अर्श गयावी के अशआर
तुम्हें इ’ल्म कुछ जो हो आलिमों तो बता दो मुझ को न चुप रहो
कि शराब-ए-इ’श्क़ का मस्त हूँ ये हलाल है कि हराम है
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मैं वो गुल हूँ न फ़ुर्सत दी ख़िज़ाँ ने जिस को हँसने की
चराग़-ए-क़ब्र भी जल कर न अपना गुल-फ़िशाँ होगा
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टैग : गुल
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वो लोग मंज़िल-ए-पीरी में हैं जो आए हुए
ख़याल-ए-क़ब्र में बैठे हैं सर झुकाए हुए
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न होती दिल में उल्फ़त अपनी क्यूँ क़ातिल के अबरू की
कि मुझ को तो क़तील-ए-ख़ंजर-ए-सफ़्फ़ाक होना था
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टैग : क़ातिल
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आरज़ू थी कर्बला में दफ़्न होते 'अर्श' हम
देखते मर कर भी रौज़ा हज़रत-ए-शब्बीर का
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दर्द की सूरत उठा आँसू की सूरत गिर पड़ा
जब से वो हिम्मत नहीं किसी बल नहीं ताक़त नहीं
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टैग : आँसू
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मैं वो गुल हूँ न फ़ुर्सत दी ख़िज़ाँ ने जिस को हँसने की
चराग़-ए-क़ब्र भी जल कर न अपना गुल-फ़िशाँ होगा
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टैग : क़ब्र
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वो मजनूँ की तस्वीर पर पूछना
तिरी किस के ग़म में ये सूरत हुई
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ज़ब्ह करती है जुदाई मुझ को उस की सुब्ह-ए-वस्ल
ख़्वाब से चौंक ऐ मोअज़्ज़िन वक़्त है तकबीर का
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तुम क़ब्र पर आए हो मिरी फूल चढ़ाने
मुझ पर है गिराँ साया-ए-बर्ग-ए-गुल-ए-तर भी
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जहाँ हैं महव-ए-नग़्मा बुलबुलें गुल जिस में ख़ंदाँ हैं
उसी गुलशन में कल ज़ाग़-ओ-ज़ग़न का आशियाँ होगा
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टैग : गुलशन
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ये रो'ब है छाया हुआ शाम-ए-शब-ए-ग़म का
देता नहीं आवाज़ बजाने से गजर भी
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तिरी राह में जो फ़ना हुए कहूँ क्या जो उन का मक़ाम है
न ये आसमान है न ये ज़मीं न ये सुब्ह है न ये शाम है
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टैग : आसमान
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उस ने लिक्खा ख़त में ये शिकवा न करना जौर का
हम ने लिख भेजा है इतना अपनी ये आदत नहीं
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टैग : ख़त
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स्याही तीरा-बख़्ती की हमारी
शब-ए-ग़म बन गई है आसमाँ पर
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टैग : आसमान
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मैं वो गुल हूँ न फ़ुर्सत दी ख़िज़ाँ ने जिस को हँसने की
चराग़-ए-क़ब्र भी जल कर न अपना गुल-फ़िशाँ होगा
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टैग : ख़िज़ाँ
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अज़ल से मुर्ग़-ए-दिल को ख़तरा-ए-सय्याद क्या होता
कि उस को तो असीर-ए-हल्क़ः-ए-फ़ित्राक होना था
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टैग : असीर
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घेरे हुए कश्ती को है तूफ़ाँ भी भँवर भी
हासिल है मुझे घर भी यहाँ लुत्फ़-ए-सफ़र भी
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टैग : घर
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नख़्ल-बंद-ए-गुलशन-ए-मज़मूँ हूँ फ़ैज़-ए-फ़िक्र से
हर वरक़ दीवाँ का मेरे बाग़ है कश्मीर का
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टैग : गुलशन
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फ़िराक़ में हैं हम अंदाज़ दिल का पाए हुए
ये वो चराग़ है जलता है बे-जलाए हुए
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टैग : चराग़
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फिर वो आ जाता किसी दिन क़ब्र पर
इक निशान-ए-बे-निशानी और है
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टैग : क़ब्र
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सब कुछ ख़ुदा ने मुझ को दिया 'अर्श' बे-तलब
दुख़्तर की आरज़ू न तमन्ना पिसर की है
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ऐ 'अर्श' आओ ख़ाक में दिल्ली के सो रहें
मिट कर भी ख़्वाब-गाह ये अहल-ए-हुनर की है
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हुआ गुल मिरी ज़िंदगी का चराग़
नुमायाँ जो शाम-ए-मुसीबत हुई
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टैग : गुल
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क़ातिल वो शाख़ है तिरी ये तेग़-ए-आबदार
जिस को न गुल का ग़म है न हाजत समर की है
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टैग : क़ातिल
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और हैं जिन को है ख़ब्त-ए-इ'श्क़-ए-हूरान-ए-जिनाँ
हम को सौदा-ए-हवा-ए-गुलशन-ए-जन्नत नहीं
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टैग : गुलशन
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लिए फिरती है अश्कों की रवानी
रवाँ हूँ कश्ती-ए-आब-ए-रवाँ पर
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टैग : कश्ती
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मैं वो गुल हूँ न फ़ुर्सत दी ख़िज़ाँ ने जिस को हँसने की
चराग़-ए-क़ब्र भी जल कर न अपना गुल-फ़िशाँ होगा
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टैग : चराग़
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स्याही तीरा-बख़्ती की हमारी
शब-ए-ग़म बन गई है आसमाँ पर
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हुआ गुल मिरी ज़िंदगी का चराग़
नुमायाँ जो शाम-ए-मुसीबत हुई
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किस तर्ह न पहलू में रक़ीबों को जगह दे
आग़ोश में हर संग के होता है शरर भी
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यही पहचान बहर-ए-ग़म में होगी मेरी कश्ती की
न उस पर नाख़ुदा होगा न उस में बादबाँ होगा
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जान छूटे उलझनों से अपनी ये क़िस्मत नहीं
मौत भी आए तो मरने की मुझे फ़ुर्सत नहीं
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टैग : क़िस्मत
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घेरे हुए कश्ती को है तूफ़ाँ भी भँवर भी
हासिल है मुझे घर भी यहाँ लुत्फ़-ए-सफ़र भी
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मय से चुल्लू भर दे साक़ी जाम का क्या इंतिज़ार
अब्र आया झूम कर मौक़ा नहीं ताख़ीर का
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टैग : इंतिज़ार
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और हैं जिन को है ख़ब्त-ए-इश्क़-ए-हूरान-ए-जिनाँ
हम को सौदा-ए-हवा-ए-गुलशन-ए-जन्नत नहीं
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टैग : जन्नत
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तू वो गुल-ए-रा'ना है जो आ जाए चमन में
झूमा करें इक वज्द के आलम में शजर भी
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टैग : गुल
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गुल-गीर का ख़तर तो पतंगों की है ख़लिश
आफ़त में जान शाम से शम-ए-सहर की है
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टैग : गुल
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere