ओ-मुहिउद्दीं

अज्ञात

ख़्वाजा-ए-ख़्वाजगाँ की चादर है

अज्ञात

ख़्वाब-ए-'अदम से 'इश्क़ ने हम को जगा दिया

अज्ञात

ख़ुशी में ख़फ़ी से निकल जा रहा है

अज्ञात

ख़ाना-ए-दिल में ख़ुदा था मुझे मा'लूम न था

अज्ञात

गंदुम को खा के 'रिज़वाँ' हैं ऐसे हाल में हम

अज्ञात

ग़ुबार-ए-कूचा-ए-मिर्ज़ा हूँ नक़्श-ए-आब नहीं

अज्ञात

ग़म-ए-इ'श्क़ में आह-ओ-फ़रियाद कैसी हर इक नाज़ उनका उठाना पड़ेगा

अज्ञात

गुरु दर्शन भगवान का दर्शन सिफ़त में ज़ात समाई रे

अज्ञात

चराग़-ए-ख़ाना-ए-ज़हरा-ओ-हैदर क़ुतुब-ए-रब्बानी

अज्ञात

छुड़ा देती है फ़िक्र-ए-ग़ैर से तासीर-ए-मय-ख़ाना

अज्ञात

छींटे देती हुई रिंदों को घटाएँ आई

अज्ञात

जनाब-ए-पीर सा अब कोई आक़ा हो नहीं सकता

अज्ञात

जनाब-ए-वारिस-ए-आल-ए-अबा की चादर है

अज्ञात

जफ़ा-ओ-जौर किया या वफ़ा हुआ सो हुआ

अज्ञात

जब ग़ैर नज़र से दूर हुआ और पाई सफ़ाई नैनन में

अज्ञात

जब मेरी दीद की उस को ख़्वाहिश हुई 'अर्श से फ़र्श पर मुझ को लाना पड़ा

अज्ञात

जब लुत्फ़-ए-बंदगी है अदा यूँ नवाज़ हो

अज्ञात

जब हुस्न-ए-अज़ल पर्दा-ए-इम्कान में आया

अज्ञात

जमाल-ए-सुब्ह-ए-अज़ल वज्ह-ए-कुन-फ़काँ तुम हो

अज्ञात

ज़र्रे-ज़र्रे से 'अयाँ शम्स-ओ-क़मर देखेंगे

अज्ञात

ज़ुल्म हम पर हर-आन होते हैं

अज्ञात

जुस्तुजू ख़ुदा की थी मिल गया मदीने में

अज्ञात

ज़हे नसीब मदीना मक़ाम हो जाए

अज्ञात

जहाँ सर झुकाया दर-ए-यार पाया

अज्ञात

जहाँ है देख कर शैदा ये मेरे पीर की सूरत

अज्ञात

जहान सब हम ने छान मारा हसीन-ए-यकता तुम्हीं को देखा

अज्ञात

ज़ात-ए-रब्ब-ए-ज़ुल-मेनन ख़्वाजा मुई'नुद्दीं हुसन

अज्ञात

ज़िक्र-ए-इन्नी-अनल्लाह किया हूँ

अज्ञात

ज़िंदा रहता है ज़िंदे में

अज्ञात

जिन रातों में नींद उड़ जाती है क्या क़ह्र की रातें होती हैं

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जिसे 'इश्क़-ए-शाह-ए-उमम हो गया

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जिस तरफ़ से गुलशन-ए-’अदनान गया

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जो कफ़न बाँध के सर से गुज़रे

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तू हसरत की नज़रों पे क़ुर्बान हो जा

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तजल्ली नूर क़दम-ए-ग़ौस आ'ज़म

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तुझ से फ़रियाद है ये गुंबद-ए-ख़ज़्रा वाले

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तुझी को जो याँ जल्वा-फ़रमा न देखा

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तुम जिस को देख लो वो न पहलू में पाए दिल

अज्ञात

तुम पर मैं लाख जान से क़ुर्बान या-रसूल

अज्ञात

तुम सिर्र-ए-'अयाँ मक्की मदनी तुम राज़-ए-निहाँ मक्की मदनी

अज्ञात

तुम्हारे तसव्वुर में दिन-रात रहना ये मेरी 'इबादत नहीं है तो क्या है

अज्ञात

तुम्हारे हुस्न की ये शान मिर्ज़ा

अज्ञात

तुम्हारी दीद में है वो असर या ग़ौस समदानी

अज्ञात

तेरे पनघट पे बादल अपनी गागर भरने आते हैं

अज्ञात

तेरी नज़र से दिल को सुकूँ है क़रार है

अज्ञात

तिरे दर की भीक पर है मिरा आज तक गुज़ारा

अज्ञात

तिरे हुस्न का करिश्मा मिरी हर बहार ख़्वाजा

अज्ञात

तिरा क्या काम अब दिल में ग़म-ए-जानाना आता है

अज्ञात

तिरा दर छोड़ कर जाएँ तो अब जाएँ कहाँ मिर्ज़ा

अज्ञात

तिरी उल्फ़त में मर मिटना शहादत इस को कहते हैं

अज्ञात

तिरी ज़ुल्फ़ों ने बल खाया तो होता

अज्ञात

तिरी निगाह ने हर शै का इंतिख़ाब क्या

अज्ञात

देख पर्दा उठा के ग़फ़लत का

अज्ञात

देना है अगर तुझ को दे अपने खज़ाने से

अज्ञात

दुनिया के चमन में पीर मेरा दीवाना बना कर छोड़ दिया

अज्ञात

दम में जब तक दम रहे

अज्ञात

दिखा के उस ने जमाल अपना क़रार सब मेरा ले लिया है

अज्ञात

दिल में कुछ और मिरे हसरत-ओ-अरमान नहीं तेरी चाहत के सिवा

अज्ञात

दिल हो गया है जब से शैदा अबुल-उ'ला का

अज्ञात

दीद बिन अल्लाह मोहम्मद से मोहब्बत कैसी

अज्ञात

दीन से दूर न मज़हब से अलग बैठा हूँ

अज्ञात

दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे

अज्ञात

न कहीं से दूर हैं मंज़िलें न कोई क़रीब की बात है

अज्ञात

न है बुत-कदा की तलब मुझे न हरम के दर की तलाश है

अज्ञात

नज़रों से पी रहा हूँ मैं मय-ख़ाना जा के क्या करूँ

अज्ञात

नबी आप पर से फ़िदा जान-ओ-माल

अज्ञात

नूरी महफ़िल पे चादर तनी नूर की नूर फैला हुआ आज की रात है

अज्ञात

नसीम-ए-बाग़-ए-मदीना उन को दरूद पढ़ कर सलाम कहना

अज्ञात

नसीम-ए-सुब्ह गुलशन में गुलों से खेलती होगी

अज्ञात

नहीं अब आप की फ़ुर्क़त का यारा या रसूल-अल्लाह

अज्ञात

नहीं ख़ल्क़ ही में ये ग़लग़ला तेरी शान-ए-जल्ला-जलालुहु

अज्ञात

नहीं मुम्किन हर इक के दिल में नक़्श-ए-यार हो पैदा

अज्ञात

नाम अब जिस का ख़्वाजा है

अज्ञात

निकल गए हैं ख़िरद की हदों से दीवाने

अज्ञात

पयाम लाई है बाद-ए-सबा मदीने से

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पर्दा-ए-नूर में हैं यार मदीने वाले

अज्ञात

पेश-ए-हक़ कुछ तिरा नमूना रहे

अज्ञात

पास आते हैं मिरे और न बुलाते हैं मुझे

अज्ञात

फ़क़ीराना आए सदा कर चले

अज्ञात

फ़ैज़-बख़्शी की है क्या शान तिरे कूचा में

अज्ञात

फिर दिल में मिरे आई याद शह-ए-जीलानी

अज्ञात

बे-गाना-ए-इ’रफ़ाँ को हक़ीक़त की ख़बर क्या

अज्ञात

बड़े काम अपना नसीब आ गया है

अज्ञात

ब-तुफ़ैल-ए-दामन-ए-मुर्तज़ा में बताऊँ क्या मुझे क्या मिला

अज्ञात

ब-तुफ़ैल-ए-दामन-ए-मुर्तज़ा मैं बताऊँ क्या मुझे क्या मिला

अज्ञात

बंदे को निगाह-ए-लुत्फ़-ए-मौला बस है

अज्ञात

बला-कशान-ए-ग़म-ए-इंतिज़ार हम भी हैं

अज्ञात

बहुत मुद्दत से थी हसरत नज़्र ख़्वाजा के हो जाऊँ

अज्ञात

भीक दे जाइए अपने दीदार की मरने वाले का अरमाँ निकल जाएगा

अज्ञात

मैं अपने साक़ी का बंदा हूँ और क्या जानूँ

अज्ञात

मैं आई सहेली 'अदम के नगर से

अज्ञात

मैं आईना हूँ शख़्स और 'अक्स तू है

अज्ञात

मैं ख़ुद को ढूँढता हूँ वो हाथ आ रहे हैं

अज्ञात

मैं दंग हूँ अपने में हैरत उसे कहते हैं

अज्ञात

मैं बुरा हूँ या भला हूँ मेरी लाज को निभाना

अज्ञात

मैं वहदत का पर्दा हूँ अल-हम्दु-लिल्लाह

अज्ञात

मैं सुन कर मस्त हूँ नग़्मा किसी का

अज्ञात

मज़हर-ए-ज़ात-ए-ख़ुदा है अपना ख़्वाजा बादशाह

अज्ञात

मुझ को काफ़ी है ये संग-ए-दर-ए-जानाना मिरा

अज्ञात

मुझे मुश्किल है तुझे पास बुलाना जाना

अज्ञात

मन का माला जप रहा हूँ रख के तुम को सामने

अज्ञात

मय-कदे का निज़ाम तुम से है

अज्ञात

मेरा पीर मुझ को ख़रीद कर मुझे क़ैद-ओ-बंद से छुड़ा दिया

अज्ञात

मेरी आँखों का आख़िर दूर ये आज़ार कैसे हो

अज्ञात

मेरी जुस्तुजू का भला हुआ मेरी जुस्तुजू का सिला मिला

अज्ञात

मेरी टिकटिकी सलामत मेरा यार सामने है

अज्ञात

मरीज़-ए-दिल की शिफ़ा ला-इलाहा इल-लल्लाह

अज्ञात

मरीज़-ए-मोहब्बत उन्हीं का फ़साना सुनाता रहा दम निकलते निकलते

अज्ञात

महबूब-ए-ख़ास-ए-हज़रत-ए-सुब्हाँ यही तो है

अज्ञात

मायूस साएल ने जब घर की राह ली

अज्ञात

मिट गया ज़ंग-ए-ख़ुदी दिल की सफ़ाई हो गई

अज्ञात

मिर्ज़ा जी मिर्ज़ाई कर गए

अज्ञात

मिरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा मुझे ज़िंदगी का अलम नहीं

अज्ञात

मोहब्बत की हम चोट खाए हुए हैं

अज्ञात

मोहम्मद ख़ुदा है ख़ुदा है मोहम्मद

अज्ञात

मोहम्मद पे दिल क्या मिरा आ गया

अज्ञात

मोहम्मद मुस्तफ़ा का जा-नशीं सिद्दीक़-ए-अकबर है

अज्ञात

मौत ही न आ जाए काश ऐसे जीने से

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ये एक शक्ल है महशर में मुँह दिखाने की

अज्ञात

ये कहाँ लगी ये कहाँ लगी कि क़फ़स से आज धुआँ उठा

अज्ञात

ये जहाँ भी तू है इस की आख़िरी मंज़िल भी तू

अज्ञात

ये तेरी बंदा-नवाज़ी ये करम है ख़्वाजा

अज्ञात

ये दिल हुज़ूर पे क़ुर्बां नहीं तो कुछ भी नहीं

अज्ञात

ये बारगाह-ए-ख़्वाजा-ए-बंदा-नवाज़ है

अज्ञात

ये मेरे पीर का मुझ पर करम है

अज्ञात

ये राज़ खुला हम पर असरार-ए-ख़िलाफ़त में

अज्ञात

ये है अल्लाह का फ़रमान हर इक को सुना देना

अज्ञात

ये है शराब-ए-'इश्क़ इसे दिल लगा के पी

अज्ञात

यही दर्द-ए-ज़िंदगी है इसी दर्द में मज़ा है

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या मुझे अफ़सर-ए-शाहाना बनाया होता

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या रहमतुल-लिल-'आलमीं

अज्ञात

या सय्यदी या मुस्तफ़ा बहर-ए-ख़ुदा चश्म-ए-करम

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या-मोहम्मद निगाह-ए-करम कीजिए

अज्ञात

यार अग़्यार में नज़र आया

अज्ञात

यार अपनी शक्ल में है हम हैं शक्ल-ए-यार में

अज्ञात

यार की मर्ज़ी के ताबे' यार का दम-भर के देख

अज्ञात

रूप उस के नित-नए और आईना-ख़ाने हज़ार

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रसूल-ए-मुजतबा कहिए मोहम्मद मुस्तफ़ा कहिए

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रहने दो चुप मुझे न सुनो माजरा-ए-दिल

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राज़ ये अपने पे खुलता क्यूँ नहीं

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रोज़-ए-महशर साया-गुस्तर है जो दामान-ए-रसूल

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लेके दिल में मोहब्बत की पाकीज़गी घर से निकले थे दैर-ओ-हरम के लिए

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ला-मकाँ छुप न सका यार तुम्हारा हम से

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लौ मदीने की तजल्ली से लगाए हुए हैं

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वही आबले हैं वही जलन कोई सोज़-ए-दिल में कमी नहीं

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वही जल्वा-नुमा है मैं नहीं हूँ

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वहीं है मोहम्मद जहाँ पर ख़ुदा है

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वो अदा-ए-दिलबरी हो कि नवा-ए-आशिक़ाना

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वो कहते हैं मैं अब तो हो गया हूँ

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वो जब से ख़िर्मन मसर्रतों का जला गए बिजलियाँ गिरा के

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वो रातें याद आती है वो रातें याद आती है

अज्ञात

शक्ल-ए-मुर्शिद को घूर दीवाने

अज्ञात

शौक़ से ना-कामी की बदौलत कूचा-ए-दिल भी छूट गया

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सुख़न को रुत्बा मिला है मिरी ज़बाँ के लिए

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सज्दा मेरा वहाँ अदा न हुआ

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संदल लगाऊँ तुझे ओ मेरे हरियाले बने

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सुन ऐ बाद-ए-सबा तू जानिब-ए-तैबा अगर गुज़रे

अज्ञात

सुन ऐ री सखी चल राज़ गली यसरिब का बसय्या आया है

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सुने कौन क़िस्सा-ए-दर्द-ए-दिल मेरा ग़म-गुसार चला गया

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सनम के जिस्म में आ कर नफ़्स का तार कहते हैं

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सब कुछ है दफ़्न मुझ में वो ज़िंदा मज़ार हूँ

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सँभल ऐ दिल किसी का राज़ बे-पर्दा न हो जाए

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सम्त काशी से चला जानिब-ए-मथुरा बादल

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सरताज-ए-रुसुल मक्की मदनी सरकार-ए-दो-आ’लम सल्ले-अ'ला

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सरापा नक़्शा-ए-दिलदार हूँ मैं

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सरापा है ये अल्लाह का ज़रा देखो मोहम्मद को

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सलाम उस पर कि जिस ने बे-कसों की दस्त-गीरी की

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सलाम-ए-'इश्क़ तुझे ऐ बहार-ए-ग़म बीनी

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सहर का वक़्त है मा'सूम कलियाँ मुस्कुराती हैं

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सहारा बे-सहारों का हिमायत मुर्तज़ा की है

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साए में तुम्हारे दामन के जिस दिन से गुज़ारा करते हैं

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साथ ख़्वाजा भी हैं ग़ौस-ए-आ'ज़म भी हैं

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है जुमला जहाँ परतव-ए-अनवार-ए-मोहम्मद

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है ये सब आप का एहसान रसूल-ए-'अरबी

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है हासिल-ए-हयात मोहब्बत रसूल की

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हक़-अदा-ओ-हक़-नुमा बग़दाद की सरकार है

अज्ञात

हुज़ूर-ए-वारिस-ए-आली-मक़ाम की चादर

अज्ञात

हैदर का पूत आया ज़हरा का जाया आया

अज्ञात

हम अपने सिवा ग़ैर को सज्दा नहीं करते

अज्ञात

हम इस कूचे में जब तक जान है आएँगे जाएँगे

अज्ञात

हम को मुबारक आक़ा हमारा नूर-ए-मुजस्सम हक़ का प्यारा

अज्ञात

हम ने सौ आफ़तें मोल ली जान-ए-जाँ इक तुम्हारी ही राज़ी ख़ुशी के लिए

अज्ञात

हम लोटते हैं वो सो रहे हैं

अज्ञात

हर इक मुश्किल में काम आई दुहाई मेरे मौला की

अज्ञात

हरे झंडे के शहज़ादे जी मेरे पीर दस्तगीर

अज्ञात

हरम और दैर के कतबे वो देखे जिस को फ़ुर्सत है

अज्ञात

हल्क़े में रसूलों के वो माह-ए-मदनी है

अज्ञात

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Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

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