सीमाब अकबराबादी के अशआर
मैं जिया भी दुनिया में और जान भी दे दी
ये न खुल सका लेकिन आप की ख़ुशी क्या थी
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कमाल-ए-इ’ल्म-ओ-तहक़ीक़-ए-मुकम्मल का ये हासिल है
तिरा इदराक मुश्किल था तिरा इदराक मुश्किल है
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दुनिया है ख़्वाब हासिल-ए-दुनिया ख़याल है
इंसान ख़्वाब देख रहा है ख़याल में
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इ’श्क़ ख़ुद माइल-ए-हिजाब है आज
हुस्न मजबूर-ए-इज़्तिराब है आज
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टैग : इश्क़
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वो उ’रूज-ए-माह वो चाँदनी वो ख़मोश रात वो बे-ख़ुदी
वो तसव्वुरात की सरख़ुशी तिरे साथ राज़-ओ-नियाज़ में
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टैग : ख़ुदी
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उस दर-ए-फ़ैज़ से उम्मीद बंधी रहती है
और मदीना की तरफ़ आँख लगी रहती है
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टैग : आँख
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वहाँ हूँ मैं जहाँ तमईज़-ए-हुस्न-ओ-इ’श्क़ मुश्किल है
हर इक जल्वः अब आग़ोश-ए-नज़र में जल्वः-ए-दिल है
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मिरा दाग़-ए-सज्दा मिटाए क्यूँ फ़लक उस को चाँद बनाए क्यूँ
कि ये दाग़ हासिल-ए-आशिक़ी है मिरी जबीन-ए-नियाज़ में
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वो मेरे सर को ठुकराते हैं सज्दों से ख़फ़ा हो कर
जबीं से मेरी पैवस्तः है उन का आस्ताँ फिर भी
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वो ऐ 'सीमाब' क्यूँ सर-ग़श्तः-ए-तसनीम-ओ-जन्नत हो
मयस्सर जिस को सैर-ए-ताज और जमुना का साहिल है
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टैग : जन्नत
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मस्लहत ये है ख़ुदी की ग़फ़लतें तारी रहें
जब ख़ुदी मिट जाएगी बंद: ख़ुदा हो जाएगा
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ज़िंदगी जिस में साँस लेती थी
वो ज़माना ख़याल-ओ-ख़्वाब है आज
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टैग : ख़्वाब
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इलाही भेद तेरे उस ने ज़ाहिर कर दिए सब पर
कहा था किस ने तू 'सीमाब' को इंसान पैदा कर
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दीजिए उन को कनार-ए-आरज़ू पर इख़्तियार
जब वो हों आग़ोश में बे-दस्त-ओ-पा हो जाइये
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क्यूँ ये ख़ुदा के ढूँडने वाले हैं ना-मुराद
गुज़रा मैं जब हुदूद-ए-ख़ुदी से ख़ुदा मिला
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जल्वा-ए-हर-रोज़ जो हर सुब्ह की क़िस्मत में था
अब वो इक धुँदला सा ख़्वाब-ए-दोश है तेरे बग़ैर
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हम तल्ख़ी-ए-क़िस्मत से हैं तिश्ना-लब-ए-बादा
गर्दिश में है पैमाना पैमाने से क्या कहिए
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दिल की बिसात क्या थी निगाह-ए-जमाल में
इक आईना था टूट गया देख-भाल में
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'सीमाब' कोई मर्तबा मंसूर का न था
लफ़्ज़-ए-ख़ुदी की शरह न मशहूर कर दिया
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टैग : ख़ुदी
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नहीं आँख जल्वा-कश-ए-सहर ये है ज़ुल्मतों का असर मगर
कई आफ़्ताब ग़ुरूब हैं मिरे ग़म की शाम-ए-दराज़ में
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'सीमाब' को शगुफ़्ता न देखा तमाम उ'म्र
कम-बख़्त जब मिला हमें ग़म-आश्ना मिला
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उजाला हो तो ढूँडूँ दिल भी परवानों की लाशों में
मिरी बर्बादियों को इंतिज़ार-ए-सुब्ह-ए-महफ़िल है
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दीजिए उन को कनार-ए-आरज़ू पर इख़्तियार
जब वो हों आग़ोश में बे-दस्त-ओ-पा हो जाइये
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ग़म-ए-इ’श्क़ से सरगिराँ और भी हैं
जहाँ हम हैं शायद वहाँ और भी हैं
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मय-कदा ग़म-कदा है तेरे बग़ैर
सर-निगूँ शीशा-ए-शराब है आज
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इंसान के दिल में घुट-घुट कर जो रूह को खाए जाता है
हिम्मत थी अगर तो दुनिया ने उस राज़ को इफ़्शा कर न दिया
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आप की आवाज़ में है दा’वत-ए-मंज़िल का राज़
कारवान-ए-शौक़ की बाँग-ए-दरा हो जाइये
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नसीम-ए-सुब्ह गुलशन में गुलों से खेलती होगी
किसी की आख़िरी हिचकी किसी की दिल-लगी होगी
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अ’रबी नहीं अ’जमी सही मगर आरज़ू है कि 'वारिसी'
कभी अपना नग़्मा-ए-मश्रिक़ी मैं सुनूँ नवाए-हिजाज़ में
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हम तो अपनी बे-ख़ुदी-ए-शौक़ में सरशार थे
आप से किस ने कहा था ख़ुद-नुमा हो जाइये
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मस्लहत ये है ख़ुदी की ग़फ़लतें तारी रहें
जब ख़ुदी मिट जाएगी बंद: ख़ुदा हो जाएगा
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दुनिया है ख़्वाब हासिल-ए-दुनिया ख़याल है
इंसान ख़्वाब देख रहा है ख़याल में
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क्यूँ ये ख़ुदा के ढूँडने वाले हैं ना-मुराद
गुज़रा मैं जब हुदूद-ए-ख़ुदी से ख़ुदा मिला
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'सीमाब' की सरमस्ती और ग़म-कदा-ए-हस्ती
दीवाना है दीवाना दीवाने से
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ग़म-ए-वामांदगी से बे-नियाज़-ए-होश बैठा हूँ
चली आती है आवाज़-ए-दरा-ए-कारवाँ फिर भी
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere