अज़ीज़ वारसी देहलवी के अशआर
तिरा ग़म सहने वाले पर ज़माना मुस्कुराता है
मगर हर शख़्स की क़िस्मत में तेरा ग़म नहीं होता
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मिरी आरज़ू के चराग़ पर कोई तब्सिरा भी करे तो क्या
कभी जल उठा सर-ए-शाम से कभी बुझ गया सर-ए-शाम से
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इ'श्क़ में ऐसा इक आ'लम भी गुज़र जाता है
ज़हन-ओ-इदराक का एहसास भी मर जाता है
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कहीं रौशनी कहीं तीरगी जो कहीं ख़ुशी तो कहीं ग़मी
तेरी बज़्म में हमें दख़्ल क्या तिरे एहतिमाम की बात है
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टैग : ख़ुशी
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कहीं रुख़ बदल न ले अब मिरी आरज़ू का धारा
वो बदल रहे हैं नज़रें मिरी ज़िंदगी बदल कर
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टैग : आरज़ू
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तेरे मिज़ाज में एक दिन भी बरहमी न हुई
ख़ुशी की बात थी लेकिन मुझे ख़ुशी न हुई
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टैग : ख़ुशी
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वो अदा-शनास-ए-ख़िज़ाँ हूँ मैं वो मिज़ाज-दान-ए-बहार हूँ
न है ए'तिबार-ए-ख़िज़ाँ मुझे न यक़ीन फ़स्ल-ए-बहार पर
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टैग : ख़िज़ाँ
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वो अदा-शनास-ए-ख़िज़ाँ हूँ मैं वो मिज़ाज-दान-ए-बहार हूँ
न है ए'तिबार-ए-ख़िज़ाँ मुझे न यक़ीन फ़स्ल-ए-बहार पर
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टैग : अदा
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होश की बातें वही करता है अक्सर होश में
ख़ुद भी जो महबूब हो महबूब की आग़ोश में
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टैग : आग़ोश
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ज़माना हेच है अपनी नज़र में
ज़माने की ख़ुशी क्या और ग़म क्या
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ज़माना हेच है अपनी नज़र में
ज़माने की ख़ुशी क्या और ग़म क्या
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कोई तब्सिरा भी करे तो क्या तिरे पुर-ख़ुलूस शिआ'र पर
जो नसीब-ए-गुल है तिरा करम तो निगाह-ए-लुत्फ़ है ख़ार पर
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टैग : गुल
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लफ़्ज़-ए-उल्फ़त की मुकम्मल शर्ह इक तेरा वजूद
आ'शिक़ी में तोड़ डालीं ज़ाहिरी सारी क़ुयूद
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टैग : आ’शिक़
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जफ़ा-ओ-जौर क्यूँ मुझ को न रास आएँ मोहब्बत में
जफ़ा-ओ-जौर के पर्दे में पिन्हाँ मेहरबानी है
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टैग : जफ़ा
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ग़म-ए-उ’क़्बा ग़म-ए-दुनिया ग़म-ए-दिल
मुक़द्दर में हमारे क्या नहीं है
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टैग : ग़म
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जो 'नूह' से निस्बत रखते हैं ला-रैब 'अ’ज़ीज़' उन की कश्ती
दम-भर में इधर हो जाती है दम-भर में उधर हो जाती है
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टैग : कश्ती
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वो क्या हयात है जो तर्क-ए-बंदगी न हुई
चराग़ जलता रहा और रौशनी न हुई
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टैग : चराग़
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क़दम क़दम पे रही एक याद दामन-गीर
तुम्हारी बज़्म में ये मुझ को बे-ख़ुदी न हुई
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टैग : ख़ुदी
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मिरी आरज़ू के चराग़ पर कोई तब्सिरा भी करे तो क्या
कभी जल उठा सर-ए-शाम से कभी बुझ गया सर-ए-शाम से
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टैग : आरज़ू
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दी सदा ये हातिफ़-ए-ग़ैबी ने हंगाम-ए-दुआ’
आरज़ू पूरी 'अ’ज़ीज़-ए-वारसी' हो जाएगी
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टैग : आरज़ू
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हर आँख में मस्ती है कहिए भी तो क्या कहिए
और आप की बस्ती है कहिए भी तो क्या कहिए
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मिरे माह-ए-मुनव्वर तेरे आगे
चराग़-ए-दैर क्या शम-ए’-हरम क्या
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तू और ज़रा मोहकम कर ले पर्दों की मुकम्मल बंदिश को
ऐ दोस्त नज़र की गर्मी को हम आज शरारा करते हैं
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टैग : गर्मी
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तिरा ग़म सहने वाले पर ज़माना मुस्कुराता है
मगर हर शख़्स की क़िस्मत में तेरा ग़म नहीं होता
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टैग : क़िस्मत
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पए तस्कीन-ए-नज़र दीदा-ए-बीना के लिए
मुख़्तलिफ़ रूप का ये एक ही आईना हैं
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टैग : आईना
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अगर हम से ख़फ़ा होना है तो हो जाइए हज़रत
हमारे बा’द फिर अंदाज़-ए-यज़्दाँ कौन देखेगा
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टैग : ख़फ़ा
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अभी ऐ जोश-ए-गिर्या तू ने ये सोचा नहीं शायद
मोहब्बत का चमन मिन्नत-कश-ए-शबनम नहीं होता
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टैग : गिर्या-ओ-ज़ारी
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere