किशन सिंह आरिफ़ के अशआर
है वो क़ातिल क़त्ल-ए-आशिक़ पर खड़ा
मार देगा ख़ूँ भरी तलवार से
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हम तो आ’शिक़ हैं तेरे सूरज पे जूँ सूरज-मुखी
हो जिधर तू बस उधर ही मुँह हमारा फिर गया
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गर मिले इक बार मुझ को वो परी-वश कज-अदा
उस को ज़ाहिर कर दिखाऊँ दिल का मतलब दिल की बात
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टैग : अदा
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'आरिफ़ा' मैं ख़्वाब-ए-ग़फ़लत में रहा जब बे-ख़बर
जाग कर मैं ने सुना दिलबर प्यारा फिर गया
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टैग : ख़्वाब
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मैं फ़िदा हूँ आप पर और आप हो मुझ पर ख़फ़ा
ये मेरी तक़्सीर है या कज-अदाई आप की
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टैग : ख़फ़ा
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दौलत-ए-इ’श्क़-ए-ख़ुदा हासिल हो गर
कुछ नहीं अच्छा दिगर इस कार से
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टैग : ख़ुदा
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वस्ल की शब हो चुकी रुख़्सत क़मर होने लगा
आफ़ताब-ए-रोज़-ए-महशर जल्वः-गर होने लगा
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टैग : आफ़ताब
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कूचा-ए-जानाँ में जाना है मुहाल
ख़ौफ़ है उस संग-दिल खूँ-ख़्वार से
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टैग : ख़ौफ़
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सिवा क़िस्मत के दुनिया में नहीं कुछ मुतलक़न मिलता
वगर्ना ज़ोर कर के आज़मा ले जिस का जी चाहे
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टैग : क़िस्मत
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न छुप मुझ से तू ऐ बुत-ए-संग-दिल
तुझे इस किताब और क़लम की क़सम
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टैग : किताब
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अगर एक पल हो जुदाई तेरी
तो सहरा मुझे सारा घर-बार हो
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टैग : घर
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ऐ सितमगर बेवफ़ा ये बेवफ़ाई कब तलक
आशिक़ों की तेरे कूचे में दुहाई कब तलक
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टैग : आ’शिक़
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आ के मेरे घर से जब वो महफ़िल-आरा फिर गया
उस के फिरने से मेरे सीने पे आरा फिर गया
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टैग : घर
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मेरा बख़्त-ए-ख़्वाबीदा बेदार हो
तेरा ख़्वाब में मुझ को दीदार हो
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टैग : ख़्वाब
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जो मरने से मूए पहले उन्हें क्या ख़ौफ़ दोज़ख़ का
दिल अपना नार-ए-हिजरत से जला ले जिस का जी चाहे
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टैग : ख़ौफ़
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बे-गुमाँ मिल जाएगा जो है लिखा क़िस्मत के बीच
साबिर-ओ-शाकिर को कुछ जागीर की हाजत नहीं
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है आशिक़ को अपने सनम की क़सम
मुझे तेरे ख़ाक-ए-क़दम की क़सम
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दिल मेरा है मिस्ल-ए-बुलबुल नारा-ज़न
मिस्ल-ए-बू गुल-रू गया गुलज़ार से
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टैग : गुल
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अगर वो पिलावे शराब-ए-विसाल
तो क्या उस का आ’शिक़ न मय-ख़्वार हो
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दिखा मुझ को दीदार ऐ गुल-एज़ार
तुझे अपने बाग़-ए-इरम की क़सम
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जब दुई दिल से गई और दिलरुबा देखा अ'याँ
डाल कर गुल को गले में ख़ार की हाजत नहीं
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ख़ूब-रू ख़ुद आ मिले जब फिर किसी का ख़ौफ़ क्या
ये वो जादू है जिसे तस्ख़ीर की हाजत नहीं
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'आरिफ़ा' है हक़ यही बस ग़ैर-ए-हक़ कुछ भी न जान
पी मय-ए-वहदत यहाँ ताख़ीर की हाजत नहीं
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मिल गया है दिल किसी दीदार से
हो गया बेज़ार अब घर-बार से
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टैग : घर
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मिस्ल-ए-गुल बाहर गया गुलशन से जब वो गुल-एज़ार
अश्क-ए-ख़ूनी से मेरा तन तर-ब-तर होने लगा
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मिस्ल-ए-गुल बाहर गया गुलशन से जब वो गुल-ए'ज़ार
अश्क-ए-ख़ूनी से मेरा तन तर-ब-तर होने लगा
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जानता हूँ मैं कि मुझ से हो गया है कुछ गुनाह
दिलरुबा या बे-दिलों से दिल तुम्हारा फिर गया
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है क्या ख़ौफ़ 'आरिफ़' को महशर के दिन
वकालत पे जब पीर मुख़्तार हो
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'आ’रिफ़ा' क़ातिल जब आया तेग़-ए-वहदत हाथ ले
क़त्ल को गर्दन झुका मैं पेशतर होने लगा
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टैग : क़ातिल
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मैं हूँ बेचता धर्म-ओ-ईमान-ओ-दींं
अगर कोई आ कर ख़रीदार हो
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टैग : ईमान
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साहब-ए-तौहीद को तलवार की हाजत नहीं
ज़ख़्मी-ए-मिज़्गाँ को कुछ सोफ़ार की हाजत नहीं
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कह दिया फ़िरऔ’न ने भी मैं ख़ुदा कर के ख़ुदी
हो के बे-ख़ुद जब कहे इंकार की हाजत नहीं
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जहाँ गर हो दुश्मन है क्या फ़िक्र-ओ-ग़म
अगर ग़म-गुसारी पे ग़म-ख़्वार हो
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जब नज़र उस की पड़ी हम आसमाँ से गिर पड़े
उस के फिरते ही जहाँ ये हम से सारा फिर गया
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टैग : आसमान
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गर मिलूँ तो तुंद-ख़ू हो गालियाँ देते हो तुम
दूर रहने से सताती है जुदाई आप की
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बराबर हैं गर पास हो गुल-बदन
चमन हो कि जंगल चे गुलज़ार हो
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टैग : गुल
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नामा-बर ख़त दे के उस को लफ़्ज़ कुछ मत बोलियो
दम-ब-ख़ुद रहियो तेरी तक़रीर की हाजत नहीं
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टैग : ख़त
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क्या लगाया यार ने सीने में ही तीर-ए-निगाह
क़ौस की मानिंद मेरा कज कमर होने लगा
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टैग : कमर
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अगर एक पल हो जुदाई तेरी
तो सहरा मुझे सारा घर-बार हो
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टैग : जुदाई
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कर दिया बर्बाद सारा इ'श्क़ ने जब ख़ानुमाँ
शहर में चर्चा मेरा फिर घर-ब-घर होने लगा
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टैग : घर
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere